आलेख - मणिपुर में पहाड़ी बनाम घाटी हुआ जंग का मैदान
-डॉ उमेश प्रताप वत्स
मणिपुर को भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाता है। मणिपुर के हरे-भरे मखमली पहाड़ और प्राकृतिक दृश्य हर किसी के दिल में अपनी जगह बना सकते हैं। कहते हैं कि जब आप फ्लाइट में मणिपुर के करीब पहुंचते हो तो राज्य की खूबसूरती देखकर आपका प्लेन से कूदने का मन करेगा। मणिपुर को भारत का गहना भी कहा जाता है क्योंकि यह नौ पहाड़ियों से घिरा हुआ है और बीच में एक अंडाकार आकार की घाटी है, जो प्राकृतिक रूप से बना एक गहना है। किंतु आज यह सुंदर दृश्यों से पटा राज्य हिंसा के कारण अशांत है। मणिपुर में मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग के विरोध में तीन मई को अधिकतम दस जिलों में 'आदिवासी एकता मार्च' के बाद हिंसा हुईं। इस दौरान कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हिंसक झड़प हो गई थी। हिंसा कुकी समुदाय की ओर से शुरु की गई तब से ही वहां हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। दुर्भाग्य इस बात का है कि कुछ अर्बन नक्सलियों जैसे कुत्सित मानसिकता के बुद्धिजीवियों द्वारा किसी भी राज्य में कहीं भी हिंसा हो , उसे जातीय संघर्ष अथवा धार्मिक रंग दे देने का नैरेटिव सैट कर दिया जाता है, जिस कारण आम समाज वास्तविकता से दूर समाचार सुनकर ही अपना रूख तय कर लेता है।
मणिपुर हिंसा में अनुमान है कि 130 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं तथा लगभग 435 लोग घायल हुए हैं। यहीं नहीं 65,000 से अधिक लोग अपना घर छोड़ शरणार्थी शिविरों में डर के साये में जीवन बसर कर रहे हैं। मणिपुर में हिंसा की शुरुआत करने वाले कुकी समुदाय के विधायक चाहे वे किसी भी पार्टी के हों, अब वे मणिपुर से अलग राज्य की मांग का समर्थन कर रहे हैं, जबकि 90 प्रतिशत जमीन पर इसी समुदाय का कब्जा है। इनको हिंसा के लिए उकसाने वालों की भी निष्पक्ष जाँच अत्यंत आवश्यक है। दूसरी तरफ, प्राचीन भारतीय संस्कृति को सहेजकर रखने वाला मैतई समुदाय भले ही आज अपने ही क्षेत्र में हाशिये पर पहुंच गया है, लेकिन वह अलग राज्य नहीं चाहता अपितु राज्य को बांटने का विरोध कर रहा है। मैतेई समुदाय का भूमि से भावनात्मक जुड़ाव है। यह घाटी के मैदानी इलाकों में रहने वाले 53 प्रतिशत बहुसंख्यक मैतेई समुदाय और पहाड़ियों में रहने वाले 16 प्रतिशत अल्पसंख्यक कहे जाने वाले कुकी आदिवासी लोगों के बीच संघर्ष है। मैतेई लोग मणिपुर में राजनीतिक सत्ता पर नियंत्रण रखते हैं, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में कुकी समुदाय कानून द्वारा प्रदत्त सुरक्षा चक्र में 90 प्रतिशत क्षेत्र में कब्जा जमा कर बैठा है । पिछली सरकारों में वोट के लालच में म्यांमार व बांग्लादेश सहित बाहरी लोगों को भी अनुसूचित जनजाति में शामिल कर मणिपुर के 90 प्रतिशत पहाड़ी क्षेत्र में योजनाबद्ध ढंग से बसाकर कानूनी रूप से संरक्षित किया गया है जो अब उच्च न्यायालय के एक निर्देश के बाद मैतेई समुदाय को मंजूर नहीं है। ऐसा कानून किसी भी राज्य में लागू नहीं है कि अपने ही राज्य में बहुसंख्यक समुदाय जमीन ना खरीद सकें अथवा अपने ही राज्य के 10 प्रतिशत हिस्से में सीमित हो जाये । यह दुख , यह अन्याय मैतेई समुदाय बहुत अर्से से सहन करता आ रहा है और अब उच्च न्यायालय द्वारा जल्दबाजी में दिया गया अपरिपक्व निर्देश मैतेई समुदाय के जख्मों को हरा कर गया उनकी सुप्त उम्मीदों ने अंगडाई लेना शुरु कर दिया और जब मैतेई समुदाय ने जमीन खरीदने का अधिकार प्राप्त करने के लिए अपने समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की माँग उठाई तो मैतेई समुदाय के मार्च पर कुकी समुदाय ने आक्रमण कर दिया जो पिछले दो महीने से जारी है।
मैतेई समुदाय हिंदू हैं। वे मणिपुर में बहुसंख्यक है। वर्तमान में यह समुदाय केवल इंफाल घाटी में रहने को मजबूर हैं। इसकी वजह यह है कि उन पर अपने ही राज्य के पर्वतीय इलाकों में संपत्ति खरीदने और खेती करने पर कानूनी तौर पर रोक लगाई गई है। यहां इसाई बन चुके कुकी और नागा समुदाय के लोग रहते हैं, जिनकी आबादी 40 प्रतिशत है किंतु ये मणिपुर के कुल क्षेत्रफल के 90 प्रतिशत हिस्से में रहते हैं। मैतेई समुदाय की जनसंख्या करीब 53 प्रतिशत है, लेकिन वह करीब 10 प्रतिशत क्षेत्र में ही रहने को विवश है। कानूनन रूप से मैतेई पर्वतीय क्षेत्रों में नहीं रह सकता। यद्यपि वर्ष 1949 में भारत संघ में राज्य के विलय से पहले मैतेई को जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त थी। बाद में क्यों बदल दी गई यह चुनावी गणित लोगों की समझ से बाहर है। मैतेई समुदाय मानता है कि एसटी का दर्जा समुदाय को ‘संरक्षित’ करने और उनकी ‘पैतृक भूमि, परंपरा, संस्कृति एवं की रक्षा’ के लिये आवश्यक है। मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी हिस्से में जमीन नहीं खरीद सकते। वहीं मैतेई समुदाय का कहना है कि जब हम पहाड़ों पर जमीन नहीं खरीद सकते तो कुकी घाटी में क्यों खरीद सकते हैं। कुकी और नागा समुदाय के इंफाल घाटी में रहने पर कोई कानूनी बंदिश नहीं है। यह असंतुलन , यह अन्याय ही मोहब्बत की दूकान में नफरत का जहर घोल रही है।
भगवान कृष्ण को मानने वाला यह राज्य समृद्ध संस्कृति का प्रतीक माना जाता रहा है। यहां पोलो और फील्ड हॉकी जैसे खेल काफी लोकप्रिय हैं। मणिपुर की संस्कृति ने मणिपुरी नामक एक स्वदेशी नृत्य रूप का प्रचार किया, जहां पुरुष और महिला दोनों समान सहजता से प्रदर्शन करते हैं। यह नृत्य मुख्यतः हिन्दू वैष्णव प्रसंगों पर आधारित होता है जिसमें राधा और कृष्ण के प्रेम प्रसंग प्रमुख है।उनका धर्म भगवान कृष्ण के जीवनकाल को दर्शाने वाले नृत्य नाटकों पर केंद्रित है।
उल्लेखनीय है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, मणिपुर जर्मन गुट के जापानी और इंग्लैंड के मित्र देशों की सेनाओं के बीच लड़ाई का केंद्र था। युद्ध के बाद, महाराजा बोधचंद्र ने राज्य को भारत में विलय करने के लिए परिग्रहण संधि पर हस्ताक्षर किए। 1956 में इसे केंद्र शासित प्रदेश और 1972 में पूर्ण राज्य बना दिया गया।
मणिपुर की मैतेई भाषा जिसे मणिपुरी भी कहते है, भारत के मणिपुर प्रान्त एवं निचले असम के लोगों द्वारा बोली जाने वाली प्रमुख भाषा है। मणिपुरी भाषा, मैेतेई लोगों की मातृभाषा है।
वर्तमान में कुछ आतंकी संगठनों के सहयोग से व वोटों की राजनीति के स्वार्थ-सिद्धि के कारण यहां के आदिवासी जनजातीय समुदाय को हिंसा की आग में झौंका जा रहा है । मणिपुर में हिंसा की घटनाएं कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रही हैं। हिंसा और आगजनी की इन घटनाओं के बीच बीजेपी नेताओं के घरों और ऑफिस को निशाना बनाया गया है। मणिपुर में केंद्रीय मंत्री आरके रंजन सिंह के आवास को गुस्साई भीड़ द्वारा आग के हवाले के किए जाने के अगले ही दिन बीजेपी के कई ऑफिस में तोड़फोड़ की खबर सामने आई। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष शारदा देवी के आवास पर भी हमला किया गया। मणिपुर में दो महीने से अधिक समय से जातीय हिंसा जारी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी मणिपुर का दौरा किया था और राज्य में शांति बहाल करने के अपने प्रयासों के तहत विभिन्न वर्गों के लोगों से मुलाकात की थी। बावजूद इसके हिंसा की घटनाएं कम नहीं हुई और विपक्षी दल इसको लेकर बीजेपी पर हमलावर हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी हिंसा के कारणों की समीक्षा के बाद एक जून को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि हाईकोर्ट के जल्दबाजी में दिए एक फैसले की वजह से मणिपुर में हिंसा भड़की है। मणिपुर में हिंसा भड़कने की बड़ी वजह हाईकोर्ट के द्वारा मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग को स्वीकार करना है। हाईकोर्ट के इसी फैसले के बाद मैतेई समुदाय निशाने पर आ गया और राज्य में हिंसा भड़क उठी। सेना की तैनाती के बावजूद 75 हजार से अधिक लोगों को पलायन करना पड़ा। दूसरी बड़ी वजह हाईकोर्ट के फैसले के अतरिक्त मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह सरकार द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों में अवैध कब्जों पर कार्रवाई और अफीम की खेती पर शिकंजा कसना भी है क्योंकि इन्हीं धंधों से पूर्वोत्तर के आतंकी संगठनों को खाद-पानी मिलता था।
ऑल मैती काउंसिल के सदस्य चांद मैतेई पोशांगबाम के अनुसार कुकी समुदाय के लोग म्यांमार और बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों पर कार्रवाई से नाराज हैं।
इधर मैतेई समुदाय के लोगों को यह चिंता भी सता रही है कि आतंकी संगठनों व धार्मिक ठेकेदारों की कुछ राजनैतिक दलों के बीच जुगलबंदी से बाहरी लोगों को अवैध रूप से बसाने का कार्य चल रहा है जिससे हमारा अस्तित्व खतरे में है। उनका कहना है कि 1970 के बाद पर यहां कितने रिफ्यूजी आए हैं, इसकी गणना की जाए और यहां पर एनआरसी लागू किया जाए। आंकड़े बताते हैं कि इनकी आबादी 17 प्रतिशत से बढ़कर 24 फीसदी हो गई है। यह चिंता जायज भी है। कुकी समुदाय को यह चिंता है कि यदि मैतेई समुदाय अनुसूचित जनजाति में शामिल हो गया तो वे कहीं भी जमीन खरीद सकते हैं फिर उनके पर्वतीय इलाके में चल रहे अवैध धंधे व अफीम की खेती चौपट हो जायेगी , जिससे उनकी आमदनी पर असर पड़ेगा ।
समस्या गंभीर है किंतु हिंसा को रोकने के लिए विश्वास उत्पन्न करना ही पड़ेगा। एक ओर मैतेई समुदाय को समान अधिकार देने होंगे तो दूसरी ओर कुकी समुदाय को अवैध कार्यों के स्थान पर कुटीर उद्योगों के माध्यम से तथा रोजगार देकर राज्य के विकास हेतु आगे लाना होगा, तभी चिर् शांति स्थापित की जा सकती है ।
- स्तंभकार
डॉ उमेश प्रताप वत्स
लेखक : प्रसिद्ध कथाकार, कवि एवं स्तंभकार है ।
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