रविवार, 30 जुलाई 2023

*राजपूत या गुर्जर से पहले वीर हिन्दू सम्राट थे मिहीर भोज*

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 *राजपूत या गुर्जर से पहले वीर हिन्दू सम्राट थे मिहीर भोज*


प्रकाशित हुआ है।


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आलेख - राजपूत या गुर्जर से पहले वीर हिन्दू सम्राट थे मिहीर भोज

-डॉ उमेश प्रताप वत्स 


सम्राट मिहिर भोज को लेकर गुर्जर और राजपूत के बीच लम्बे समय से विवाद चल रहा है। दोनों ही समाज एक-दूसरे के विरुद्ध हिंसात्मक होते जा रहे हैं। मई में पश्चिमी यूपी के सहारनपुर में दोनों ही समाज आमने-सामने आ गए थे। टकराव की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए जिले में धारा 144 लागू कर इंटरनेट बंद किया गया तथा दर्जनभर से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर कुछ के विरुद्ध एफआईआर भी दर्ज की गई। वास्तव में पूरा विवाद सम्राट मिहिर भोज की जाति से जुड़ा हुआ है। जो कि नाक का सवाल बन गया है। गुर्जर समाज के लोग सम्राट मिहिर भोज को गुर्जर मानते हैं, वहीं राजपूत समाज उन्हें एक क्षत्रिय राजा मानता है। देश के कई राज्यों विशेष रूप से उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और अब हरियाणा में यह विवाद सिर चढ़कर बोल रहा है। 

ताजा विवाद हरियाणा के कैथल जिले का है, जहाँ पुलिस सुरक्षा में ढांड रोड पर स्थानीय भाजपा विधायक लीला राम गुर्जर द्वारा मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण किया गया। यद्यपि अनावरण से एक दिन पहले, राजपूत समुदाय के लोगों ने शिलालेख में मिहिर भोज को हिंदू सम्राट की बजाय गुर्जर सम्राट लिखे जाने पर आपत्ति जताई और विरोध में प्रदर्शन किया। इसके उपरांत भी जल्दबाजी में प्रतिमा का अनावरण तथा आपत्ति जताने पर पुलिस द्वारा राजपूत समाज पर किये गये लाठीचार्ज ने विवाद को ओर अधिक सुलगा दिया। 

गुर्जर व राजपूत दोनों ही समाज प्राचीन काल से भारत की सुरक्षा हेतु अग्रणी समाज रहे हैं। सभ्य समाज व दायित्ववान व्यक्तियों को देश के प्रति दोनों ही समाज की निष्ठा, देश प्रेम और सुरक्षा भावना को देखते हुए सम्मानित ढंग से विवाद को सुलझाकर दूरदर्शिता का परिचय देना चाहिए। 

यद्यपि जो समाज अपने राष्ट्र के महापुरुषों व संघर्षरत रहे क्रांतिकारियों, अमर बलिदानियों को विस्मृत कर देता है, वह समाज अंत की ओर होता है किंतु हमें अपने महापुरुषों, महान क्रांतिकारियों को जाति-धर्म में बाँटने का प्रयास भूलकर भी नहीं करना चाहिए। क्या होगा यदि राजपूत समाज आगे आकर विस्तृत हृदय की बात रखते हुए कहे कि ठीक है सम्राट मिहिर भोज पूरे राष्ट्र के सम्मानीय हैं, तुम भी उनकी प्रतिमा का अनावरण करो और हम भी करेंगे। इसी तरह गुर्जर समाज भी यदि बात को सुलझाते हुए बोले कि सम्राट मिहिर भोज पूरे देश के महान चक्रवर्ती सम्राट रहे हैं तो हम गुर्जर सम्राट कहने की बजाय उनको हिंदू सम्राट कहकर ही संबोधित करेंगे ताकि विश्वभर में यह संदेश जाये कि हिंदुस्थान के महान पराक्रमी सम्राट रहे हैं मिहिर भोज। इतिहास छत्रपति शिवाजी महाराज को भी राजपूत सिसोदिया वंश से मानता है जबकि मराठवाड़ा में उन्हें भगवान की तरह माना जाता है और मराठा ही मानते हैं ऐसा नहीं है पूरा देश शिवाजी महाराज को सम्मान देता है, उनके कार्यों का गुणगान करता है। महाराणा प्रताप को सारा हिंदुस्थान मानता है। कोई भी समाज उनकी प्रतिमा का अनावरण करें, यह गर्व की बात है। 

हम शहीद भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, रामप्रसाद बिस्मिल, वीर सावरकर या चंद्रशेखर आजाद की जाति नहीं पूछते हैं। वे पूरे राष्ट्र के सम्मानीय पूजनीय हैं। इसी प्रकार मिहिर भोज पूरे देश के हैं। महान पुरुषों को कभी विवाद का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए। 

संत शिरोमणि रविदास जी व महान ऋषि बाल्मीकि जी के देश में लाखों मंदिर हैं किंतु वास्तविक निष्ठा तब दिखाई देगी जब हर मंदिर में महान संत बाल्मिकी, संत रविदास जी की प्रतिमा हो अपितु इनके साथ ही भगवान परशुराम, ऋषि कश्यप, ऋषि भारद्वाज, ऋषि वशिष्ठ, ऋषि अगस्त्य, महर्षि वेदव्यास, महर्षि दयानंद व विवेकानंद की प्रतिमा एक साथ दिखाई दे। क्यों न इन महान संतो, महापुरुषों, महान सम्राटों, महान राजाओं व महान क्रांतिकारियों को कोई एक समाज नहीं अपितु पूरा राष्ट्र माने? क्यों न पूरा विश्व इनके द्वारा किये गये कार्यों की प्रशंसा करें? क्यों न हम सब इनके समक्ष नतमस्तक हो? ये हम सबके पूर्वज हैं। हम सबके पथप्रदर्शक हैं। 

सातवीं शताब्दी में नागभट्ट प्रथम प्रतिहार राजवंश के राजा थे। पुष्यभूति साम्राज्य के हर्षवर्धन के बाद पश्चिमी भारत पर उनका शासन था। उनकी राजधानी कन्नौज थी। उन्होंने सिन्ध के अरबों को पराजित किया और काठियावाड़, मालवा, गुजरात तथा राजस्थान के अनेक क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। 780 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गई। माना जाता है कि मिहिरभोज इस वंश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था। यह रामभद्र व माता अप्पा देवीका पुत्र था। इसका सर्वप्रथम अभिलेख वराह अभिलेख है जिसकी तिथि 893 विक्रम संवत् है। अतः इसका शासनकाल लगभग 836 ई. से प्रारंभ हुआ माना जाता है इसके शासनकाल की अंतिम तिथि 885 ई. थी। कहा जाता है कि 50 वर्षों से अधिक समय तक उत्तर भारत के कुछ हिस्सों पर शासन करने वाले मिहिर भोज का साम्राज्य पश्चिम में मुल्तान से लेकर पूर्व में बंगाल तक और उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक फैला हुआ था। 

मिहिर भोज ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की, जिसकी स्थायी राजधानी कन्नौज बनी। कश्मीरी कवि कल्हण की “राजतरंगिणी” में मिहिरभोज की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला गया है। अरब यात्री “सुलेमान” ने मिहिरभोज को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया है, जिसने अरबों को सिंधु से परे ही आगे बढ़ने से रोक दिया था। मिहिरभोज ने कालिंजर पर अपने अधिकार की स्थापना वहां के चंदेल नरेश जयशक्ति को पराजित करके की थी। गुजरात प्रदेश पर पुनः अपना अधिकार करने के लिए मिहिरभोज को मंडौर की प्रतिहार शाखा के राजा बाऊक का दमन करना पड़ा था। यह अनुमान जोधपुर अभिलेख पर आधारित है। बंगाल के राजा देवपाल के बेटे को शिकस्त देकर सम्राट मिहिर ने उत्तरी बंगाल को भी अपनी सल्तनत में शामिल किया। कन्नौज पर कब्जा करने के लिए उत्तर भारत, बंगाल और दक्षिण भारत के राजाओं की तरफ से कोशिश की गई किंतु वे सफल न हो सके। जिसे त्रिकोणीय संघर्ष कहा गया था। जीवन के अंतिम पड़ाव पर उन्होंने बेटे महेंद्रपाल को सत्ता सौंपी और संन्यास ले लिया। तथ्य बताते हैं कि 72 वर्ष कीआयु में उनका देहांत हो गया था।

कुछ इतिहासकार कहते हैं कि वो गुर्जर समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। हालांकि, उनका यह भी मानना है कि गुर्जर और राजपूतों की उत्पत्ति को लेकर इतिहास विवादित रहा है। 7वीं शताब्दी में हर्षवर्धन के बाद से लेकर 12वीं शताब्दी तक के काल को राजपूत काल कहा जाता है। मध्यकालीन भारत पुस्तक के लेखक और इतिहासकार प्रोफेसर वीडी महाजन कहते हैं, सम्राट मिहिर प्रतिहार वंश के शासक थे। राजपूत समुदाय का तर्क है कि वह प्रतिहार-राजपूत राजवंश से थे, और गुर्जर शब्द का गुर्जर समुदाय से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि यह वर्तमान दक्षिणी राजस्थान और उत्तरी गुजरात के उस क्षेत्र के संदर्भ में है जो उस वक्त उनके साम्राज्य का हिस्सा था। 

 वैसे तो सम्राट मिहिर को लेकर लम्बे समय से विवाद चला रहा है किंतु 9वीं शताब्दी के राजा मिहिर भोज की एक प्रतिमा पहली बार उस वक्त दो समुदायों के बीच विवाद का कारण बन गई जब इसे 8 सितंबर 2021 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में ‘सम्राट मिहिर भोज’ शिलालेख के साथ स्थापित किया गया था। गुर्जर समाज के व्यक्तियों ने बाद में नाम के साथ गुर्जर शब्द जोड़ा दिया, जिसका राजपूतों ने विरोध किया। आज भी यह मामला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में विचाराधीन है। इसी तरह सितंबर 2021 में तब विवाद पैदा हुआ, जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दादरी के मिहिर भोज पीजी कॉलेज में सम्राट की प्रतिमा का अनावरण करने पहुंचे। अपने-अपने दावे के बीच गुर्जर समाज ने गौरव यात्रा निकालने का ऐलान किया। राजपूत समाज ने इसका विरोध करते हुए प्रदर्शन किया। उन्होंने शिलापट्ट से गुर्जर शब्द को हटाने को कहा तो गुर्जर समाज के लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया। जबकि योगी आदित्यनाथ ने मंच पर आकर इस विवाद को खत्म कर दिया, लेकिन इस मामले को लेकर राज्य में राजनीति शुरू हो गई। मिहिर भोज का मामला पहले से ही मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर पीठ द्वारा सुना जा रहा है। गुर्जर नेताओं के लिए बेहतर होता कि वे अदालत के फैसले का इंतजार करते। इस हफ्ते की शुरुआत में हरियाणा के कैथल में अनावरण की गई राजा मिहिर भोज की प्रतिमा को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रतिमा पर राजा को ‘गुर्जर’ बताने वाले शिलालेख के विरोध में भाजपा के 29 सदस्यों के पार्टी छोड़ने के बाद मामला ओर उलझ गया है। भाजपा के कैथल जिला अध्यक्ष संदीप राणा ने बताया कि हमने कभी यह मांग नहीं की कि पट्टिका पर गुर्जर की जगह राजपूत लिखा जाए। लेकिन हम चाहते थे कि मिहिर भोज के नाम के पहले हिंदू सम्राट लिखा जाए। जब तक प्रदेश भाजपा अध्यक्ष या मुख्यमंत्री हमारी शिकायतों का समाधान नहीं कर देते, हम अपना इस्तीफा वापस नहीं लेंगे। हिन्दू समाज के दो मुख्य पक्ष आपसी मतभेद में उलझते जायेंगे तो देश को अस्थिर करने वाले धड़े को बैठे-बैठाएं फूट डालने का अवसर मिल जायेगा। मणिपुर में हम देख ही रहे हैं कि किस तरह दो प्रमुख समाज मैतेई और कुकी के आपसी विवाद को कुछ राजनैतिक दलों की सहायता से हिंसात्मक बनाकर देश को विश्वभर में अपमानित किया गया है। अतः इस तरह की कुत्सित मानसिकता वाली ताकत को अपना कंधा न दे अन्यथा वे आपके कंधे पर चढ़कर भारत माता को लहूलुहान कर देंगे। 

गुर्जर समाज को बड़ा दिल दिखाते हुए इस मामले को सुलझाने में पहल करनी चाहिए। जो पहले से प्रतिमा स्थापित हो चुकी हैं, उन पर बेशक गुर्जर शब्द लिखा हो, उन्हें न छेड़ा जाये। किंतु भविष्य में कहीं भी प्रतिमा लगे तो गुर्जर अथवा राजपूत की बजाय हिन्दू सम्राट लिखे जाने का दोनों पक्षों की ओर से स्वागत होना चाहिए। 


- स्तंभकार

डॉ उमेश प्रताप वत्स

 लेखक : प्रसिद्ध कथाकार, कवि एवं स्तंभकार है ।

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