मंगलवार, 12 सितंबर 2023

आलेख- विकसित देशों को पीछे छोड़ चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचा विश्वगुरु भारत

 आलेख- विकसित देशों को पीछे छोड़ चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचा विश्वगुरु भारत

-डॉ उमेश प्रताप वत्स 


चाँद पर चंद्रयान-3 के माध्यम से इसरो द्वारा विक्रम लेंडर सफलतापूर्वक उतारना भारत के लिए वैज्ञानिक दुनिया में बहुत ही महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होने वाला है। जब चंद्रयान-3 ने चाँद पर सफलता पूर्वक अपना कदम रखा तो विश्व के वैज्ञानिक इसे हतप्रभ हो देख रहे थे। वर्षों से इस मून मिशन पर लगे कई वैज्ञानिक हजारों आशंकाओं के प्रश्न रूपी भंवर में उलझे हुए थे । देश में जगह-जगह लोगों ने चंद्रयान-3 की सफलता के लिए यज्ञ-हवन प्रारंभ कर दिये थे किंतु विक्रम लेंडर के सफलतापूर्वक चांद की सरजमीं पर कदम रखते ही सारी आशंकाएं स्वयं ही समाप्त हो गई। 615 करोड़ की लागत से तैयार हुआ ये मिशन करीब 42 दिन की यात्रा के बाद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडिंग करने में सफल हुआ। चंद्रयान-3 की लैंडिंग की ज़िम्मेदारी महिला वैज्ञानिक रितु करिधाल को सौंपी गई थी जिसने अपनी टीम के सहयोग से भलीभाँति निभाई। ध्यान रहे जब चंद्रयान 2 को सफलता नहीं मिली थी तो पीएम ने अपने संबोधन में कहा था कि इस असफलता ने हमारे संकल्पों को और मजबूत बना दिया है। उन्होंने कहा था कि आज भले ही हम चंद्रमा की सतह पर अपनी योजना से नहीं जा पाए, लेकिन इस बार हमारी सफलता का मूल मंत्र इसी चंद्रयान-2 के गर्भ में छिपा हुआ था।

हमारा अगला प्रयास अन्य ग्रहों का अध्ययन करना होगा और उसके आगे के सारे प्रयास हमारे प्रतिभावान वैज्ञानिकों के बलबूते सफल होंगे। 

प्रधानमंत्री के उत्साहवर्धन से ही आज चंद्रयान-3 की सफलता एक नया इतिहास गढ़ चुकी है ।

वरिष्ठ महिला वैज्ञानिक रितु करिधाल ने चंद्रयान 3 के मिशन निदेशक के रूप में अपनी भूमिका बखूबी निभाई। निसंदेह! भारत से पहले रूस, अमेरिका व चीन भी चाँद पर अपने यान भेज चुके हैं किंतु चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर आज तक कोई भी देश अपना यान नहीं भेज सका क्योंकि यहां कई बार तापमान माइनस 249 डिग्री तक हो जाता है । यहां पहुंचने के मिशन अधिकतर असफल होने की संभावना रहती है । चंद्रयान-3 भारत का तीसरा मून मिशन है जो भारत की अंतरिक्ष यात्रा के अगले अध्याय को शुरू करने जा रहा है। इस मिशन की सफलता ने हमें चांद के बारे में गहनता से विस्तृत जानकारी देनी प्रारंभ कर दी है।

जीवन के लिए आवश्यक तत्व क्या हो सकते हैं , इसकी पड़ताल करने के लिए ही इसरो ने विक्रम लेंडर चाँद पर उतारने की योजना बनाई थी। भारत का चंद्रयान-3 इसरो के वैज्ञानिकों की कठोर परिश्रम व करोड़ों लोगों की शुभकामनाओं के चलते सफलतापूर्वक उतरकर विज्ञान के क्षेत्र में पूरी दुनिया में भारत की धाक जमा चुका है। 

14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा से उड़ान भरने वाले चंद्रयान-3 ने अपनी 40 दिनों की लंबी यात्रा सफलतापूर्वक पूर्ण की है। इसरो के बताए गए विवरण के अनुसार चंद्रयान-3 के लिए मुख्य रूप से तीन उद्देश्य निर्धारित किये गये थे। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराना, चंद्रमा की सतह कही जाने वाली रेजोलिथ पर लैंडर को उतारना और घुमाना लैंडर और रोवर्स से चंद्रमा की सतह पर शोध कराना। पहले दोनों उद्देश्य भलीभाँति पूर्ण हो गए हैं और तीसरे उद्देश्य पर रोवर प्रज्ञान कार्य कर रहा है।

लेंडर 'विक्रम' अब अपने मस्तिष्क का प्रयोग करते हुए अपने सेंसर्स की मदद से सफलतापूर्वक लैंड कर इसरो के सपनों को पंख लगा दिये हैं , अब देखना यह है कि चंद्रमा की सतह का अध्ययन कर रोवर प्रज्ञान किन रहस्यों को विश्व के समक्ष उजागर करने में सफलता प्राप्त करता है ।

प्रज्ञान वहां की मिट्टी और पहाड़ों का विश्लेषण भी करेगा। वैज्ञानिकों के साथ-साथ विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए भी यह रहस्यमयी आकर्षक जानकारियां जुटायेगा जो कि बहुत बड़ा ज्ञानवर्धक रोमांचक क्षण होगा। 140 करोड़ लोगों की शुभकामनाओं व प्रभू के आशीर्वाद से सबकुछ ठीक-ठाक रहा। 

इसरो चीफ एस. सोमनाथ ने कहा कि "प्रज्ञान रोवर के साथ इसमें से कई यंत्र भी निकलेंगे जिनमें रम्भा शामिल है। रम्भा चंद्रमा के वातावरण का अध्ययन करेगा।"

"ये रोवर दो अहम अध्ययन करेगा जिनमें सबसे पहले लेज़र से चांद की जमीन का अध्ययन करना शामिल है। इसके साथ ही उसके रसायन को भी जानने की कोशिश की जाएगी।"

इसरो चीफ ने बताया कि इस अभियान की सबसे मुश्किल घड़ी उपग्रह को अंतरिक्ष में ले जाकर छोड़ना था और फिर दूसरी मुश्किल घड़ी इसको चंद्रमा पर लैंड कराना था। जो कि सबके सहयोग से सफल हो सका। इसके साथ ही उन्होंने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा समेत ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन के ग्राउंड स्टेशंस को भी शुक्रिया अदा किया। भारत में रक्षाबंधन भी आने वाला है । रचनाकारों व कवियों ने अभी से ही रक्षाबंधन त्यौहार के लिए धरती रूपी बहन व चंद्रमा रूपी भाई पर कलम का कमाल दिखाना प्रारंभ कर दिया है ।रचनाकारों के अनुसार पहले धरती माँ का यह प्यारा प्रतिभाशाली बालक रोवर प्रज्ञान चंदा मामा के घर अवश्य जायेगा और काफी दिन मामा के पास रहकर अपनी सभी उत्सुकता का समाधान प्राप्त करेगा।

इसी को प्रदर्शित करती वत्स की कलम से -

आया तो पहले भी मामा, था मैं तेरे द्वार 

दोनों बार दिखाया तूने , गुस्सा अपरम्पार 

पर माँ बोली लगे है मामा , बुरा नहीं मानते 

लगता है वह तेरा सच्चा , प्यार नहीं जानते

रिश्तों में तो चलता ही है, रूठना और मनाना

दिल पर लगा नहीं छोड़ते , मामा के घर जाना

धरती माँ की सीख मुझे , प्रोत्साहित कर जाती

रूठे मामा की फिर से , मुझको याद सताती 

मैं माता की राखी लेकर , मामा के घर जाऊँ 

यही सोच-सोचकर दिनभर , खुशी से मैं इतराऊँ

साजो-सामान बाँध चढ़ा मैं , चंद्रयान के वक्ष पर 

चालीस दिन सफर किया, तब पहुंचा चांद के अक्ष पर 

मामा ने भी छोड़ा गुस्सा , मुझको गले लगाया

बोला विक्रम तेरा धैर्य , मुझको बड़ा ही भाया

ले ले जो लेना है तुझको , खुला है मेरा द्वार 

तेरे प्यार के आगे मेरा , तुच्छ दौलत-भंडार अब जब भी आना हो तुमको , निसंकोच चले आना 

राखी का यह अमूल्य प्रेम तुम, बहना का फिर लाना

मामा-भांजे का ऐतिहासिक मिलन , विश्व देख रहा है 

सदियों से ही मेरे भारत का, इरादा नेक रहा है 


- स्तंभकार

डॉ उमेश प्रताप वत्स

 लेखक : प्रसिद्ध कथाकार, कवि एवं स्तंभकार है ।

umeshpvats@gmail.com

#14 शिवदयाल पुरी, निकट आइटीआइ

यमुनानगर, हरियाणा - 135001

9416966424

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