रविवार, 17 अक्तूबर 2010

हुँकार भरो’’

21 ‘‘स्वरचित कविता- हुँकार भरो’’

योग ऋषि हुँकार भरो ,

यह जग तुम्हारा ऋणी रहेगा।

जात-पात का भेद मिटाकर,

गंगा-सा साथ बहेगा।।

तुम योग की प्रत्यञ्चा पर,

अग्नि बाण चढा देना ।

इस धर्मयुद्ध मे एक नही ,

सम्पूर्ण विश्व साथ रहेगा।।

तुमने पतवार संभाली है,

भीष्ण समुद्री तुफानो में।

अब रूकना नही बढते जाना,

हर मानव अपना शीश धरेगा।।

योग का शंख बजा डाला,

गॉव-गॉव और नगर-नगर मे।

कतारबद्ध हो हर व्यक्ति,

अब राष्ट्र का निर्माण करेगा।।

भ्रष्टाचार के विरोध मे तुमने ,

पाञ्चजन्य उठा लिया है।

इस महासमर मे भारत माता,

का भरपूर विश्वास जगेगा।।

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