बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

कश्मीर हमारा शीश है जो कभी धड़ से अलग नही हो सकता।

श्री उमेश प्रताप वत्स ने कश्मीर मुद्दे पर हो रही बेतुकी ब्यानबाजी पर मुखर होते हुए कहा कि वार्ताकारो एवं सिरफिरे लोगो द्वारा देश को खंड-खंड करने के देशद्रोही ब्यान देना तुरंत बंद कर देना चाहिए अन्यथा देश छोडकर चला जाना चाहिए। श्री वत्स ने कहा कि कश्मीर कोई हमारा मुकुट नही जिसे किसी भी सिर पर रख दिया जाये, कश्मीर हमारा शीश है जो कभी धड़ से अलग नही हो सकता। भारत की संस्कृति को सदैव तार-तार कर देने वाली लेखिका अंरूधती राय व जिलानी के ब्यानो को केन्द्र सरकार हल्के मे न लेकर उन्हे तुरंत प्रभाव से गिरफ्तार करे, अन्यथा सारे देश मे जबरदस्त आन्दोलन खडा किया जायेगा। ये दुष्ट लोग देश की संस्कृति को दीमक की तरह चाट रहे है। इस बार मामला देश के भू-भाग का है अतः जनमानस इन्हे किसी भी तरह क्षमा नही कर सकता। यमुनानगर की जनता भी बाकि देश की तरह ही स्वयं को ठगा सा महसूस कर रही है । कश्मीर केवल कश्मीरी पण्डितो का नही अपितु सारे देश का है। श्री वत्स ने बताया कश्मीर कोई 1947 से भारत का हिस्सा नही अपितु हजारो वर्षो पूर्व निमित्त पुराण मे भी भारत का अंग दर्शाया गया है तथा महाभारत काल मे श्री कृष्ण भगवान ने राजा की मृत्यु पश्चात रानी यशोमती को सिंहासन पर बैठाया था। कश्मीर हमारा था, हमारा है, और हमारा ही रहेगा। लेखक को कलम की स्वतन्त्रता का अर्थ यह नही समझना चाहिए कि वह देशद्रोह करने को भी स्वतन्त्र है।सारा देश चाहता है कि अरून्धती राय व जिलानी को शीघ्र गिरफ्तार कर लिया जाना चाहिए।

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

हुँकार भरो’’

21 ‘‘स्वरचित कविता- हुँकार भरो’’

योग ऋषि हुँकार भरो ,

यह जग तुम्हारा ऋणी रहेगा।

जात-पात का भेद मिटाकर,

गंगा-सा साथ बहेगा।।

तुम योग की प्रत्यञ्चा पर,

अग्नि बाण चढा देना ।

इस धर्मयुद्ध मे एक नही ,

सम्पूर्ण विश्व साथ रहेगा।।

तुमने पतवार संभाली है,

भीष्ण समुद्री तुफानो में।

अब रूकना नही बढते जाना,

हर मानव अपना शीश धरेगा।।

योग का शंख बजा डाला,

गॉव-गॉव और नगर-नगर मे।

कतारबद्ध हो हर व्यक्ति,

अब राष्ट्र का निर्माण करेगा।।

भ्रष्टाचार के विरोध मे तुमने ,

पाञ्चजन्य उठा लिया है।

इस महासमर मे भारत माता,

का भरपूर विश्वास जगेगा।।

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

खिलाडियों की बल्ले-बल्ले बाकि सब थल्ले-थल्ले

खिलाडियों की बल्ले-बल्ले बाकि सब थल्ले-थल्ले

19वें राष्टमंडल खेल मिलीजुली प्रतिक्रिया के साथ समपन्न हो गए। ये खेल भारतीय खिलाडियों के लिए शिवशंकर भोले बाबा बन कर आये है जो खिलाडियों से शीघ्र प्रसन्न होकर वरदानों की बरसात कर रहे है। स्वर्णविजेता को मिलेंगे सात लाख , कम है तो चलो 15 लाख देंगे। अभी भी सन्तुष्ट नही हो चलो फिर 25 लाख दे देंगे। दे तो ज्यादा भी देते किन्तु आप शिवशंकर का स्वभाव तो जानते ही है वे राक्षस जाति को भी तो अनदेखा नही कर सकते, अब अगर वे अपने वरदान की रक्षा करने के लिए नेताओं की जेबे अधिक ढीली करवा देंगे तो अन्याय होगा। अब शिवशंकर सबके प्यारे भोले बाबा जो ठहरे, नापतोल कर सभी का ध्यान रखते है , तभी तो कलमाडी साहब की सभी गलतियां क्षमा कर यशस्वी होने का वरदान दे ही डाला, दे भी क्यों ना ! जब भस्मासुर की सभी उदण्डता भूलकर परमशक्तिशाली होने का वरदान दे सकते है, लालू को भैंसो का चारा खाने के बावजूद कुर्सी पर विराजमान होने का वरदान दे सकते है, मुलायम को राष्ट्र संस्कृति का भक्षक होने के बाद भी राष्ट्र रक्षक अर्थात् रक्षामंत्री होने का वरदान दे सकते है, मायावती को माया की सेज पर सोने का, रावणविलास पासवान को कोचवान से कोयले की खान व थाली के बैंगन की तरह लुढकते रहने का, राहुल को राहू की तरह हर कार्य मे टाँग अडाने का वरदान दे सकते है तो अपने दाढी वाले कलमाडी को (जो कल भी माडा था आज भी माडा ही है) यशस्वी होने का वरदान क्यों नही दे सकते? अन्ततः सभी मानव, राक्षस, भूत, पिशाच्, तांत्रिक है तो शिव की प्रजा ही। ओर जब शिवशंकर भाँग पीकर मूड मे और प्रसन्नावस्था मे है तो लगे हाथ मैं भी एक वरदान माँग ही लूं। हे! शिवशंकर आप बहुत भोले हो। भोला तो मैं भी हूँ तभी तो देश को चलाने का दावा करने वाले मुझे चलाकर अपना चक्कर चला रहे है। किन्तु मेरी परेशानी का कारण है कि ये आपको भी चला देते है। अतः इन्हे एक विशेष बुद्धि वरदान मे दो कि ये खिलाडियों की नींव की ओर ध्यान दें। जबकि ये तो खिलाडियों के मेहनत-पसीने द्वारा प्राप्त प्रतिष्ठा को मंजिल पर पहुंचने के बाद ही अपनी माया की चादर से हवा देते है किन्तु जब वे मंजिल तक पहुंचने के लिए खून-पसीना बहा रहे होते है तो ये एक निवाला भी उसके मुख तक जाने नही देते। देश के कितने ही खिलाडी चूँ-चूँ करती पुरानी साईकिल पर घर से 10-15 कि.मी. दूर अथक मेहनत और अभ्यास करते है, थकावट दूर करने के लिए एक कप चाय दो रोटी का सहारा लेते है। कभी-कभी भाग्यवश कही से पानी मे लस्सी वाला कलयुगी गिलास मिल जाये तो ओर बात है। ऊपर से घरवालो के ताने...."काम का न काज का दुश्मन सौ मन अनाज का" यदि शादीशुदा है तो घरवाली खेल को अपनी सौत मानकर पति को सदैव खेल से दूर रखने का ही प्रयत्न करती है। किन्तु फिर भी मेरे देश का खिलाडी शिवाजी और प्रताप की तरह दृढनिश्चयी होकर लगा रहता है। सर्दी हो या गर्मी, वर्षा हो या धुंध वो तो चूँ-चूँ करती साईकिल पर प्रतिदिन जाकर अभ्यास करता है। बेशक उसके कपडे व जूते फटे हो, स्टेडियम के स्थान पर खेत का गौहर हो, वह तो आर्थिक, सिफारिश, भूख और बीमारी के थपेडों को सहते हुए मौन तपस्वी की भांति मंजिल की ओर बढता ही जाता है। यदि आप द्वारा वरदान मे इन महिषासुरों को परहित हेतु विषेश बुद्धि मिल जाए और माया की चादर का एक टुकडा अर्थात बाद में दी जाने वाली राशि का 10% भी इन तपस्वी खिलाडियों को नींव-निर्माण के समय मिल जाये तो राष्ट्रमंडल खेल क्या ओलम्पिक मे भी तिरंगा ही तिरंगा दिखाई देगा।

बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

स्व-रचित- रागनी--‘मत ना करियो दारू का संग’

स्व-रचित- रागनी--मत ना करियो दारू का संग

मत ना करियो दारू का संग, इसमें ही समझदारी।

ना तै एक-एक करकै, सबकी मरन की आवै बारी ।।

यूं तो गुटखा पान तम्बाखू,सब है महामारी।

दारू पीकै आपा खोवै,भाजती हाण्डै नारी।।

बालक रोवै और चिल्लावै,म्हारी माँ क्यूं मारी।

जालिम मानस खाणी तनै,क्यूं लागै इतनी प्यारी।।

रै छोड दै बापू इस दारू नै, सुनलै बात हमारी।

ना तै एक-एक करकै, सबकी मरन की आवै बारी..।1।

इसनै रोकण खातिर भाईयां, कई संस्था आगै आई।

रैडक्रास नै अभियान चलाया,डी.सी. नै मोहर लगाई।।

बारी-बारी ट्रनिंग देवै, इब भी समझ लै मेरे भाई।

दारू पीकै ना गृहस्थी मै, आग लगावै भाई।।

छोड डंकनी नै दूर भगादे, ये बात मान लै म्हारी।

ना तै एक-एक करकै, सबकी मरन की आवै बारी..।2।

बाबा रामदेव बतावै , दारू घणी कसूत सै ।

गली-नालियां मै गिरते हाण्डै,थारे सामनै सबूत सै।।

फेफडे खत्म लीवर भी जावै, बिस्तर पै करै मूत सै।

धक्के मारै घर तै काढै, सारे कह कपूत सै।।

कह उमेश बात मानले, इसमे ही समझदारी ।

ना तै एक-एक करकै, सबकी मरन की आवै बारी..।3।

मत ना करियो दारू का संग इसमें ही समझदारी।

ना तै एक-एक करकै, सबकी मरन की आवै बारी-2