रविवार, 13 अगस्त 2023

आलेख - नूंह हिंसा के बाद उठा यह सवाल कि बड़ा अपराधी कौन हिंसा करने वाला या कराने वाला

 आलेख - नूंह हिंसा के बाद उठा यह सवाल कि बड़ा अपराधी कौन हिंसा करने वाला या कराने वाला

- डॉ उमेश प्रताप वत्स 


नूंह की बहुत ही भयावह प्रायोजित हिंसा निसंदेह अब शांत है किंतु हिंसा के अवशेष चीख-चीखकर हिंसा की निर्दयता , भयावहता का बखान कर रहे हैं। आम समाज ने प्रशासनिक कार्रवाई के बाद राहत की सांस ली होगी किंतु जिनका घरबार-परिवार तथा कारोबार सब इस हिंसा के तांडव में लुट चुका वे कभी इस घटना को भुला नहीं पायेंगे ।

हरियाणा सरकार ने भारी दबाव के बाद अपराधी लोगों पर तथा उनकी संपत्ति पर सख्त कार्रवाई प्रारंभ की है। गृहमंत्री अनिल विज इस घटना के बाद गुस्से में है उन्होंने घटना की सूचना देर से सही मिलते ही वहां फोर्स तैनात कर दी है । हिंदु समुदाय के भुक्तभोगी लोगों की पुकार सुन हरियाणा सरकार ने योगी का बुलडोजर भी इस क्षेत्र के माफियाओं के अवैध निर्माण व संपत्ति नष्ट करने के लिए वहां घटना स्थल पर भेज दिये हैं जिनकी कार्रवाई से उत्तरप्रदेश , मध्यप्रदेश, आसाम के बाद हरियाणा भी इस सूची में नामांकित हो गया है ।

आश्चर्य इस बात का है कि हमेशा की तरह अर्बन नक्सलियों के गिरोह से कुछ बुद्धिजीवी बुलडोजर की कार्रवाई को रोकने के लिए उच्च न्यायालय तक पहुंच गये तथा आइ.एन.डी.आइ.ए तथाकथित स्वयं को इंडिया कहने वाले गठबंधन की कुछ नामी पार्टियां दोषियों के व उनकी अवैध संपत्ति को बचाने हेतु संरक्षण में खड़ी हो गई है। क्यों ये लोग बार-बार धर्म विरोधी , हिंदू विरोधी अथवा देश विरोधी लोगों के संरक्षण में खुलकर सामने आ जाती है । क्यों पूरे परिदृश्य को बदलने के लिए बार-बार विमर्श बदले जाते हैं । क्यों पीड़ित हिंदू समाज पर ही उकसाने का आरोप लगाया जा रहा है ? क्यों मोनू मानेसर को ढाल बनाया जा रहा है ? क्यों वहशी-दरिन्दों को बचाने के प्रयास हो रहे हैं । भोले-भाले शिवभक्तों की बजाय दोषियों से हमदर्दी करने वालों की यह कौन-सी मानसिकता है। क्या दोष था उन निरपराध लोगों का जिन्हें गाड़ी सहित जिंदा जलाने की कौशिश की गई । क्या अपराध था उन लोगों का जिनकी सैंकड़ों खड़ी गाड़ियां फूंक दी गई । क्या बिगाड़ा था उन निर्दोष लोगों ने जिनकी जीवन-भर की पूंजी उनकी दुकाने आग के हवाले कर दी गई। इनका दोष इतना ही था कि ये किसी भी खतरे से अनजान उस जलाभिषेक यात्रा में शामिल थे जो नल्हर महादेव मंदिर से निकलकर फिरोजपुर झिरका तक जाने वाली थी। किसी ने सोचा भी नहीं था कि तीन ओर से अरावली पहाडियों की सावन माह की हरी-भरी ऊंचाइयों से घिरे भव्य शिवमंदिर के चारों ओर शांत घाटी में तथाकथित शांतिदूतों की भीड़ हिंसा का तांडव मचा देगी। 

जो लोग बजरंग दल या मोनू मानेसर द्वारा उकसाने की घटना कहकर नैरेटिव सैट करने में लगे हैं , वे बताएं कि क्या उकसाने की घटना में अचानक हजारों लोग पेट्रोल बम लेकर आ जाते हैं , क्या बिना पूर्व तैयारी के बंदूकें ,गोलियां, पिस्टल ,बारूद उपलब्ध हो जाते हैं । क्या प्रोफेशनल अपराधियों व गुंडा तत्वों की तरह सैंकडों गाड़ियों को इस तरह जला देते हैं कि मिनटों में ही वह लोहे का ढांचा मात्र रह जाये। क्या पुलिस के ऑफिस , साइबर थाने को ही जला डालते हैं ? आस-पास मुस्लिम लोग भी नहीं रहते तो कहां से आ गई यह हजारों की भीड़। किसी धार्मिक मामलें की हिंसा में साइबर थाने में रखा रिकॉर्ड जलाने का क्या उद्देश्य हो सकता है। नूंह से बीस किलोमीटर दूर बड़कली में केवल हिंदू समुदाय की लगभग 25 दूकानें जलाने का क्या अर्थ है ? स्थानीय भाजपा नेताओं के घर व व्यवसायिक केंद्रों के जलाने के पीछे कौन सी उत्तेजना काम कर रही थी। एक गरीब लड़के अभिषेक को जो कि पास के गाँव में बहुत ही निर्धन परिवार से था , घेरकर निर्दयता से मौत के घाट उतार देना कौन सी उत्तेजित कर देने वाली घटना का परिणाम है। किस उकसाने वाली घटना के बाद पत्थरों से भरे डंपर के डंपर तिमंजिला भवनों की छतों पर पहुंच जाते हैं । 

वास्तव में नूंह की घटना कोई सामान्य घटना नहीं थी और ना ही किसी उकसाने का परिणाम थी। भाजपा , बजरंग दल , मोनू मानेसर आदि के नाम से यह नैरेटिव सैट करने का प्रयास किया जा रहा है कि हमला करने वाले हमला करने को विवश हो गए थे क्योंकि उनको हमला करने के लिए हिंदू समुदाय के लोगों ने विवश कर दिया था । 

नूंह की इस वीभत्स घटना के तार राजस्थान के विधानसभा चुनाव व 2024 के केंद्र सरकार के चुनाव से जुड़ते दिखाई देते हैं । इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इस घटना की पूर्व तैयारी राजस्थान में राजनैतिक संरक्षण में बैठकर तैयार की गई हो। इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि घटना को अंजाम देने वाले लोग पड़ोसी राज्यों से बुलायें गए हो ताकि उनकी पहचान न हो सके और बलि का बकरा स्थानीय लोगों को बना दिया हो ।

इसे भी अनदेखा नहीं किया जा सकता कि राजस्थान के अलवर से सटी पहाड़ियों से गोली-बारूद चलाने वाले राजस्थान के मुस्लिम समुदाय के लोग हो। 

यह संभव है कि हरियाणा से बाहर के लोगों ने स्थानीय लोगों का सहयोग लेकर कई महीने से इस घटना की पूर्व तैयारी की। घटना में मोर्चे बनाएं गए , कौन किस मोर्चे को संभालेगा यह तय कर बकायदा उनको प्रशिक्षण दिया गया। पेट्रोल बम फेंकने के लिए मुस्लिम समुदाय के लड़कों को प्रशिक्षित किया गया। पत्थर कहां से कैसे फेंकने हैं , गोली अरावली पहाड़ी की झाड़ियों , पेड़-पौधों के पीछे से चलानी है तथा दुकानों-घरों को कैसे आग के हवाले करना है ,यह सब बिना प्रशिक्षण के संभव ही नहीं है । यह कोई एक दिन की घटना प्रायोजित नहीं थी , यदि समय रहते हरियाणा सरकार की अनुशंसा पर अतिरिक्त सैन्य बल तुरंत न पहुंच पाते तो यह कई दिनों तक हिंसा का तांडव चलता रहता। अब जब हरियाणा सरकार ने समय रहते पूरी घटना पर नियंत्रण कर लिया। पुलिस अधीक्षक वरुण सिंगला को बदलकर भिवानी से तेज तर्रार नरेन्द्र बिजारणिया को स्थानांतरित कर दिया तो धीरे-धीरे सब भेद खुलने लगे। अब आस-पास के बड़े-बुजुर्ग कह रहे हैं कि हमारे बच्चें बाहर वालों के बहकावे में आ गये थे , असली अपराधी तो दूसरे राज्यों से आये थे। अब वे यह भी मान रहे हैं कि यह कोई उकसाने वाली घटना नहीं थी बल्कि फुल तैयारी के साथ की गई घटना है। तभी इस यक्ष प्रश्न का उत्तर मिल पाएगा कि असली अपराधी कौन है जो सारी घटना के पीछे रहकर सबकों संचालित कर रहे थे ।

मीडिया बंधुओं से भी निवेदन है कि प्रिंट मीडिया के साथ ही सभी चैनल पर नूंह की वास्तविकता दिखाने का प्रयास करें ताकि फिर ऐसी घटना न हो पाए। निर्दोष लोगों को अपने जान-माल का नुकसान न उठाना पड़े अन्यथा भविष्य में फिर से ऐसी घटना की पुनरावृत्ति हो सकती है ।

 आज बुलडोजर कार्यवाई पर भी नैरेटिव सैट किया जा रहा है कि एक ही समुदाय के लोगों के घर व दुकाने गिराये जा रहे हैं जबकि पुलिस अधीक्षक का कहना है कि समुदाय देखकर नहीं अवैध निर्माण देखकर बुलडोजर चलाया जा रहा है । इन्हीं अवैध रूप से बनी दुकानों में किसी हिंदू भारद्वाज की भी किराये की दूकान थी वह भी चपेट में आयी है । इन गुंडा तत्वों ने वन-विभाग की जमीन पर सैंकड़ों दूकानें बनाई है जिनका 5-6 हजार रुपये के हिसाब से कई लाख किराया वसूल करते हैं जो कि अपराधिक गतिविधियों में लगता है। वास्तव में बुलडोजर से केवल अपराधियों के अवैध निर्माण नहीं तोड़े जा रहे अपितु उनके राजनैतिक संरक्षण से उफान पर चढ़े हौंसले तोड़े जा रहे हैं ।

 वास्तव में मुस्लिम समुदाय के उन गुंडा तत्वों से स्थानीय मुस्लिम किसान वर्ग भी परेशान हैं। अतः यदि जाँच एजेंसियाँ धैर्य के साथ मुस्लिम गाँवों के उन मोहल्लों तक भी जायें जहां हमारी पुलिस आज तक जाने से घबराती रही तो और भी बहुत कुछ उजागर होने की संभावना है । अभी अवसर भी है क्योंकि स्थानीय विरोध की गुंजाइश बहुत कम है और आवश्यकता भी। क्योंकि स्थानीय लोग ही सही जानकारी दे सकते हैं जिससे सही कार्रवाई संभव है और भविष्य के लिए दोनों समुदायों में सुरक्षा व विश्वास का वातावरण बन सके।


स्तंभकार

डॉ उमेश प्रताप वत्स

 लेखक : प्रसिद्ध कथाकार, कवि एवं स्तंभकार है ।

umeshpvats@gmail.com



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