स्व-रचित- रागनी--‘मत ना करियो दारू का संग’
मत ना करियो दारू का संग, इसमें ही समझदारी।
ना तै एक-एक करकै, सबकी मरन की आवै बारी ।।
यूं तो गुटखा पान तम्बाखू,सब है महामारी।
दारू पीकै आपा खोवै,भाजती हाण्डै नारी।।
बालक रोवै और चिल्लावै,म्हारी माँ क्यूं मारी।
जालिम मानस खाणी तनै,क्यूं लागै इतनी प्यारी।।
रै छोड दै बापू इस दारू नै, सुनलै बात हमारी।
ना तै एक-एक करकै, सबकी मरन की आवै बारी..।1।
इसनै रोकण खातिर भाईयां, कई संस्था आगै आई।
रैडक्रास नै अभियान चलाया,डी.सी. नै मोहर लगाई।।
बारी-बारी ट्रनिंग देवै, इब भी समझ लै मेरे भाई।
दारू पीकै ना गृहस्थी मै, आग लगावै भाई।।
छोड डंकनी नै दूर भगादे, ये बात मान लै म्हारी।
ना तै एक-एक करकै, सबकी मरन की आवै बारी..।2।
बाबा रामदेव बतावै , दारू घणी कसूत सै ।
गली-नालियां मै गिरते हाण्डै,थारे सामनै सबूत सै।।
फेफडे खत्म लीवर भी जावै, बिस्तर पै करै मूत सै।
धक्के मारै घर तै काढै, सारे कह कपूत सै।।
कह उमेश बात मानले, इसमे ही समझदारी ।
ना तै एक-एक करकै, सबकी मरन की आवै बारी..।3।
मत ना करियो दारू का संग इसमें ही समझदारी।
ना तै एक-एक करकै, सबकी मरन की आवै बारी-2
भई बोहत बढिया लागी थारी यो रागनी...अर घणी शिक्षाप्रद भी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
भई बोहत बढिया...
जवाब देंहटाएंआओं देखें आज क्यों और कैसे ?विज्ञान मे,क्या होता है बवंडर
आओं देखें आज विज्ञान गतिविधियाँ मे ,बोतल मे बवंडर