रविवार, 13 अगस्त 2023

आलेख - मणिपुर में पहाड़ी बनाम घाटी हुआ जंग का मैदान

 आलेख - मणिपुर में पहाड़ी बनाम घाटी हुआ जंग का मैदान 

-डॉ उमेश प्रताप वत्स


मणिपुर को भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाता है। मणिपुर के हरे-भरे मखमली पहाड़ और प्राकृतिक दृश्य हर किसी के दिल में अपनी जगह बना सकते हैं। कहते हैं कि जब आप फ्लाइट में मणिपुर के करीब पहुंचते हो तो राज्य की खूबसूरती देखकर आपका प्लेन से कूदने का मन करेगा। मणिपुर को भारत का गहना भी कहा जाता है क्योंकि यह नौ पहाड़ियों से घिरा हुआ है और बीच में एक अंडाकार आकार की घाटी है, जो प्राकृतिक रूप से बना एक गहना है। किंतु आज यह सुंदर दृश्यों से पटा राज्य हिंसा के कारण अशांत है। मणिपुर में मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग के विरोध में तीन मई को अधिकतम दस जिलों में 'आदिवासी एकता मार्च' के बाद हिंसा हुईं। इस दौरान कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हिंसक झड़प हो गई थी। हिंसा कुकी समुदाय की ओर से शुरु की गई तब से ही वहां हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। दुर्भाग्य इस बात का है कि कुछ अर्बन नक्सलियों जैसे कुत्सित मानसिकता के बुद्धिजीवियों द्वारा किसी भी राज्य में कहीं भी हिंसा हो , उसे जातीय संघर्ष अथवा धार्मिक रंग दे देने का नैरेटिव सैट कर दिया जाता है, जिस कारण आम समाज वास्तविकता से दूर समाचार सुनकर ही अपना रूख तय कर लेता है।

मणिपुर हिंसा में अनुमान है कि 130 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं तथा लगभग 435 लोग घायल हुए हैं। यहीं नहीं 65,000 से अधिक लोग अपना घर छोड़ शरणार्थी शिविरों में डर के साये में जीवन बसर कर रहे हैं। मणिपुर में हिंसा की शुरुआत करने वाले कुकी समुदाय के विधायक चाहे वे किसी भी पार्टी के हों, अब वे मणिपुर से अलग राज्य की मांग का समर्थन कर रहे हैं, जबकि 90 प्रतिशत जमीन पर इसी समुदाय का कब्जा है। इनको हिंसा के लिए उकसाने वालों की भी निष्पक्ष जाँच अत्यंत आवश्यक है। दूसरी तरफ, प्राचीन भारतीय संस्कृति को सहेजकर रखने वाला मैतई समुदाय भले ही आज अपने ही क्षेत्र में हाशिये पर पहुंच गया है, लेकिन वह अलग राज्य नहीं चाहता अपितु राज्य को बांटने का विरोध कर रहा है। मैतेई समुदाय का भूमि से भावनात्मक जुड़ाव है। यह घाटी के मैदानी इलाकों में रहने वाले 53 प्रतिशत बहुसंख्यक मैतेई समुदाय और पहाड़ियों में रहने वाले 16 प्रतिशत अल्पसंख्यक कहे जाने वाले कुकी आदिवासी लोगों के बीच संघर्ष है। मैतेई लोग मणिपुर में राजनीतिक सत्ता पर नियंत्रण रखते हैं, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में कुकी समुदाय कानून द्वारा प्रदत्त सुरक्षा चक्र में 90 प्रतिशत क्षेत्र में कब्जा जमा कर बैठा है । पिछली सरकारों में वोट के लालच में म्यांमार व बांग्लादेश सहित बाहरी लोगों को भी अनुसूचित जनजाति में शामिल कर मणिपुर के 90 प्रतिशत पहाड़ी क्षेत्र में योजनाबद्ध ढंग से बसाकर कानूनी रूप से संरक्षित किया गया है जो अब उच्च न्यायालय के एक निर्देश के बाद मैतेई समुदाय को मंजूर नहीं है। ऐसा कानून किसी भी राज्य में लागू नहीं है कि अपने ही राज्य में बहुसंख्यक समुदाय जमीन ना खरीद सकें अथवा अपने ही राज्य के 10 प्रतिशत हिस्से में सीमित हो जाये । यह दुख , यह अन्याय मैतेई समुदाय बहुत अर्से से सहन करता आ रहा है और अब उच्च न्यायालय द्वारा जल्दबाजी में दिया गया अपरिपक्व निर्देश मैतेई समुदाय के जख्मों को हरा कर गया उनकी सुप्त उम्मीदों ने अंगडाई लेना शुरु कर दिया और जब मैतेई समुदाय ने जमीन खरीदने का अधिकार प्राप्त करने के लिए अपने समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की माँग उठाई तो मैतेई समुदाय के मार्च पर कुकी समुदाय ने आक्रमण कर दिया जो पिछले दो महीने से जारी है।

मैतेई समुदाय हिंदू हैं। वे मणिपुर में बहुसंख्यक है। वर्तमान में यह समुदाय केवल इंफाल घाटी में रहने को मजबूर हैं। इसकी वजह यह है कि उन पर अपने ही राज्य के पर्वतीय इलाकों में संपत्ति खरीदने और खेती करने पर कानूनी तौर पर रोक लगाई गई है। यहां इसाई बन चुके कुकी और नागा समुदाय के लोग रहते हैं, जिनकी आबादी 40 प्रतिशत है किंतु ये मणिपुर के कुल क्षेत्रफल के 90 प्रतिशत हिस्से में रहते हैं। मैतेई समुदाय की जनसंख्या करीब 53 प्रतिशत है, लेकिन वह करीब 10 प्रतिशत क्षेत्र में ही रहने को विवश है। कानूनन रूप से मैतेई पर्वतीय क्षेत्रों में नहीं रह सकता। यद्यपि वर्ष 1949 में भारत संघ में राज्य के विलय से पहले मैतेई को जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त थी। बाद में क्यों बदल दी गई यह चुनावी गणित लोगों की समझ से बाहर है। मैतेई समुदाय मानता है कि एसटी का दर्जा समुदाय को ‘संरक्षित’ करने और उनकी ‘पैतृक भूमि, परंपरा, संस्कृति एवं की रक्षा’ के लिये आवश्यक है। मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी हिस्से में जमीन नहीं खरीद सकते। वहीं मैतेई समुदाय का कहना है कि जब हम पहाड़ों पर जमीन नहीं खरीद सकते तो कुकी घाटी में क्यों खरीद सकते हैं। कुकी और नागा समुदाय के इंफाल घाटी में रहने पर कोई कानूनी बंदिश नहीं है। यह असंतुलन , यह अन्याय ही मोहब्बत की दूकान में नफरत का जहर घोल रही है।

भगवान कृष्ण को मानने वाला यह राज्य समृद्ध संस्कृति का प्रतीक माना जाता रहा है। यहां पोलो और फील्ड हॉकी जैसे खेल काफी लोकप्रिय हैं। मणिपुर की संस्कृति ने मणिपुरी नामक एक स्वदेशी नृत्य रूप का प्रचार किया, जहां पुरुष और महिला दोनों समान सहजता से प्रदर्शन करते हैं। यह नृत्य मुख्यतः हिन्दू वैष्णव प्रसंगों पर आधारित होता है जिसमें राधा और कृष्ण के प्रेम प्रसंग प्रमुख है।उनका धर्म भगवान कृष्ण के जीवनकाल को दर्शाने वाले नृत्य नाटकों पर केंद्रित है।

उल्लेखनीय है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, मणिपुर जर्मन गुट के जापानी और इंग्लैंड के मित्र देशों की सेनाओं के बीच लड़ाई का केंद्र था। युद्ध के बाद, महाराजा बोधचंद्र ने राज्य को भारत में विलय करने के लिए परिग्रहण संधि पर हस्ताक्षर किए। 1956 में इसे केंद्र शासित प्रदेश और 1972 में पूर्ण राज्य बना दिया गया।

मणिपुर की मैतेई भाषा जिसे मणिपुरी भी कहते है, भारत के मणिपुर प्रान्त एवं निचले असम के लोगों द्वारा बोली जाने वाली प्रमुख भाषा है। मणिपुरी भाषा, मैेतेई लोगों की मातृभाषा है। 

वर्तमान में कुछ आतंकी संगठनों के सहयोग से व वोटों की राजनीति के स्वार्थ-सिद्धि के कारण यहां के आदिवासी जनजातीय समुदाय को हिंसा की आग में झौंका जा रहा है । मणिपुर में हिंसा की घटनाएं कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रही हैं। हिंसा और आगजनी की इन घटनाओं के बीच बीजेपी नेताओं के घरों और ऑफिस को निशाना बनाया गया है। मणिपुर में केंद्रीय मंत्री आरके रंजन सिंह के आवास को गुस्साई भीड़ द्वारा आग के हवाले के किए जाने के अगले ही दिन बीजेपी के कई ऑफिस में तोड़फोड़ की खबर सामने आई। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष शारदा देवी के आवास पर भी हमला किया गया। मणिपुर में दो महीने से अधिक समय से जातीय हिंसा जारी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी मणिपुर का दौरा किया था और राज्य में शांति बहाल करने के अपने प्रयासों के तहत विभिन्न वर्गों के लोगों से मुलाकात की थी। बावजूद इसके हिंसा की घटनाएं कम नहीं हुई और विपक्षी दल इसको लेकर बीजेपी पर हमलावर हैं।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी हिंसा के कारणों की समीक्षा के बाद एक जून को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि हाईकोर्ट के जल्दबाजी में दिए एक फैसले की वजह से मणिपुर में हिंसा भड़की है। मणिपुर में हिंसा भड़कने की बड़ी वजह हाईकोर्ट के द्वारा मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग को स्वीकार करना है। हाईकोर्ट के इसी फैसले के बाद मैतेई समुदाय निशाने पर आ गया और राज्य में हिंसा भड़क उठी। सेना की तैनाती के बावजूद 75 हजार से अधिक लोगों को पलायन करना पड़ा। दूसरी बड़ी वजह हाईकोर्ट के फैसले के अतरिक्त मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह सरकार द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों में अवैध कब्जों पर कार्रवाई और अफीम की खेती पर शिकंजा कसना भी है क्योंकि इन्हीं धंधों से पूर्वोत्तर के आतंकी संगठनों को खाद-पानी मिलता था।

ऑल मैती काउंसिल के सदस्य चांद मैतेई पोशांगबाम के अनुसार कुकी समुदाय के लोग म्यांमार और बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों पर कार्रवाई से नाराज हैं। 

इधर मैतेई समुदाय के लोगों को यह चिंता भी सता रही है कि आतंकी संगठनों व धार्मिक ठेकेदारों की कुछ राजनैतिक दलों के बीच जुगलबंदी से बाहरी लोगों को अवैध रूप से बसाने का कार्य चल रहा है जिससे हमारा अस्तित्व खतरे में है। उनका कहना है कि 1970 के बाद पर यहां कितने रिफ्यूजी आए हैं, इसकी गणना की जाए और यहां पर एनआरसी लागू किया जाए। आंकड़े बताते हैं कि इनकी आबादी 17 प्रतिशत से बढ़कर 24 फीसदी हो गई है। यह चिंता जायज भी है। कुकी समुदाय को यह चिंता है कि यदि मैतेई समुदाय अनुसूचित जनजाति में शामिल हो गया तो वे कहीं भी जमीन खरीद सकते हैं फिर उनके पर्वतीय इलाके में चल रहे अवैध धंधे व अफीम की खेती चौपट हो जायेगी , जिससे उनकी आमदनी पर असर पड़ेगा ।

समस्या गंभीर है किंतु हिंसा को रोकने के लिए विश्वास उत्पन्न करना ही पड़ेगा। एक ओर मैतेई समुदाय को समान अधिकार देने होंगे तो दूसरी ओर कुकी समुदाय को अवैध कार्यों के स्थान पर कुटीर उद्योगों के माध्यम से तथा रोजगार देकर राज्य के विकास हेतु आगे लाना होगा, तभी चिर् शांति स्थापित की जा सकती है ।

- स्तंभकार

डॉ उमेश प्रताप वत्स

 लेखक : प्रसिद्ध कथाकार, कवि एवं स्तंभकार है ।

umeshpvats@gmail.com

#14 शिवदयाल पुरी, निकट आइटीआइ

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आलेख - मणिपुर के बाद हरियाणा में भी दंगों का नैरेटिव सैट किया जा रहा है

 आलेख - मणिपुर के बाद हरियाणा में भी दंगों का नैरेटिव सैट किया जा रहा है 

- डॉ उमेश प्रताप वत्स 


पिछले काफी समय से कानूनी रूप से शांत चल रहे हरियाणा में भी मणीपुर हिंसा का अध्याय दोहराने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। पशु तस्करों के लिए स्वर्ग कहे जाने वाले मेवात-नूंह क्षेत्र में हिंसा का यह अभी तक मिली जानकारी के अनुसार प्रायोजित कांड प्रदर्शित हो रहा है जिस पर धडल्ले से मीडिया ट्रैल भी चल रहा है।

आधी-अधूरी जानकारी के साथ मीडिया कर्मी चीख-चीखकर आक्रोशित मुद्रा में यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि दो समुदाय में आपसी भिडंत हुई जिसमें 70 से भी ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। बहुत ही सिद्धस्थता से प्रायोजित हमला करने व कराने वालों का नाम छिपाया जा रहा है और आम भक्त समाज को हर वाक्य में बजरंग दल व विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता बताकर नैरेटिव सैट किया जा रहा है। इस सैट नैरेटिव का सीधा-सीधा अर्थ है कि बजरंग दल के लोग शोभायात्रा निकाल रहे थे जिसमें मोनू को आमंत्रित किया गया था जिसकी भनक लगते ही दूसरे समुदाय के लोग भड़क गए, दोनों ओर से पत्थरबाजी हुई जिसमें दो सुरक्षाकर्मी मारे गए व एक सामान्य व्यक्ति। अब यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि नैरेटिव कैसे सैट किया गया है । पहले नैरेटिव के अंतर्गत आम स्थानीय जन समाज श्रावण मास के चलते निकट प्रसिद्ध शिव मंदिर पर जल चढ़ाने शोभायात्रा के रूप में जा रहे थे जिसमें शिव शंकर में आस्था रखने वाले सभी हिंदू भक्त समाज भाग ले रहे थे। उन भक्तों में निश्चित ही बजरंग दल के कार्यकर्ता व विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता भी होंगे क्योंकि वे भी शिव के भक्त है कोई आतंकी तो नहीं जबकि बताया गया कि बजरंग दल व विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए शोभायात्रा के रूप में जा रहे थे। ताकि आम समाज में यह संदेश जाये कि शोभायात्रा में आम जन समाज न होकर संघ के कार्यकर्ता थे जिन्होंने दूसरे समुदाय को हमला करने पर विवश कर दिया।

दूसरा नैरेटिव सैट किया गया कि अन्य समुदाय ने मोनू के निमंत्रण पर नाराज़ होकर विरोध किया। पहली बात इसकी अभी तक कोई जानकारी नहीं मिली कि मोनू इस शोभायात्रा में भाग ले रहा था।दूसरा मोनू के नेतृत्व में कार्यक्रम का आयोजन नहीं हो रहा था। तीसरा आम समाज को निशाना बनाने की बजाय मोनू के विरुध्द व्यक्तिगत शिकायत की जा सकती थी। चौथा मोनू कोई आतंकवादी नहीं अपितु रात-दिन पुलिस की नाक के नीचे खुलेआम गौकशी करने वाले राक्षसों की हत्या का आरोपी है जो कि अभी तक कोर्ट में साबित भी नहीं हुआ है। पाँचवा यह दूसरा समुदाय क्या है ? पारसी ,चीनी ,जापानी , इसाई , सिख , जैन ,बौद्ध या अफ्रीकन । मुस्लिम समुदाय कहने में क्या इन एंकरों के मुँह में दही जम जाती है । जब आप आम समाज को तो बार-बार बजरंग दल के कार्यकर्ता कहकर झूठ परोस रहे हो तो क्या सीधा स्पष्ट मुस्लिम समुदाय सत्य बोलने में कोई विवशता है अथवा षड्यंत्र?

तीसरा नैरेटिव सैट किया गया कि भीड़ द्वारा की गई हिंसा में दो सुरक्षा कर्मी व एक आम व्यक्ति मारा गया जो बाद में बढ़कर 6 तक बतायें जा रहे हैं। भीड़ की हिंसा बताने की बजाय यह क्यों नहीं कहा गया कि जब प्रायोजित हिंसा को रोकने के लिए पुलिस ने प्रयास किया तो आक्रमणकारियों ने उन्हें भी नहीं बख्शा तथा उनके साथ एक शिवभक्त को भी मौत के घाट उतार दिया। भीड़ में तो यह भी क्या लगाया जा सकता है कि शोभायात्रा वालों ने ही सभी हत्याएं की होंगी।

मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है।जो बिना डरे बिना रुके बिना लोभ-लालच के जनता तक केवल सत्य पहुँचाता है किंतु यहां तो मीडिया स्वयं विरोधी पक्ष की भूमिका में खड़ा हो जाता है। ऐसा तो कभी नहीं माना जा सकता कि जो सरकार के साथ है वह गलत है और जो विपक्ष के साथ है वह सहानुभूति का पात्र? यह भी सही नहीं है कि जो बहू संख्यक है वह सदा से गलत है और जो अल्पसंख्यक है वह सब शांतिदूत हैं।

अभी देश मणिपुर हिंसा के शोर-शराबे से बाहर भी नहीं निकला था कि अब रात-दिन टीवी पर हिंसा-हिंसा सुनकर नकारात्मकता के शिखर की ओर बढ़ रहा है। 

उल्लेखनीय है कि हरियाणा के मेवात-नूंह इलाके में सोमवार को स्थानीय शिवभक्तों की शोभायात्रा निकालने के दौरान मुस्लिम समाज के कुछ हिंसक प्रवृत्ति के लोगों ने शोभायात्रा पर प्रायोजित हमला किया जिसमें दो होमगार्ड सहित 6 लोगों की मौत हो गई। मेवात में हिंसा को लेकर 26 FIR दर्ज की गई हैं। जबकि 116 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है।

दरअसल, नूंह में हिंदू संगठनों ने आम समाज की अनुशंसा पर प्रतिवर्ष की भांति इस बार भी बृजमंडल यात्रा निकालने का आह्वान किया था। प्रशासन से इसकी वैधानिक रूप से स्वीकृति भी ली गई थी। जब सोमवार को शोभायात्रा मंदिर के पास पहुँचने वाली थी तभी पूर्ण रूप से फुल तैयारी के साथ बैठे हुए मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इस यात्रा पर पथराव कर दिया। देखते ही देखते यह हिंसा में बदल गया। सैकड़ों कारों को आग लगा दी गई। साइबर थाने पर भी हमला किया गया। फायरिंग भी हुई। पुलिस पर भी हमला हुआ। विचारणीय प्रश्न यह है कि अचानक बारूद , बंदूकें , गोलियां , डंडे-पत्थर ये सब एक दम कहां से आ गये।

नूंह के बाद सोहना में भी पथराव और फायरिंग हुई। आम समाज के सैकड़ों वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। पता नहीं कैसे एक व्यक्ति अपनी कमाई से गाड़ी खरीद पाता है किंतु ये निर्दयी बहशी लोग उसके सपनों को क्षणभर में आग में झौंक देते हैं।

बजरंग दल ने हिंसा के विरोध में आज देशव्यापी प्रदर्शन बुलाया है। इसका असर जम्मू से लेकर दिल्ली-यूपी तक देखने को मिल रहा है। दिल्ली में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने बदरपुर बॉर्डर जाम कर दिया। उधर, यूपी के संभल और सहारनपुर, मध्यप्रदेश के भोपाल समेत कई शहरों में भी बजरंग दल ने विरोध प्रदर्शन किया। आम हिंदू समाज भी मीडिया ट्रोल व मुस्लिम समुदाय के कुछ हिंसक लोगों द्वारा की गई इस घटना से आक्रोशित हैं और वे शांतिमार्च निकालकर लगभग प्रत्येक जिले में नूंह की इस वीभत्स घटना के विरोध में राष्ट्रपति के नाम जिला उपायुक्तों को ज्ञापन दे रहे हैं ताकि इन मानवता के दुश्मनों के विरुध्द सख्त से सख्त कार्रवाई की जाये तथा इनकी संपत्ति कुर्क कर पीड़ितों को मुआवजा दिया जाए।

आज चौथे दिन एक भी बयानवीर , काली पोशाक वाला , मणिपुर मुद्दे पर पूरे देश की गति रोक देने वाले अभी तक भी इन शिवभक्तों के आँसू पौंछने नहीं निकले। ना कोई माँ-माटी-मानुष की बात कर रहा है ना कोई भक्ति के रस में डूबे , झूमते हुए भक्तों पर अचानक हमले से फैली हिंसा पर बयान दे रहा है ,ना कोई किसी भक्त के घर ढांढस बंधाने गया। यह कैसी राजनीति है? यह कैसा दोगलापन है ? यह कैसा नैरेटिव सैट किया जा रहा है। मुझे लगता है कि नैरेटिव स्पष्ट है , दंगे कराओ , दंगाइयों को प्रोत्साहित करो, उनकी हर संभव मदद करो, जान-माल का अधिक से अधिक नुकसान करवाओ फिर सत्तासीन पार्टी को कोसना शुरु कर दो ताकि लोगों में यह संदेश जाये कि सरकार की नाक के नीचे दंग हो रहे हैं और सरकार को इसका कोई फर्क नहीं पड़ता । सरकार दंगे रोकने में विफल है आदि आदि। वोट बैंक के लिए यह बहुत ही खतरनाक मानसिकता है।

हमला करने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग हो सकते हैं किंतु हमला कराने वालों का कोई समुदाय नहीं है। वे लाश पर हाथ सेंकने वाले बहुत ही खतरनाक लोग है। वही लोग ए सी की ढंडी हवा में बैठकर देश विरोधी नैरेटिव सैट करते हैं। हिंदू समाज के लोग क्लीयर है जो धर्म अथवा संस्कृति के विरुध्द कार्य करेगा वे उसके विरुद्ध है फिर वह चाहे कोई हिंदू संत हो , चाहे अपना ही मनोज मुन्ताशिर हो या घर का व्यक्ति। जबकि राष्ट्र विरोधी गुट का कोई विचार , कोई सिद्धांत क्लीयर नहीं है। वे मौकापरस्त है , समय के अनुकूल रंग बदलते हैं । वे जाति-धर्म क्या राष्ट्र को भी अपने स्वार्थ के लिए ध्वस्त करने को तत्पर रहते हैं। मीडिया का एक वर्ग उन्हें प्रोत्साहित करता है तथा उनकी वास्तविकता छिपाने का भयानक अपराध करता है।

2024 के चुनाव निकट है। देश की जनता को अभी कई मणिपुर , कई मेवात-नूंह जैसे प्रायोजित घटनाक्रम देखने के लिए तैयार रहना होगा क्योंकि ये लोग वर्तमान सरकार को अपदस्थ करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। ये बहुत ही शातिर , खतरनाक मानसिकता के लोग हैं। इनकी कोई जाति कोई धर्म कोई समुदाय नहीं है। ये जाति को जाति से , एक धर्म को दूसरे धर्म से तथा बहू संख्यक पर दबाव बनाने के लिए कुछ अल्पसंख्यकों की अल्पबुद्धि का लाभ उठाते हुए अपनी सत्ता के लिए देश को गर्त में भी उतार सकते हैं।

अभी नूंह में कर्फ्यू लगा दिया गया है । हिंसा पर काबू पाने के लिए अर्धसैनिक बलों की 20 टुकड़ियों को तैनात किया गया है। नूंह, पलवल, मानेसर, सोहाना और पटौदी में इंटरनेट बंद कर दिया गया। सरकार अब स्थिति को नियंत्रण में बता रही है जबकि हिंदू समाज को रोष इस बात को लेकर है कि प्रत्येक घटनाओं में पहले ये लोग हम पर हमला कर देते हैं और जब प्रतिक्रिया होने लगती है तो स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा बलों की कंपनियां आ जाती है। आर ए एफ ने कई जगहों पर फ्लैग मार्च निकाला।

मेवात में जिस तरह से पिछले कई वर्षों से मुस्लिम समुदाय की ओर से एक से बढ़कर एक वारदात की गई और सजा मिलने की बजाय राजनैतिक संरक्षण मिला, उससे उनका हौंसला बहुत बढ़ गया है। यहां आये दिन लव जेहाद के मामले , अवैध कब्जे , बेधड़क खनन के मामले , कानून को हाथ में लेने के मामले, लड़कियों को छेड़ने के मामले और विरोध करने पर हत्या तक कर देना , यह प्रतिदिन की बात हो गई है। नूंह की घटना कोई नई बात नहीं है ,इनका पिछला रिकॉर्ड ओर भी खतरनाक है।


28 मार्च 2018 को जब पुलिस वांछित एटीएम लुटेरे रफीक उर्फ ​​​​बच्ची को गिरफ्तार करने के लिए राहड़ी गांव पहुंची तो राहड़ी के 100 से अधिक की संख्या में ग्रामीणों द्वारा कथित तौर पर पुलिस पर पत्थरों से हमला किए जाने के बाद 13 पुलिसकर्मी घायल हो गए थे । इसी तरह 9 मई मेवात के घाटा शमसाबाद के 70 ग्रामीणों ने पुलिस पर उस समय हमला कर दिया जब वे कुख्यात एटीएम चोर साहिद को पकड़ने गए। ग्रामीण अपराधी को छुड़ाने में कामयाब रहे। 7 अगस्त को मेवात में ग्रामीणों ने वांछित अपराधी शब्बीर को पकड़ने के लिए चलाए गए अभियान के दौरान पुलिस पर हमला कर दिया , जिसमें एक युवक की मौत हो गई। मौत का कारण अभी भी स्पष्ट नहीं हो पाया है। ये तीनों मामले 2018 के हैं। गांवों में भारी संख्या में मुस्लिम हैं और यह समुदाय मेवात क्षेत्र पर हावी है जो हरियाणा और राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्र पर अपना नशे व सट्टे का धडल्ले से कारोबार करता है। वैसे भी राजस्थान के अलवर सहित मेवात का पूरा क्षेत्र पशु तस्करी गिरोहों का गढ़ बना हुआ है। जब भी इन पर कार्रवाई करने की कोशिश होती है तो सारा धर्म निरपेक्ष समाज इन अधर्मियों की सुरक्षा में आगे आ जाता है। इनकी अपराधिक प्रवृत्ति, अपराधिक शक्ति के चलते ही राष्ट्र विरोधी हर राजनैतिक दल इनसे निकटता बढ़ाने का प्रयत्न करता है। आखिर कब तक ये हमलों के मास्टर माइंड आम जन समाज के साथ ख़िलवाड़ करते रहेंगे। कब तक वोटों के लिए ये हिंसात्मक घटनाओं को अंजाम देते रहेंगे। आम समाज को भी अब आगे आकर इनके सैट नैरेटिव को समझना होगा।


 स्तंभकार

डॉ उमेश प्रताप वत्स

 लेखक : प्रसिद्ध कथाकार, कवि एवं स्तंभकार है ।

umeshpvats@gmail.com


आलेख - नूंह हिंसा के बाद उठा यह सवाल कि बड़ा अपराधी कौन हिंसा करने वाला या कराने वाला

 आलेख - नूंह हिंसा के बाद उठा यह सवाल कि बड़ा अपराधी कौन हिंसा करने वाला या कराने वाला

- डॉ उमेश प्रताप वत्स 


नूंह की बहुत ही भयावह प्रायोजित हिंसा निसंदेह अब शांत है किंतु हिंसा के अवशेष चीख-चीखकर हिंसा की निर्दयता , भयावहता का बखान कर रहे हैं। आम समाज ने प्रशासनिक कार्रवाई के बाद राहत की सांस ली होगी किंतु जिनका घरबार-परिवार तथा कारोबार सब इस हिंसा के तांडव में लुट चुका वे कभी इस घटना को भुला नहीं पायेंगे ।

हरियाणा सरकार ने भारी दबाव के बाद अपराधी लोगों पर तथा उनकी संपत्ति पर सख्त कार्रवाई प्रारंभ की है। गृहमंत्री अनिल विज इस घटना के बाद गुस्से में है उन्होंने घटना की सूचना देर से सही मिलते ही वहां फोर्स तैनात कर दी है । हिंदु समुदाय के भुक्तभोगी लोगों की पुकार सुन हरियाणा सरकार ने योगी का बुलडोजर भी इस क्षेत्र के माफियाओं के अवैध निर्माण व संपत्ति नष्ट करने के लिए वहां घटना स्थल पर भेज दिये हैं जिनकी कार्रवाई से उत्तरप्रदेश , मध्यप्रदेश, आसाम के बाद हरियाणा भी इस सूची में नामांकित हो गया है ।

आश्चर्य इस बात का है कि हमेशा की तरह अर्बन नक्सलियों के गिरोह से कुछ बुद्धिजीवी बुलडोजर की कार्रवाई को रोकने के लिए उच्च न्यायालय तक पहुंच गये तथा आइ.एन.डी.आइ.ए तथाकथित स्वयं को इंडिया कहने वाले गठबंधन की कुछ नामी पार्टियां दोषियों के व उनकी अवैध संपत्ति को बचाने हेतु संरक्षण में खड़ी हो गई है। क्यों ये लोग बार-बार धर्म विरोधी , हिंदू विरोधी अथवा देश विरोधी लोगों के संरक्षण में खुलकर सामने आ जाती है । क्यों पूरे परिदृश्य को बदलने के लिए बार-बार विमर्श बदले जाते हैं । क्यों पीड़ित हिंदू समाज पर ही उकसाने का आरोप लगाया जा रहा है ? क्यों मोनू मानेसर को ढाल बनाया जा रहा है ? क्यों वहशी-दरिन्दों को बचाने के प्रयास हो रहे हैं । भोले-भाले शिवभक्तों की बजाय दोषियों से हमदर्दी करने वालों की यह कौन-सी मानसिकता है। क्या दोष था उन निरपराध लोगों का जिन्हें गाड़ी सहित जिंदा जलाने की कौशिश की गई । क्या अपराध था उन लोगों का जिनकी सैंकड़ों खड़ी गाड़ियां फूंक दी गई । क्या बिगाड़ा था उन निर्दोष लोगों ने जिनकी जीवन-भर की पूंजी उनकी दुकाने आग के हवाले कर दी गई। इनका दोष इतना ही था कि ये किसी भी खतरे से अनजान उस जलाभिषेक यात्रा में शामिल थे जो नल्हर महादेव मंदिर से निकलकर फिरोजपुर झिरका तक जाने वाली थी। किसी ने सोचा भी नहीं था कि तीन ओर से अरावली पहाडियों की सावन माह की हरी-भरी ऊंचाइयों से घिरे भव्य शिवमंदिर के चारों ओर शांत घाटी में तथाकथित शांतिदूतों की भीड़ हिंसा का तांडव मचा देगी। 

जो लोग बजरंग दल या मोनू मानेसर द्वारा उकसाने की घटना कहकर नैरेटिव सैट करने में लगे हैं , वे बताएं कि क्या उकसाने की घटना में अचानक हजारों लोग पेट्रोल बम लेकर आ जाते हैं , क्या बिना पूर्व तैयारी के बंदूकें ,गोलियां, पिस्टल ,बारूद उपलब्ध हो जाते हैं । क्या प्रोफेशनल अपराधियों व गुंडा तत्वों की तरह सैंकडों गाड़ियों को इस तरह जला देते हैं कि मिनटों में ही वह लोहे का ढांचा मात्र रह जाये। क्या पुलिस के ऑफिस , साइबर थाने को ही जला डालते हैं ? आस-पास मुस्लिम लोग भी नहीं रहते तो कहां से आ गई यह हजारों की भीड़। किसी धार्मिक मामलें की हिंसा में साइबर थाने में रखा रिकॉर्ड जलाने का क्या उद्देश्य हो सकता है। नूंह से बीस किलोमीटर दूर बड़कली में केवल हिंदू समुदाय की लगभग 25 दूकानें जलाने का क्या अर्थ है ? स्थानीय भाजपा नेताओं के घर व व्यवसायिक केंद्रों के जलाने के पीछे कौन सी उत्तेजना काम कर रही थी। एक गरीब लड़के अभिषेक को जो कि पास के गाँव में बहुत ही निर्धन परिवार से था , घेरकर निर्दयता से मौत के घाट उतार देना कौन सी उत्तेजित कर देने वाली घटना का परिणाम है। किस उकसाने वाली घटना के बाद पत्थरों से भरे डंपर के डंपर तिमंजिला भवनों की छतों पर पहुंच जाते हैं । 

वास्तव में नूंह की घटना कोई सामान्य घटना नहीं थी और ना ही किसी उकसाने का परिणाम थी। भाजपा , बजरंग दल , मोनू मानेसर आदि के नाम से यह नैरेटिव सैट करने का प्रयास किया जा रहा है कि हमला करने वाले हमला करने को विवश हो गए थे क्योंकि उनको हमला करने के लिए हिंदू समुदाय के लोगों ने विवश कर दिया था । 

नूंह की इस वीभत्स घटना के तार राजस्थान के विधानसभा चुनाव व 2024 के केंद्र सरकार के चुनाव से जुड़ते दिखाई देते हैं । इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इस घटना की पूर्व तैयारी राजस्थान में राजनैतिक संरक्षण में बैठकर तैयार की गई हो। इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि घटना को अंजाम देने वाले लोग पड़ोसी राज्यों से बुलायें गए हो ताकि उनकी पहचान न हो सके और बलि का बकरा स्थानीय लोगों को बना दिया हो ।

इसे भी अनदेखा नहीं किया जा सकता कि राजस्थान के अलवर से सटी पहाड़ियों से गोली-बारूद चलाने वाले राजस्थान के मुस्लिम समुदाय के लोग हो। 

यह संभव है कि हरियाणा से बाहर के लोगों ने स्थानीय लोगों का सहयोग लेकर कई महीने से इस घटना की पूर्व तैयारी की। घटना में मोर्चे बनाएं गए , कौन किस मोर्चे को संभालेगा यह तय कर बकायदा उनको प्रशिक्षण दिया गया। पेट्रोल बम फेंकने के लिए मुस्लिम समुदाय के लड़कों को प्रशिक्षित किया गया। पत्थर कहां से कैसे फेंकने हैं , गोली अरावली पहाड़ी की झाड़ियों , पेड़-पौधों के पीछे से चलानी है तथा दुकानों-घरों को कैसे आग के हवाले करना है ,यह सब बिना प्रशिक्षण के संभव ही नहीं है । यह कोई एक दिन की घटना प्रायोजित नहीं थी , यदि समय रहते हरियाणा सरकार की अनुशंसा पर अतिरिक्त सैन्य बल तुरंत न पहुंच पाते तो यह कई दिनों तक हिंसा का तांडव चलता रहता। अब जब हरियाणा सरकार ने समय रहते पूरी घटना पर नियंत्रण कर लिया। पुलिस अधीक्षक वरुण सिंगला को बदलकर भिवानी से तेज तर्रार नरेन्द्र बिजारणिया को स्थानांतरित कर दिया तो धीरे-धीरे सब भेद खुलने लगे। अब आस-पास के बड़े-बुजुर्ग कह रहे हैं कि हमारे बच्चें बाहर वालों के बहकावे में आ गये थे , असली अपराधी तो दूसरे राज्यों से आये थे। अब वे यह भी मान रहे हैं कि यह कोई उकसाने वाली घटना नहीं थी बल्कि फुल तैयारी के साथ की गई घटना है। तभी इस यक्ष प्रश्न का उत्तर मिल पाएगा कि असली अपराधी कौन है जो सारी घटना के पीछे रहकर सबकों संचालित कर रहे थे ।

मीडिया बंधुओं से भी निवेदन है कि प्रिंट मीडिया के साथ ही सभी चैनल पर नूंह की वास्तविकता दिखाने का प्रयास करें ताकि फिर ऐसी घटना न हो पाए। निर्दोष लोगों को अपने जान-माल का नुकसान न उठाना पड़े अन्यथा भविष्य में फिर से ऐसी घटना की पुनरावृत्ति हो सकती है ।

 आज बुलडोजर कार्यवाई पर भी नैरेटिव सैट किया जा रहा है कि एक ही समुदाय के लोगों के घर व दुकाने गिराये जा रहे हैं जबकि पुलिस अधीक्षक का कहना है कि समुदाय देखकर नहीं अवैध निर्माण देखकर बुलडोजर चलाया जा रहा है । इन्हीं अवैध रूप से बनी दुकानों में किसी हिंदू भारद्वाज की भी किराये की दूकान थी वह भी चपेट में आयी है । इन गुंडा तत्वों ने वन-विभाग की जमीन पर सैंकड़ों दूकानें बनाई है जिनका 5-6 हजार रुपये के हिसाब से कई लाख किराया वसूल करते हैं जो कि अपराधिक गतिविधियों में लगता है। वास्तव में बुलडोजर से केवल अपराधियों के अवैध निर्माण नहीं तोड़े जा रहे अपितु उनके राजनैतिक संरक्षण से उफान पर चढ़े हौंसले तोड़े जा रहे हैं ।

 वास्तव में मुस्लिम समुदाय के उन गुंडा तत्वों से स्थानीय मुस्लिम किसान वर्ग भी परेशान हैं। अतः यदि जाँच एजेंसियाँ धैर्य के साथ मुस्लिम गाँवों के उन मोहल्लों तक भी जायें जहां हमारी पुलिस आज तक जाने से घबराती रही तो और भी बहुत कुछ उजागर होने की संभावना है । अभी अवसर भी है क्योंकि स्थानीय विरोध की गुंजाइश बहुत कम है और आवश्यकता भी। क्योंकि स्थानीय लोग ही सही जानकारी दे सकते हैं जिससे सही कार्रवाई संभव है और भविष्य के लिए दोनों समुदायों में सुरक्षा व विश्वास का वातावरण बन सके।


स्तंभकार

डॉ उमेश प्रताप वत्स

 लेखक : प्रसिद्ध कथाकार, कवि एवं स्तंभकार है ।

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