मंगलवार, 12 सितंबर 2023

आलेख - मुजफ्फर नगर व कठुआ में शिक्षकों द्वारा बच्चों की पिटाई से राजनैतिक विमर्श के मायने

 आलेख - मुजफ्फर नगर व कठुआ में शिक्षकों द्वारा बच्चों की पिटाई से राजनैतिक विमर्श के मायने 

-डॉ उमेश प्रताप वत्स 


 अस्सी-नब्बे के दशक में बच्चें की शिक्षा को लेकर शिक्षक व अभिभावकों में एक सम्मान व विश्वास का सम्बंध देखने को मिलता था जो कि वर्तमान की कैरियर बेस शिक्षा में कम होता जा रहा है। शिक्षक के बहुत से गुणों में से एक प्रमुख गुण यह भी माना जाता है कि वह जाति-धर्म से ऊपर उठकर बच्चें के निर्माण को गढ़े।

अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर में एक मुस्लिम बच्चे को पीटे जाने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि इसी तरह का एक मामला जम्मू व कश्मीर के जिला कठुआ से भी सामने आया है। मुजफ्फरनगर में एक स्कूल में मुस्लिम बच्चे की पिटाई के मामले में मंसूरपुर थाने में आरोपी शिक्षिका तृत्पा त्यागी के खिलाफ धारा 323, 504 के तहत मुकदमा दर्ज हो गया है। वैसे तो बच्चे के पिता ने अपने बच्चे का इस स्कूल से नाम कटवाकर आरोपी शिक्षिका के साथ समझौता कर लिया था किंतु वीडियो वायरल होने के बाद कुछ राजनीतिक दलों ने पुलिस प्रशासन पर इतना दबाव बनाया कि पुलिस को अभिभावक की ओर से शिकायत वापस लेने के बाद भी केस दर्ज करना ही पड़ा। इस वीडियो के वायरल होने के बाद राजनीति शुरू हो गई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सपा नेता अखिलेश यादव और जयंत चौधरी, दूर पूर्व में बैठी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी , मुख्यमंत्री बघेल व गहलोत आदि भी इस घटना में निरंतर बयानबाजी कर रहे हैं । ये सब नेता इस घटना को नफरत का एजेंडा बताकर मोदी को कटघरे में खड़ा करने की जी-तोड़ कौशिश में लगे हुए हैं। जबकि कठुआ जिले के बनी इलाके में मौजूद एक स्कूल में बच्चे द्वारा ब्लैक बोर्ड पर 'जय श्री राम' लिख देने पर उसकी बुरी तरह से पिटाई कर डाली क्योंकि ब्लैक बोर्ड पर जय श्री राम लिखना शिक्षक फारुक अहमद और प्रिंसिपल मोहम्मद हाफिज साहब को पसंद नही आया और लिखने वाले बच्चे को समझाने की बजाय शिक्षक बच्चे को प्रिंसिपल के कमरे में ले गया और दोनों ने कमरे को अंदर से बंद कर बच्चे की खूब पिटाई की तथा फिर से ऐसी गलती करने पर जान से मारने की धमकी भी दी। बच्चे को इतना मारा कि उसे बहुत गंभीर चोटे भी आयी हैं। बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उसका इलाज चल रहा है। इस मामले में भी बच्चे के पिता कुलदीप सिंह की शिकायत पर कठुआ के डिप्टी कमिश्नर राकेश मिन्हास ने एक कमेटी का गठन कर जाँच के बाद पुलिस थाना बनी में मामला दर्ज कर शिक्षक को गिरफ्तार कर लिया है।

यद्यपि दोनों मामलों में स्थानीय प्रशासन ने तुंरत कानूनी कार्रवाई की है तथापि मुजफ्फरनगर वाले मामले में उत्तरप्रदेश के साथ ही बिहार ,पश्चिम बंगाल , छत्तीसगढ़ , राजस्थान, दिल्ली व कर्नाटक आदि से लगातार सियासत करने वाले मोदी विरोधी गुट के बड़े नेता कठुआ वाले मामले में चुप्पी साध गये हैं। दोनों ही घटनाएं शिक्षा व शिक्षक को शर्मसार कर गई है किंतु मुजफ्फरनगर वाली घटना पर नेताओं के साथ सुर-ताल मिलाते हुए कई दिन से लगातार चीखने-चिल्लाने वाले कुछ टीवी चैनलों के एंकर कठुआ में बनी क्षेत्र के स्कूल में हुई घटना पर किस नैरेटिव के तहत मुँह में दही जमाकर बैठे हुए हैं, समझ से परे है।

मुजफ्फरनगर में एक शिक्षिका ने पहाड़े न सुनाने पर दूसरे उन बच्चों से थप्पड़ मरवाये जिन्होंने पहाड़े सुना दिये थे। जब हम पढ़ते थे तो तब शिक्षक हमें भी दूसरे बच्चों से थप्पड़ लगवा देते थे । अक्सर विद्यालयों में ऐसा होता आया है कि होशियार बच्चों से या प्रश्न सुना देने वाले बच्चों से न सुनाने वाले को मुक्का-थप्पड़ मरवा देते हैं किंतु शिक्षिका ने जो धर्म को लेकर टिप्पणी की है वह निंदात्मक है। मुस्लिम वर्ग से अधिक हिंदू समाज ने इसकी निंदा की है। सही-गलत की भी जाँच चल रही है। कानून की उक्त धाराओं के अंतर्गत मामला दर्ज भी हो गया है। किंतु मेरा उन टीवी चैनलों से यह सवाल है कि इस घटना को रूस-यूक्रेन युद्ध से भी बड़ी घटना बनाकर प्रस्तुत करने वाले एंकर कठुआ के मामले पर जनता को बताना भी आवश्यक क्यों नहीं समझते?

कठुआ में पिटने वाला बच्चा हिंदू है और पीटने वाले शिक्षक फारुक अहमद और प्रिंसिपल मोहम्मद हाफिज है, अतः इस समाचार से टीआरपी नहीं बनती जबकि मुजफ्फरनगर में पिटने वाला बच्चा मुस्लिम है और पीटने वाली शिक्षिका हिंदू है तो इस मामले से बहुत टीआरपी बनेगी। बेशक सामाजिक संबंधों, विश्वास के चीथड़े-चीथड़े हो जाये। नेताओं द्वारा दिए गए बयान चुनावी बिसात को देखकर दिये जाते हैं। जनता भी उनके बयानों को समझती है और बहुत अधिक गंभीरता से नहीं लेती किंतु टीवी के माध्यम से हर घर में जो एंकरों द्वारा चीख-चीखकर नफरत व अविश्वास का माहौल बनाया जा रहा है , यह बहुत भयानक , चिंतनीय और सामाजिक ताने-बाने को तार-तार करने का कुत्सित प्रयास है। 

देश में यह विमर्श बनाया जा रहा है कि किसी भी हद तक जाना पड़े किंतु लक्ष्य मोदी व मोदी सरकार को अपमानित व अपदस्थ करना ही होना चाहिए। निर्धारित विमर्श के अन्तर्गत किस राज्य की महिला का रेप मामला बनाना है और किसे नजरअंदाज करना है। किस राज्य की महंगाई को मुद्दा बनाना है किस राज्य में महंगाई को केंद्र सरकार की नाकामी बताना है। किस धर्म के हमलावरों को छिपाना है और किस धर्म के लोगों को मोहरा बनाना है। किस घटना में बड़े पक्ष को भी अनदेखा करना है और किस घटना में छोटे से पक्ष को भी विश्वस्तर पर पहुंचाना है। यह पूर्व निर्धारित बहुत बड़ी तैयारी के साथ प्रस्तुत किया जाता है जिसमें बहुत बड़ा नैटवर्क काम कर रहा है। 

दिल्ली में साहिल द्वारा साक्षी की निर्दयता की सारी हदें पार कर चाकू से गोद-गोदकर हत्या कर दी, इतने पर भी दिल नहीं भरा तो एक भारी पत्थर से उसका चेहरे का कचूमर बना दिया गया तब उस दौरान कुछ चैनलों ने सबसे पहले तो साहिल की पहचान छिपाई क्योंकि साहिल नाम हिंदू व मुस्लिम दोनों धर्मों में रखे जाते हैं फिर साहिल के द्वारा भयंकर रूप से चाकू के ताबड़तोड़ हमलों की नृशंस हत्या बताने से ज्यादा ध्यान तमाशबीन लोगों पर दिया। एंकर बार-बार बोल रहे थे कि एक लड़का जब प्यार में धोखा खाकर अपनी प्रेमिका की चाकू मारकर हत्या कर रहा था तो लोग खड़े होकर तमाशा देख रहे थे। नैरेटिव यह सैट किया गया कि हत्या करने वाला तो प्रेम में पागल था किंतु पढ़े-लिखे लोग बचाने की बजाय तमाशा देख रहे थे । इसी तरह मुजफ्फरनगर के एक स्कूल की घटना में नैरेटिव सैट किया जा रहा है कि स्कूलों में हिंदू शिक्षक भी योगी सरकार में मुस्लिम बच्चों से नफरत करते हैं जबकि जम्मू-कश्मीर के कठुआ क्षेत्र में अनदेखा कर घटना को छिपाने का प्रयास किया गया । देश में दो प्रकार के धड़े बनते जा रहे हैं एक राष्ट्रवादी तथा दूसरे राष्ट्रवादियों के विरोधी। दूसरे प्रकार के धड़े को विदेशी आकाओं से दाना-पानी मिलता है और मीडिया हाऊस विशेष रूप से कुछ टीवी चैनलों से संरक्षण मिलता है । यदि सोशल नेटवर्किंग मजबूत न हो तो कठुआ जैसी अनेक घटनाओं को अपने नैरेटिव में सैट न होने पर यह विरोधी धड़ा दबाकर ही बैठ जाये। 

घटना मुजफ्फरनगर की हो या कठुआ की बच्चे की कोई जाति-धर्म नहीं होती वे शिक्षक के लिए सदा समान होने चाहिए । घटना मणिपुर की हो या राजस्थान की सभी बेटियां बराबर होनी चाहिए , सभी के दर्द हृदय को पीड़ादायक होने चाहिए। भारत में टीवी कल्चर ऐसा है कि घरवाले अधिक समय एक साथ बैठकर टीवी देखते हैं तो ऐसे में टीवी चैनलों की जिम्मेवारी ओर अधिक बढ़ जाती है कि सही , सत्य व तथ्यों पर आधारित समाचार ही प्रस्तुत करने का प्रयास करें। भारत एक प्राचीन , सांस्कृतिक व महापुरुषों का देश है। यहां राष्ट्रवादी विचार स्वीकार्य है न कि राष्ट्र विरोधी। अतः टीआरपी के लिए राष्ट्र विरोधी धड़ों के हाथों कठपुतली होना स्वयं के लिए व देश दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।


- स्तंभकार

डॉ उमेश प्रताप वत्स

 लेखक : प्रसिद्ध कथाकार, कवि एवं स्तंभकार है ।

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