रविवार, 24 सितंबर 2023

प्रलेख : जब तक भारत की अदालत-कचहरी में हिंदी भाषा में काम शुरू नहीं हुआ तब तक हिंदी का सम्मान अधूरा है -डॉक्टर राम प्रताप वत्स

 आलेख : 

जब तक भारत के कोर्ट-कचहरी में हिंदी भाषा में कार्य प्रारंभ नहीं होता तब तक हिंदी का सम्मान अधूरा है

-डॉ उमेश प्रताप वत्स 


एक स्वतंत्र देश की खुद की एक भाषा होती है, जो उस देश का मान-सम्मान और गौरव होती है। भाषा और संस्कृति ही उस देश की असली पहचान होती है। भाषा ही एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा हम अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। विश्व में कई सारी भाषाएँ बोली जाती है, जिसमें हिंदी भाषा का विशेष महत्व है। यह भाषा भारत में सबसे अधिक बोली जाती है तथा विश्व में बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी भाषा का दूसरा स्थान है।

राष्ट्रभाषा किसी भी देश की पहचान और गौरव होती है। हिन्दी हिंदुस्तान को एक सूत्र में बांधे रखती है। भारत में '14 सितंबर' को हर वर्ष हिन्दी दिवस मनाया जाता है। हिन्दी हिंदुस्तान की भाषा है। इसके प्रति आस्था व निष्ठा रखना हमारा परम कर्तव्य है। 14 सितंबर को 'हिन्दी दिवस' पर हिंदी वैज्ञानिकों एवं हिंदी भाषा से जुड़े लोगों के लंबे-लंबे भाषण होते हैं। हिंदी को सरल बनाने पर माथापच्ची होती है। भविष्य में यह भी डर है कि कहीं हिंदी भाषा को सरल बनाते-बनाते इसका रूप ही न बिगाड़ दिया जाये। इन विद्वानों के कारण हिंदी भाषा के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराता दिखाई दे रहा है। 

जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा सदैव क्षेत्रीय भाषा के निकट होती है और हिंदुस्तान के बहुत बड़े भूभाग पर हिंदी से अत्यंत मिलती-जुलती बोली अथवा भाषा ही अधिकतम लोगों की मातृभाषा है। किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है। अतः हिंदी हमारी पहचान है। 

अपनी मातृभाषा से जुड़कर ही व्यक्ति अपनी धरोहर से जुड़ता है और उसे आगे बढ़ाने का प्रयास करता है। मातृभाषा व्यक्ति की समाजिक भाषाई पहचान को दर्शाता है। 

राष्ट्रभाषा अर्थात् आमजन की जनभाषा। जो भाषा समस्त राष्ट्र में जन–जन के विचार–विनिमय का माध्यम हो, वह राष्ट्रभाषा कहलाती है। यद्यपि देश के अधिकतम राज्यों में जो भी मलयालम, कन्नड़, तेलुगू, मराठी, गुजराती आदि भाषाएं बोली जाती है हैं वे सभी राष्ट्रभाषा ही है। इस दृष्टि से राष्ट्रभाषा हिंदी को को संपर्क भाषा कहना अधिक सही रहेगा। राष्ट्रभाषा राष्ट्रीय एकता एवं अंतर्राष्ट्रीय संवाद सम्पर्क की आवश्यकता की उपज होती है। हिंदी संपर्क भाषा के रूप में एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच तालमेल बैठाकर सामंजस्य बनाती है।

हिंदी भाषा समाज के सभी लोगों को आपस में जोड़ने का कार्य करती है। हिंदी भाषा का प्रयोग हमें गौरव और मान सम्मान प्राप्त कराता है, विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी भाषा का दूसरा स्थान है, हमारी मातृभाषा हिंदी भारत की संस्कृति, गौरव और मान-सम्मान है। हिंदी भाषा के वृहद रूप से ही भारत की पहचान है। किंतु हिंदी की चिंता का दिखावा करने वाले विद्वत जन स्वयं अंग्रेजी बोलकर शेखी बघारते मिल जाते हैं। देश के अधिकतम हिंदी अध्यापक, प्राध्यापक प्रार्थना पत्र को भी अंग्रेजी में लिखना गौरव समझते हैं। अपने बच्चों, पोतों के साथ टूटी-फूटी अंग्रेजी में बात करने से उन्हें लगता है जाने कौन-सा किला फतेह कर आये हैं। 14 सितंबर के तुरंत बाद हिंदी दिवस कार्यक्रम के आयोजक भी बाजार का पूरा हिसाब-किताब अंग्रेजी में करके आते हैं। इन चिंतकों के युवा बच्चों में अंग्रेजी फिल्में देखने का भूत सवार है। घर की अनपढ़ या कम पढ़ी-लिखी महिला बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करती हुई जुराब को शॉक्स व जूतों को शूज कहना ज्यादा पसंद करती हैं। समाज के आम लोगों के साथ-साथ प्रशासन भी हिंदी के प्रयोग के लिए प्रेरणादायी कार्यक्रम आयोजित कर स्वयं भी विभागीय पत्र व्यवहार अंग्रेजी में ही करते हैं। ज्ञान सभी भाषाओं का होना चाहिए किंतु आप अंग्रेजी को जब जबरदस्ती किसी पर थोपते है तो यह अत्याचार कहलाता है। 

हरियाणा एक विशुध्द हिंदी भाषी प्रांत है। हिंदी की छोटी बहन हरियाणवी बोली के रूप में प्रयुक्त होती है। हरियाणा का हर व्यक्ति हिंदी भाषा बहुत अच्छी तरह पढ़-लिख लेता है किंतु यहां भी सभी शत-प्रतिशत विभागों में अधिकतर विभागीय पत्र अंग्रेजी में आते हैं क्योंकि हरियाणा के आइएएस अधिकारी अंग्रेजी भाषा के इतने अधिक विद्वान हैं कि हिंदी में पत्र भेजने से उनकी आत्मा उन्हें कचोटने लगेगी। 

भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां संसद और विधानसभा सदस्य के लिए एक अनपढ़ व्यक्ति भी चुनाव लड़ सकता है और अपने सेवाभाव अथवा लोकप्रियता के कारण पढ़े-लिखे प्रत्याशी को हराकर चुनाव जीत सकता है। ऐसे में यदि वह किसी विभाग का मंत्री बन जाये और विभाग में सारा कार्य, पत्र व्यवहार अंग्रेजी में होता हो तो मंत्री क्या खाक काम करेगा? वह अंग्रेजी के उस बोझ को ढोता रहेगा किंतु हिंदी में सब कार्य हो इसके लिए प्रयास नहीं करेगा क्योंकि उसको भी लगता है ऐसा करने से लोग क्या कहेंगे? इसी संकोच के कारण स्वतंत्र होने के 75 वर्ष बाद भी हमारे कोर्ट-कचहरी में आज भी सारा कार्य ऊर्दू-अंग्रेजी में होता है। वर्षों की मेहनत के बाद जब कोई व्यक्ति सिर छिपाने के लिए जमीन खरीदता है तो उसकी रजिस्ट्री की भाषा स्वयं तहसीलदार भी नहीं समझा पाता कि लिखा क्या है। जमीन आदि के झगड़े-फसाद के मामले कोर्ट में वर्षों चलते रहते हैं और जब 15-20 वर्षों में जाकर जज कोई निर्णय सुनाता है तो वह लिखित निर्णय जिसे वकील साहब बहुत ही गर्व से जजमेंट की कॉपी बोलते हैं, अंग्रेजी में लिखी होती है। कब तक चलता रहेगा यह सब? कब बदलेगी हमारी व्यवस्था? जो नक्शानवीस रजिस्ट्री लेखक उर्दू भाषा को देवनागरी में टाइप करता है, वह उन मुश्किल उर्दु के शब्दों को हिंदी में क्यों नहीं लिख पाता। माननीय जजों को हिंदी से इतनी नफरत क्यों हैं कि जिसके लिए निर्णय सुना रहे हैं, उसे ही समझ में नहीं आता तब वकील उसे अपने ढंग से समझाता है। 

यदि हम सच में ही हिंदी प्रेमी है तथा हिंदी का मान-सम्मान करना चाहते हैं तो फादर कामिल बुल्के की तरह मन कर्म वचन से हिंदी के लिए समर्पित होना पड़ेगा जो एक विदेशी होते हुए भी हिंदी की वैज्ञानिकता, सौम्यता, सरलता से इस कद्र प्रभावित थे कि पूरा जीवन ही हिंदी सेवा में लगा दिया। 

फादर बुल्के बेल्जियम से भारत आये एक मिशनरी थे। भारत आकर मृत्युपर्यन्त हिंदी, तुलसी और वाल्मीकि के भक्त रहे। वे कहते थे कि संस्कृत महारानी है, हिन्दी बहूरानी और अंग्रेजी तो नौकरानी है। इन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1974 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 

हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसके बारे जितना लिखा जाए उतना काम ही है। इस भाषा से हम कई और भाषाओं का ज्ञान भी ले सकते हैं। 

विश्व की प्राचीन और सरल भाषाओं की सूचि में हिंदी को अग्रिम स्थान मिला हैं। हिंदी भारत की मूल है। यह भाषा हमारी संस्कृति और संस्कारों की पहचान है। हिंदी भाषा हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान और गौरव प्रदान करवाती है। 

हिंदी एक भावात्मक भाषा है, जो लोगों के दिल को आसानी से छू लेती है। हिंदी भाषा देश की एकता का सूत्र है।


करते हैं तन मन से वंदन, 

जन मन की अभिलाषा का

अभिनंदन अपनी संस्कृति का, 

आराधन हिंदी भाषा का....


पुरे विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रचार करने का श्रेय एक मात्र हिंदी भाषा को जाता है। भाषा की जननी और साहित्य की गरिमा हिंदी भाषा जन-आंदोलनों की भी भाषा रही है। आज भारत में पश्चिमी संस्कृति को अपनाया जा रहा है, जिसके चलते अंग्रेजी भाषा का सभी क्षेत्रों में चलन बढ़ गया है। कहीं न कहीं इसमें सरकार का तथा इससे भी बढ़कर प्रशासन का दोष है, उनकी अकर्मण्यता, निस्क्रियता है। 

वास्तविक जीवन में भले ही हम हिंदी का प्रयोग जरूर करते है लेकिन कॉर्पोरेट जगत में ज्यादातर अंग्रेजी भाषा का ही प्रयोग होता है, जो हमारे लिए एक लज्जा की बात है।

हिंदी भाषा इतनी लचीली है कि इसमें दूसरी भाषाओं के शब्द भी आसानी से समा जाते हैं। हिंदी में साइलेंट अक्षर नहीं होते। जो लिखा जाता वह बोला भी जाता है। इसलिए इसके लेखन और उच्चारण में शुद्धता रहती है। इस भाषा में निर्जीव वस्तुओं के लिए भी लिंग का निर्धारण होता है। हिंदी ऐसी व्यावहारिक भाषा है जिसमें हर संबंध-रिश्ते के लिए अलग-अलग शब्द दिए गए हैं। मामा, फीफा, मौसा, ताऊ, चाचा आदि अंग्रेजी की तरह अंकल बोलकर ही काम नहीं चलाया जाता। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, साक्षर से निरक्षर तक प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति हिन्दी भाषा को आसानी से बोल-समझ लेता है। यही इस भाषा की पहचान भी है कि इसे बोलने और समझने में किसी को कोई परेशानी नहीं होती। पहले के समय में अंग्रेजी का ज्यादा चलन नहीं हुआ करता था, तब यही भाषा भारतवासियों या भारत से बाहर रह रहे हर वर्ग के लिए सम्माननीय होती थी। लेकिन बदलते युग के साथ अंग्रेजी ने भारत की जमीं पर अपने पांव गड़ा लिए हैं। अब समय आ गया है कि हम अपनी इस समृद्ध भाषा को और अधिक समृद्ध बनाने के लिए मन कर्म वचन से समर्पित होकर आगे आयें। तभी राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाने का उद्देश्य सफल होगा। 

(लेखक शिक्षा विभाग हरियाणा में हिंदी प्राध्यापक हैं ) 


स्तंभकार : 

डॉ उमेश प्रताप वत्स

umeshpvats@gmail.com

#14 शिवदयाल पुरी, निकट आइटीआइ

यमुनानगर, हरियाणा - 135001

9416966424

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