हुँकार भरो’’
21 ‘‘स्वरचित कविता- हुँकार भरो’’
योग ऋषि हुँकार भरो ,
यह जग तुम्हारा ऋणी रहेगा।
जात-पात का भेद मिटाकर,
गंगा-सा साथ बहेगा।।
तुम योग की प्रत्यञ्चा पर,
अग्नि बाण चढा देना ।
इस धर्मयुद्ध मे एक नही ,
सम्पूर्ण विश्व साथ रहेगा।।
तुमने पतवार संभाली है,
भीष्ण समुद्री तुफानो में।
अब रूकना नही बढते जाना,
हर मानव अपना शीश धरेगा।।
योग का शंख बजा डाला,
गॉव-गॉव और नगर-नगर मे।
कतारबद्ध हो हर व्यक्ति,
अब राष्ट्र का निर्माण करेगा।।
भ्रष्टाचार के विरोध मे तुमने ,
पाञ्चजन्य उठा लिया है।
इस महासमर मे भारत माता,
का भरपूर विश्वास जगेगा।।
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