आलेख - मणिपुर के बाद हरियाणा में भी दंगों का नैरेटिव सैट किया जा रहा है
- डॉ उमेश प्रताप वत्स
पिछले काफी समय से कानूनी रूप से शांत चल रहे हरियाणा में भी मणीपुर हिंसा का अध्याय दोहराने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। पशु तस्करों के लिए स्वर्ग कहे जाने वाले मेवात-नूंह क्षेत्र में हिंसा का यह अभी तक मिली जानकारी के अनुसार प्रायोजित कांड प्रदर्शित हो रहा है जिस पर धडल्ले से मीडिया ट्रैल भी चल रहा है।
आधी-अधूरी जानकारी के साथ मीडिया कर्मी चीख-चीखकर आक्रोशित मुद्रा में यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि दो समुदाय में आपसी भिडंत हुई जिसमें 70 से भी ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। बहुत ही सिद्धस्थता से प्रायोजित हमला करने व कराने वालों का नाम छिपाया जा रहा है और आम भक्त समाज को हर वाक्य में बजरंग दल व विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता बताकर नैरेटिव सैट किया जा रहा है। इस सैट नैरेटिव का सीधा-सीधा अर्थ है कि बजरंग दल के लोग शोभायात्रा निकाल रहे थे जिसमें मोनू को आमंत्रित किया गया था जिसकी भनक लगते ही दूसरे समुदाय के लोग भड़क गए, दोनों ओर से पत्थरबाजी हुई जिसमें दो सुरक्षाकर्मी मारे गए व एक सामान्य व्यक्ति। अब यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि नैरेटिव कैसे सैट किया गया है । पहले नैरेटिव के अंतर्गत आम स्थानीय जन समाज श्रावण मास के चलते निकट प्रसिद्ध शिव मंदिर पर जल चढ़ाने शोभायात्रा के रूप में जा रहे थे जिसमें शिव शंकर में आस्था रखने वाले सभी हिंदू भक्त समाज भाग ले रहे थे। उन भक्तों में निश्चित ही बजरंग दल के कार्यकर्ता व विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता भी होंगे क्योंकि वे भी शिव के भक्त है कोई आतंकी तो नहीं जबकि बताया गया कि बजरंग दल व विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए शोभायात्रा के रूप में जा रहे थे। ताकि आम समाज में यह संदेश जाये कि शोभायात्रा में आम जन समाज न होकर संघ के कार्यकर्ता थे जिन्होंने दूसरे समुदाय को हमला करने पर विवश कर दिया।
दूसरा नैरेटिव सैट किया गया कि अन्य समुदाय ने मोनू के निमंत्रण पर नाराज़ होकर विरोध किया। पहली बात इसकी अभी तक कोई जानकारी नहीं मिली कि मोनू इस शोभायात्रा में भाग ले रहा था।दूसरा मोनू के नेतृत्व में कार्यक्रम का आयोजन नहीं हो रहा था। तीसरा आम समाज को निशाना बनाने की बजाय मोनू के विरुध्द व्यक्तिगत शिकायत की जा सकती थी। चौथा मोनू कोई आतंकवादी नहीं अपितु रात-दिन पुलिस की नाक के नीचे खुलेआम गौकशी करने वाले राक्षसों की हत्या का आरोपी है जो कि अभी तक कोर्ट में साबित भी नहीं हुआ है। पाँचवा यह दूसरा समुदाय क्या है ? पारसी ,चीनी ,जापानी , इसाई , सिख , जैन ,बौद्ध या अफ्रीकन । मुस्लिम समुदाय कहने में क्या इन एंकरों के मुँह में दही जम जाती है । जब आप आम समाज को तो बार-बार बजरंग दल के कार्यकर्ता कहकर झूठ परोस रहे हो तो क्या सीधा स्पष्ट मुस्लिम समुदाय सत्य बोलने में कोई विवशता है अथवा षड्यंत्र?
तीसरा नैरेटिव सैट किया गया कि भीड़ द्वारा की गई हिंसा में दो सुरक्षा कर्मी व एक आम व्यक्ति मारा गया जो बाद में बढ़कर 6 तक बतायें जा रहे हैं। भीड़ की हिंसा बताने की बजाय यह क्यों नहीं कहा गया कि जब प्रायोजित हिंसा को रोकने के लिए पुलिस ने प्रयास किया तो आक्रमणकारियों ने उन्हें भी नहीं बख्शा तथा उनके साथ एक शिवभक्त को भी मौत के घाट उतार दिया। भीड़ में तो यह भी क्या लगाया जा सकता है कि शोभायात्रा वालों ने ही सभी हत्याएं की होंगी।
मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है।जो बिना डरे बिना रुके बिना लोभ-लालच के जनता तक केवल सत्य पहुँचाता है किंतु यहां तो मीडिया स्वयं विरोधी पक्ष की भूमिका में खड़ा हो जाता है। ऐसा तो कभी नहीं माना जा सकता कि जो सरकार के साथ है वह गलत है और जो विपक्ष के साथ है वह सहानुभूति का पात्र? यह भी सही नहीं है कि जो बहू संख्यक है वह सदा से गलत है और जो अल्पसंख्यक है वह सब शांतिदूत हैं।
अभी देश मणिपुर हिंसा के शोर-शराबे से बाहर भी नहीं निकला था कि अब रात-दिन टीवी पर हिंसा-हिंसा सुनकर नकारात्मकता के शिखर की ओर बढ़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि हरियाणा के मेवात-नूंह इलाके में सोमवार को स्थानीय शिवभक्तों की शोभायात्रा निकालने के दौरान मुस्लिम समाज के कुछ हिंसक प्रवृत्ति के लोगों ने शोभायात्रा पर प्रायोजित हमला किया जिसमें दो होमगार्ड सहित 6 लोगों की मौत हो गई। मेवात में हिंसा को लेकर 26 FIR दर्ज की गई हैं। जबकि 116 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है।
दरअसल, नूंह में हिंदू संगठनों ने आम समाज की अनुशंसा पर प्रतिवर्ष की भांति इस बार भी बृजमंडल यात्रा निकालने का आह्वान किया था। प्रशासन से इसकी वैधानिक रूप से स्वीकृति भी ली गई थी। जब सोमवार को शोभायात्रा मंदिर के पास पहुँचने वाली थी तभी पूर्ण रूप से फुल तैयारी के साथ बैठे हुए मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इस यात्रा पर पथराव कर दिया। देखते ही देखते यह हिंसा में बदल गया। सैकड़ों कारों को आग लगा दी गई। साइबर थाने पर भी हमला किया गया। फायरिंग भी हुई। पुलिस पर भी हमला हुआ। विचारणीय प्रश्न यह है कि अचानक बारूद , बंदूकें , गोलियां , डंडे-पत्थर ये सब एक दम कहां से आ गये।
नूंह के बाद सोहना में भी पथराव और फायरिंग हुई। आम समाज के सैकड़ों वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। पता नहीं कैसे एक व्यक्ति अपनी कमाई से गाड़ी खरीद पाता है किंतु ये निर्दयी बहशी लोग उसके सपनों को क्षणभर में आग में झौंक देते हैं।
बजरंग दल ने हिंसा के विरोध में आज देशव्यापी प्रदर्शन बुलाया है। इसका असर जम्मू से लेकर दिल्ली-यूपी तक देखने को मिल रहा है। दिल्ली में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने बदरपुर बॉर्डर जाम कर दिया। उधर, यूपी के संभल और सहारनपुर, मध्यप्रदेश के भोपाल समेत कई शहरों में भी बजरंग दल ने विरोध प्रदर्शन किया। आम हिंदू समाज भी मीडिया ट्रोल व मुस्लिम समुदाय के कुछ हिंसक लोगों द्वारा की गई इस घटना से आक्रोशित हैं और वे शांतिमार्च निकालकर लगभग प्रत्येक जिले में नूंह की इस वीभत्स घटना के विरोध में राष्ट्रपति के नाम जिला उपायुक्तों को ज्ञापन दे रहे हैं ताकि इन मानवता के दुश्मनों के विरुध्द सख्त से सख्त कार्रवाई की जाये तथा इनकी संपत्ति कुर्क कर पीड़ितों को मुआवजा दिया जाए।
आज चौथे दिन एक भी बयानवीर , काली पोशाक वाला , मणिपुर मुद्दे पर पूरे देश की गति रोक देने वाले अभी तक भी इन शिवभक्तों के आँसू पौंछने नहीं निकले। ना कोई माँ-माटी-मानुष की बात कर रहा है ना कोई भक्ति के रस में डूबे , झूमते हुए भक्तों पर अचानक हमले से फैली हिंसा पर बयान दे रहा है ,ना कोई किसी भक्त के घर ढांढस बंधाने गया। यह कैसी राजनीति है? यह कैसा दोगलापन है ? यह कैसा नैरेटिव सैट किया जा रहा है। मुझे लगता है कि नैरेटिव स्पष्ट है , दंगे कराओ , दंगाइयों को प्रोत्साहित करो, उनकी हर संभव मदद करो, जान-माल का अधिक से अधिक नुकसान करवाओ फिर सत्तासीन पार्टी को कोसना शुरु कर दो ताकि लोगों में यह संदेश जाये कि सरकार की नाक के नीचे दंग हो रहे हैं और सरकार को इसका कोई फर्क नहीं पड़ता । सरकार दंगे रोकने में विफल है आदि आदि। वोट बैंक के लिए यह बहुत ही खतरनाक मानसिकता है।
हमला करने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग हो सकते हैं किंतु हमला कराने वालों का कोई समुदाय नहीं है। वे लाश पर हाथ सेंकने वाले बहुत ही खतरनाक लोग है। वही लोग ए सी की ढंडी हवा में बैठकर देश विरोधी नैरेटिव सैट करते हैं। हिंदू समाज के लोग क्लीयर है जो धर्म अथवा संस्कृति के विरुध्द कार्य करेगा वे उसके विरुद्ध है फिर वह चाहे कोई हिंदू संत हो , चाहे अपना ही मनोज मुन्ताशिर हो या घर का व्यक्ति। जबकि राष्ट्र विरोधी गुट का कोई विचार , कोई सिद्धांत क्लीयर नहीं है। वे मौकापरस्त है , समय के अनुकूल रंग बदलते हैं । वे जाति-धर्म क्या राष्ट्र को भी अपने स्वार्थ के लिए ध्वस्त करने को तत्पर रहते हैं। मीडिया का एक वर्ग उन्हें प्रोत्साहित करता है तथा उनकी वास्तविकता छिपाने का भयानक अपराध करता है।
2024 के चुनाव निकट है। देश की जनता को अभी कई मणिपुर , कई मेवात-नूंह जैसे प्रायोजित घटनाक्रम देखने के लिए तैयार रहना होगा क्योंकि ये लोग वर्तमान सरकार को अपदस्थ करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। ये बहुत ही शातिर , खतरनाक मानसिकता के लोग हैं। इनकी कोई जाति कोई धर्म कोई समुदाय नहीं है। ये जाति को जाति से , एक धर्म को दूसरे धर्म से तथा बहू संख्यक पर दबाव बनाने के लिए कुछ अल्पसंख्यकों की अल्पबुद्धि का लाभ उठाते हुए अपनी सत्ता के लिए देश को गर्त में भी उतार सकते हैं।
अभी नूंह में कर्फ्यू लगा दिया गया है । हिंसा पर काबू पाने के लिए अर्धसैनिक बलों की 20 टुकड़ियों को तैनात किया गया है। नूंह, पलवल, मानेसर, सोहाना और पटौदी में इंटरनेट बंद कर दिया गया। सरकार अब स्थिति को नियंत्रण में बता रही है जबकि हिंदू समाज को रोष इस बात को लेकर है कि प्रत्येक घटनाओं में पहले ये लोग हम पर हमला कर देते हैं और जब प्रतिक्रिया होने लगती है तो स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा बलों की कंपनियां आ जाती है। आर ए एफ ने कई जगहों पर फ्लैग मार्च निकाला।
मेवात में जिस तरह से पिछले कई वर्षों से मुस्लिम समुदाय की ओर से एक से बढ़कर एक वारदात की गई और सजा मिलने की बजाय राजनैतिक संरक्षण मिला, उससे उनका हौंसला बहुत बढ़ गया है। यहां आये दिन लव जेहाद के मामले , अवैध कब्जे , बेधड़क खनन के मामले , कानून को हाथ में लेने के मामले, लड़कियों को छेड़ने के मामले और विरोध करने पर हत्या तक कर देना , यह प्रतिदिन की बात हो गई है। नूंह की घटना कोई नई बात नहीं है ,इनका पिछला रिकॉर्ड ओर भी खतरनाक है।
28 मार्च 2018 को जब पुलिस वांछित एटीएम लुटेरे रफीक उर्फ बच्ची को गिरफ्तार करने के लिए राहड़ी गांव पहुंची तो राहड़ी के 100 से अधिक की संख्या में ग्रामीणों द्वारा कथित तौर पर पुलिस पर पत्थरों से हमला किए जाने के बाद 13 पुलिसकर्मी घायल हो गए थे । इसी तरह 9 मई मेवात के घाटा शमसाबाद के 70 ग्रामीणों ने पुलिस पर उस समय हमला कर दिया जब वे कुख्यात एटीएम चोर साहिद को पकड़ने गए। ग्रामीण अपराधी को छुड़ाने में कामयाब रहे। 7 अगस्त को मेवात में ग्रामीणों ने वांछित अपराधी शब्बीर को पकड़ने के लिए चलाए गए अभियान के दौरान पुलिस पर हमला कर दिया , जिसमें एक युवक की मौत हो गई। मौत का कारण अभी भी स्पष्ट नहीं हो पाया है। ये तीनों मामले 2018 के हैं। गांवों में भारी संख्या में मुस्लिम हैं और यह समुदाय मेवात क्षेत्र पर हावी है जो हरियाणा और राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्र पर अपना नशे व सट्टे का धडल्ले से कारोबार करता है। वैसे भी राजस्थान के अलवर सहित मेवात का पूरा क्षेत्र पशु तस्करी गिरोहों का गढ़ बना हुआ है। जब भी इन पर कार्रवाई करने की कोशिश होती है तो सारा धर्म निरपेक्ष समाज इन अधर्मियों की सुरक्षा में आगे आ जाता है। इनकी अपराधिक प्रवृत्ति, अपराधिक शक्ति के चलते ही राष्ट्र विरोधी हर राजनैतिक दल इनसे निकटता बढ़ाने का प्रयत्न करता है। आखिर कब तक ये हमलों के मास्टर माइंड आम जन समाज के साथ ख़िलवाड़ करते रहेंगे। कब तक वोटों के लिए ये हिंसात्मक घटनाओं को अंजाम देते रहेंगे। आम समाज को भी अब आगे आकर इनके सैट नैरेटिव को समझना होगा।
स्तंभकार
डॉ उमेश प्रताप वत्स
लेखक : प्रसिद्ध कथाकार, कवि एवं स्तंभकार है ।
umeshpvats@gmail.com
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