बुधवार, 20 अप्रैल 2011

40. मौन है गैया.....

बड़े तूफान से पहले सदा ही, शांत माहौल हो जाता है।

रोगी भी मृत्यु से पहले , स्वस्थ लक्षण दिखलाता है।।

मत भूलों इस शांत माहौल से ,पहले की गहराई को।

गऊ माता के मौन व्रत, रहने की बेबसाई को।

अर्थ व्यवस्था का केन्द्र बिन्दु, भारत की पहचान थी।

हर घर में पूजा हो जिसकी, ऐसी वो भगवान थी।।

भूले से भी न होता था , कभी अनादर गैया का ।

राजा और प्रजा दोनों से , मान मिला था मैया का।।

अपने भोजन से पहले , गैया का भोजन जाता था ।

बच्चे-बूढ़े , महिलाओं से, परिवारों सा नाता था ।।

मधुर गीतों को गुनगुनाते , गैया को दूहवा जाता था।

तभी दूध औषध बनकर सब, संकट हर ले जाता था ।।

माँ गैया के मूत्र को मानव, बेझिझक पी जाता है।

गौ-गोबर सह पंचगव्य से , शुभ कारज कर पाता है।।

गौ-पालक को सुखी मानता, था सारा खुशहाल समाज।

गैया के दुग्ध-दही और घी पर, मलयोद्धाओं को भी था नाज।।

हाय! विडम्बना गऊ माता की, भूख-प्यास से व्याकुल आज।

दर-दर भटक रही है माता, एक-एक तिनके को मोहताज।।

गैया के अपमान से देखो , मानव गिरता जा रहा।

लाखों-करोड़ों कमाकर के भी, तनाव में पिसता जा रहा।।

कैसे मिलेगी शांति तुझको, मानव से दानव बनकर के।

घोर पाप के भागीदार तुम, खड़े बेशर्म तनकर के ।।

मौन है मैया देख रही, संत्रास चहूँ दिशाओं में।

शांत धरा सी झेल रही, पीड़ा है दर्द निगाहों में।।

खुदगर्जी के कारण तूने , मैया का ये हाल किया ।

सौंप कसाई के हाथों में , उसका जीना बेहाल किया।।

मौन वसुधा कब तक सहती, आते है भूकम्प- भूचाल।

गाय प्रताड़ित भैंस को पाले, बना रहा है मक्कड़-जाल।।

मौनव्रत की गहराई को , अनदेखा कर ये भ्रम न पाल।

नासमझी कर नहीं जानता , होगी तबाही चहूँ ओर विकराल।।