रविवार, 24 सितंबर 2023

आलेख - राजनैतिक उठापटक करने में अत्यंत सक्षम है विमर्श -डॉ उमेश प्रताप वत्स

 


आलेख - राजनैतिक उठापटक करने में अत्यंत सक्षम है विमर्श 

-डॉ उमेश प्रताप वत्स 

आज भारतवर्ष बहुत तीव्र गति से विश्व शक्ति की ओर सफलतापूर्वक बढ़ रहा है । विकसित राष्ट्र अथवा विश्व शक्ति के लिए जिन-जिन पहलुओं के शक्तिशाली होने की आवश्यकता होती है , भारत उन सब पर गहराई से अध्ययन कर सार्थक योजनाओं के साथ बढ़ रहा है जो कि सफलता की गारंटी है। किंतु यह सफलता इतनी आसान नहीं है। इसे प्राप्त करने के लिए वर्तमान में भारत को न केवल विश्व की चिह्न्ति शक्तियों से अपितु अपने ही देश के अत्यंत महत्वकांक्षी , देश-विरोधी, स्वार्थी व परिवारवादी दलों से भी जूझना पड़ रहा है। अतः यह सत्य है कि अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी से अधिक इसे घरेलु मोर्चो पर संघर्ष करना पड़ रहा है । यद्यपि विश्व में कोई भी देश ऐसा नहीं है जहां किसी दल अथवा समूह के स्वार्थों के चलते देशहित की बलि न दी जाती हो किंतु भारत इन सब देशों में एक अलग ही तरह के संघर्ष का सामना कर रहा है। यह संघर्ष है नैरेटिव का जो चुपचाप ढंग से सबसे खतरनाक भूमिका निभाता जा रहा है । 

यद्यपि प्रथम विश्व-युद्ध से पूर्व ही राजनैतिक सत्ता को आरूढ़ करने के लिए अथवा सत्ताच्युत करने के लिए अनेक विमर्श गढ़े जाते रहे। समय की गति के साथ विमर्श के ढंग बदलते चले गए और वर्तमान में सोशल नेटवर्किंग के प्रसार से विमर्श का पूरा ढांचा ही बदल गया। यह इतनी तीव्र गति से प्रभावी होता है कि रात-रात में ही पूरा परिदृश्य बदलने का मादा रखता है ।

आज विमर्श के महत्व का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि विश्व के कई प्रसिद्ध संस्थानों में विमर्श पर विस्तार से पढ़ाया जाता है कि कब-कब किस तरह विमर्श तय करने से विश्व में बड़े-बड़े परिवर्तन हुये हैं ।

अठारहवीं शताब्दी में विश्व के कई देशों ने व्यापार के बहाने से नैरेटिव सैट कर शांत तथा किसी बाहरी खतरे से अनभिज्ञ देशों को अपना गुलाम बनाया। इन उपनिवेश देशों ने विमर्श सैट करके विश्व पर राज किया , वहां की संस्कृति को नष्ट किया। इन उपनिवेश देशों में भी इंग्लैंड की उपनिवेशवाद की भूख इतनी अधिक थी कि इसने न केवल उपनिवेशक देशों को जी भरके लूटा अपितु ऐसा नैरेटिव सैट किया कि उपनिवेशक देशों के भोले-भाले लोगों को लगने लगा कि ये अंग्रेज ही हमारे तारणहार है । चालाक अंग्रेजों ने अन्य देशों की भाँति पहले भारत की समृद्धि का अध्ययन किया फिर भारत में मुगलों सहित अन्य विदेशी ताकतों के समय-समय पर किये गये आक्रमणकारियों के इतिहास का अध्ययन किया । यहां के ग्रथों का अध्ययन किया , लोगों के विचारों को समझा, फिर भारत की जाति व्यवस्था की कमजोरी का अध्ययन किया तथा अंत में व्यापार के बहाने से भारत की शक्ति को तहस-नहस करने के लिए अनेक प्रकार के विमर्श गढ़े गये। जिनमें से एक था कि तुम बिल्कुल नकारे हो , बहुत पिछड़े हुए और पुराने ढर्रे पर चल रहे हो , हम नई शिक्षा नीति से तुम्हारा उद्धार करेंगे और तुम्हें अपनी तरह जैंटलमैन बनायेंगे। इंग्लैंड की महारानी ने विशेषरूप से बहुत ही चालाक , बुद्धिमान तथा इग्लैंड का उपनिवेश चिंतक लार्ड मैकाले को भारत भेजा। मैकाले ने बहुत ही निकटता से भारत का अध्ययन किया । वह भारत के अनेक गांवों में गया। उसने ग्रामीणों की आत्मनिर्भरता , आस्था , मितव्ययता तथा मिलकर काम करने की भावना देखकर इंग्लैंड की महारानी को पत्र लिखा कि वास्तविक भारत गांवों में बस्ता है , इनकी संस्कृति इतनी दृढ़ है कि इसे तोड़ पाना असंभव है । सभी ग्रामवासी आत्मनिर्भर है। यहां प्रत्येक गाँव में पूरा राष्ट्र बसता है । कृषिप्रधान संस्कृति का मुख्य आर्थिक केंद्र कृषि है। कृषि के सभी औजार गाँव में ही लौहार व बढ़ई बनाते हैं । गाँव के लोग मिलकर सिंचाई , गुड़ाई व कटाई करते हैं । फसल आने पर सब कमेरा वर्ग नाई ,धोबी , मौची , तेली, कुम्हार, माली, सफाईकर्मी , ब्राह्मण व खेतीहर को उसके हिस्से का दाल, चावल , अनाज पहुँच जाता है । महिलाओं की सुसज्जा के लिए सुनार , वस्त्रों के लिए जुलाहों को भी काम के बदले अनाज मिल जाता है । जैसी सुन्दर आर्थिक व्यवस्था इन छोटे-छोटे गाँवों में है ऐसी व्यवस्था तो अधिकतर देशों में राष्ट्र स्तर पर भी नहीं होती। मैकाले रिपोर्ट भेजकर वापस इंग्लैंड जाना चाहता था किंतु आदेश मिला कि भारत पर राज करना है तो यह व्यवस्था तोड़नी होगी तब अंग्रेजी सरकार ने विकास व सुधार के नाम पर मनचाहे कर लगाये। खुशहाल किसान को कर्जदार बना दिया और कर्ज देने में आनाकानी करने वाले लोगों पर अत्याचार का हंटर चलाया गया । मैकाले को विशेष शक्तियां प्रदान की गई । उसने नई अंग्रेज शिक्षा नीति तैयार की। भारत की आस्था को , हजारों वर्षों से चली आ रही पद्धति ,परम्पराओं को इस शिक्षा नीति के अन्तर्गत तहस-नहस कर दिया गया । इस शिक्षा नीति के अनुसार हिंदुत्व को केवल कर्मकांड का दिखावा बताकर सबसे पहले आस्थाओं पर प्रहार किया , पूजा-पाठ को अंधविश्वास बताकर विश्वास तोड़ने का षड्यंत्र किया गया ताकि लोग नास्तिक होकर अंग्रेजी हुकुमत को ही भगवान माने, जाति व्यवस्था को भेद वाला बताकर आपसी ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने का विमर्श गढ़ा गया । भारत को एक देश न मानकर भाषा , खान-पान व रहन-सहन के आधार पर भारत की अवधारणा बहुराष्ट्र की बताई गई ताकि क्षेत्रवाद को बढ़ावा देकर आपस में लड़वाया जाये।

अंग्रेजों ने भारत के स्व को तोड़ कर रख दिया। स्वरोजगार , स्वदेशी तकनीक , स्वदेशी वस्तुएं , स्वभाषा , स्वतंत्र , स्वशिक्षा आदि सब नष्ट कर अंग्रेजियत को लाद दिया गया। भारत के महापुरुषों एवं इसकी महानता को अनदेखा करके कमियों को उजागर कर भारतीयों के सम्मान को नष्ट किया गया । 1857 में देश के लिए 4 लाख लोगों ने बलिदान दिया किंतु सामंत वर्ग एवं रियासतदारों ने कहीं न कहीं अंग्रेजों की सहायता कर स्वातंत्रयवीरों के प्रयासों पर पानी फेर दिया। इस हुकुमत ने काले अंग्रेज तैयार कर ऐसा विमर्श गढ़ा कि यह मान्य हो जाये अंग्रेज व अंग्रेजी शिक्षा श्रेष्ठ है तथा इनके द्वारा भारत की जाति व्यवस्था का नकारात्मक पक्ष प्रचारित कर फूट डालों राज करो की नीति अपनाई गई। यह गढ़े गए विमर्श का ही परिणाम था कि तीस-चालीस हजार लोग तैंतीस करोड़ भारतीय लोगों पर 200 वर्षों तक राज करने में सफल रहे । मुट्ठीभर क्रांतिकारी अपनी भारतीय जडों से जुड़े रहे और अंत तक संघर्ष करते रहे। 

यह विचारणीय है कि अंग्रेजी शासन के विरुद्ध महारानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में अमर बलिदानी मंगलपांडे , वीर तात्या टोपे , नानासाहेब व वीर कुँवर सिंह आदि के बड़े संघर्ष के बाद भी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद देश को स्वतंत्र कराने में नब्बे वर्ष क्यों लगे। इस एकजुट संघर्ष से अंग्रेज घबरा गए थे तब उन्होंने चालाकी से ऐसा विमर्श गढ़ा कि लोगों को भारतीय परम्पराओं से अधिक ब्रिटिश सत्ता पर भरोसा हो। इसी विमर्श के अन्तर्गत भारत के स्व को समाप्त किया गया था। हमने इंग्लेंड को सभ्य देश माना और स्वयं को असभ्य मानने लगे। अत्याचारी अंग्रेज कैसे महान हो गये यह सब हमारे काले अंग्रेजों की स्वामिभक्ति का परिणाम है । इन्होंने नैरेटिव सैट करके भारत की वैचारिक दृढ़ता को नष्ट करने का काम किया।

तय विमर्श के अन्तर्गत ही भारत का बारीकी से अध्ययन कर ब्रिटिश रिपोर्ट भेजी जाती , वहां राज करने की नीति तैयार होती तब उस नीति को भारत में लागू किया जाता था।

1947 के बाद ऐसी सरकार सत्ता में आई जिसमें अधिकतर न केवल अंग्रेजी माध्यम से पढ़े थे अपितु अंग्रेजियत उन पर हावी हो गई थी तभी ये अंग्रेज सभ्यता को महान मानते थे। यह भी सत्य है कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरु शिक्षा से अंग्रेज , संस्कृति से मुस्लिम और दुर्भाग्य से स्वयं को हिंदू कहते थे। यह देश की विडम्बना नहीं तो और क्या है ?

विमर्श बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है , इस विषय पर हर व्यक्ति को जागरूक होना होगा। हम भी वर्तमान में देश के लिए अध्ययन करें। विमर्श की ताकत को पहचाने।

पश्चिम जगत में यूएसए को लगता था कि वह अजेय है । विश्व की सुप्रीम पॉवर है और इसी मानसिकता के साथ विश्वभर में चाहे व्यापार हो या हथियारों की दौड़ , उसी का दबदबा था । किंतु अमेरिका के विरोधी देशों ने इसकी बढ़ती ताकत व एकमात्र सिरमौर होने की मानसिकता को तोड़ने के लिए नैरेटिव सैट किया । अल-कायदा मुस्लिम आतंकवादी संगठन के संस्थापक लादेन ने पेंटागन पर हवाई हमला करके अमेरिका का अभेद्य सुरक्षा चक्र तोड़कर यह विमर्श तय किया कि कोई भी अजेय नहीं है ,कोई भी सुप्रीम पॉवर नहीं है और इस घटना के बाद वास्तव में अमेरीका की साख में बहुत गिरावट आई।

हमें देश-धर्म की सुरक्षा के लिए शत्रु की हर गतिविधि पर नजर रखनी होगी । वे देश की भोली-भाली जनता को कैसे दिग्भ्रमित करते हैं , इस बारे हमें तय विमर्श को समझना होगा। 

आज चाहे बॉलीवुड हो या हॉलीवुड , चाहे विश्वविद्यालय हो या खेलों की दुनिया , हर जगह विमर्श घड़े जाते हैं ।

मनु स्मृति पर जहर उगलने वाले , बिना पढ़े ही उसे मानवता का दुश्मन बताने वाले मनु स्मृति का महत्व समाप्त करने के लिए उसके नाम से जुड़ता मनु स्क्रिप्ट बना चुके है। किसी भी वीर सैनिक को देश पर प्राण न्यौछावर करने के बाद उसे बलिदानी संबोधन करने की बजाय शहीद शब्द कहकर सम्बोधित करना भी नैरेटिव का हिस्सा है ।

टीवी सीरियल , फिल्मों के माध्यम से युवा पीढ़ी को वैज से नॉनवेज की ओर ले जाना भी विमर्श गढ़े जाने का हिस्सा है । युवा पीढ़ी को इन्हीं नाटकों-फिल्मों के माध्यम से हिंदी के स्थान पर हिंग्लिश के लिए प्रेरित करना भी विमर्श है। अधिकतर फिल्मों में ब्राह्माण को तिलक वाला पाखंडी दिखाना, सिख को मजाकिया दिखाना , लाला जी व जाट समुदाय के चुटकलें , पीर-मजारों का महत्व दर्शाना , कौन सा हीरो सुपरस्टार बनाना है , कौन सी फिल्म रिकार्ड तोड़ सफल बनानी है , कौन सा विचार ठीक है यह सब विमर्श गढ़ा जाता है। भारत की मशहूर फिल्म शोले में रामगढ़ गाँव में जहां खाने के लिए पेटभर अनाज नहीं है , वहां मंदिर व मस्जिद दोनों दिखायें गये हैं । मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति के पीछे से कलाकार शिव की आवाज में बोलकर लड़की को फांस रहा है और गाँव के इकलौते मुस्लिम चचा के बेटे की मृत्यु पर वहां रेगिस्तान में मस्जिद दिखाकर अजान सुनाई गई । यह विमर्श गढ़ने का तरीका होता है कि मंदिर में कुछ भी करो किंतु मस्जिद में आस्था के सिवा कुछ नहीं । तथाकथित शांतिदूत जब जेहाद की जंग छेड़ते है और सारा समाज जब उनके प्रतिकार के लिए तैयार होने लगता है तब बहुत ही चालाकी से बुद्धिजीवी वर्ग गंगा-जमुना तहज़ीब का विमर्श गढ़ देता है । रामायण सिखाती है कि किस प्रकार एक भाई अपने बड़े भाई की खड़ाऊ शीश पर लेकर सिंहासन पर स्थापित कर चौदह वर्षों तक निस्वार्थ भावना से शासन संभालता है और मुगल इतिहास ऐसे सैंकडों उदाहरणों से भरा पड़ा है कि किस तरह राजगद्दी के लिए अपने बाप ,भाईयों को 

मौत के घाट उतार कर सत्ता संभाली परंतु नैरेटिव सैट किया जाता है कि वे अल्लाह के बंदे है और हिंदू पाखंडी है। हमारे संत दिशा देते हैं, मानवता की बात करते हैं ,परोपकार का पाठ पढ़ाते हैं जबकि मौलाना फतवा जारी करते हैं , जेहाद का आह्वान करते हैं किंतु ढोंगी सदा संतों को ही दिखायेंगे।

मसीह समाज के लिए पादरियों के लिए शांतिप्रिय का नैरेटिव सैट किया जाता है।  हर फिल्म में फादर शांति की प्रतिमूर्ति दर्शाया जाता है जबकि आंकड़े बताते हैं कि धार्मिक स्थलों पर सर्वाधिक रेप केस पादरियों के दरबार में होते हैं । पृथ्वी को गोल बताने वाले वैज्ञानिक को फांसी दे दी गई क्योंकि उसने बाइबिल के विरुद्ध जाकर सत्य उजागर कर दिया था किंतु वे फिर भी शांतिप्रिय है। चंगाई सभाओं में अंधविश्वास की पराकाष्ठा है किंतु वे फिर भी सभ्य है । भोले-भाले आदिवासियों वनवासियों , गरीबों को छलकपट कर धर्मांतरित करते हैं वे फिर भी मानवतावादी है। वे जलियांवाला बाग में हजारों बेकसूर लोगों को गोलियों से भून देते हैं तथा अकाल के दौरान 30 लाख लोगों को रोटी के स्थान पर गोली मार देते हैं किंतु वे फिर भी दयालु, कृपालु हैं क्योंकि नैरेटिव ही ऐसा गढ़ा जाता है कि सब अपराध करने के बाद भी वे दूध के धुले दिखाई दे।

एक ओर ताकत नैरेटिव के खेल में बहुत ही पारंगत खिलाड़ी है और वह है मार्क्सवादी। ये लोग ऐसा नैरेटिव सैट करते हैं कि हर गरीब को लगता है कि शीघ्र ही उसके दिन फिरने वाले हैं। डर दिखाकर शासन करना इनकी पुरानी परम्परा है। इन्होंने रूस में ऐसा नैरेटिव बनाया कि मजबूत रूस के बारह टुकड़े हो गए। आज तक रूस अपने इन हिस्सों को फिर से एक करने के लिए छटपटा रहा है । रूस-युक्रेन युद्ध भी इसी का परिणाम है । ये मार्क्सवादी बहरुपये की तरह भेष बदलते रहते हैं । कभी ये मजदूर नेता दिखाई देते हैं तो कभी है राजनैतिक बिसात पर शतरंज के खिलाड़ी। कभी ये नक्सली के रूप में देश व मानवता को नुकसान पहुंचाते हैं तो कभी नास्तिक बनकर लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करते रहते हैं। इन्होंने भगत सिंह को नास्तिक बताने का विमर्श गढ़ा, समाज में अनेक संगठनों के माध्यम से प्रगतिशील का झूठ फैलाया, समाज तोडने के लिए जाति वर्ग आंदोलन का विमर्श गढ़ा, किसान आंदोलन में घुसकर देश को भारी नुकसान पहुंचाने का कुत्सित प्रयास किया और नैरेटिव यह सैट किया कि देश का किसान रो रहा है उसके साथ अन्याय हो रहा है और इसी तरह भ्रमित कर एक बड़ा आंदोलन खड़ा करने में सफल रहा। ये सदा संस्कृति के विरुध्द विमर्श गढ़ते है। पश्चिम बंगाल में हिंदुओं की आस्थाओं को ठेस पहुंचाने के लिए दुर्गा के सामने महिषासुर को दलित वंचित बताकर संघर्ष खड़ा कर दिया, इतिहास में भी देखे तो इन्होंने ब्रिटिश राज में हजारों अत्याचारों को बेबुनियाद बताकर अंग्रेजों की बजाय सामंतों को दोष देने का विमर्श गढ़ा। यह देश को कमजोर करने के लिए हर जगह वर्ग संघर्ष खड़ा करता है, अंधविश्वास के विरुध्द लाभ उठाकर जन-जागरण के नाम पर लोगों का गुमराह करने का विमर्श तय करता है। नवयुवकों को विश्वविद्यालय में जाकर देश के विरुध्द भड़काने का कार्य तथा देश को कमजोर करने के लिए बॉलीवुड का धड़ल्ले से प्रयोग करता है। ग्रामीणों को गुमराह करने के लिए कुर्ता-पायजामा पहनकर थैला लेकर उनके बीच नुक्कड़ नाटक के बहाने से ढपली बजाकर बेवकूफ बनाता है। 

अनुसूचित जातियों में उच्च वर्गों के साथ वैमनस्य फैलाने का विमर्श बनाते हैं जैसे - मीम और भीम का नैरेटिव सैट कर हिंदुओं के विरुद्ध उनका प्रयोग करना, वंचित श्रेणी को अन्य समाज से तोड़ने का विमर्श तय करना, ये हिंदू समाज में किसी इक्का-दुक्का घटना को आधार बनाकर नैरेटिव सैट करते हैं कि दलित लोगों को मंदिर में नहीं जाने देते, अंतिम संस्कार के लिए श्मशान नहीं जाने देते , ब्राह्मण वादी समाज इन्हें इनके अधिकार नहीं देते  , ये वंचित समाज का शोषण करते हैं आदि मुद्दों के बलबूते समाज में वैमनस्य फैलाने का विमर्श तय करते हैं। जबकि सत्यवती मछुआरे के घर में जन्म लेकर भी राजा शांतनु की महारानी बनी, शबरी भीलनी होते हुए भी भगवान राम को अपने हाथों से चख-चखकर बेर खिलाती रहा। इसी तरह सुग्रीव वनवासी होते हुए भी राम के मित्र बने और सुदामा अति निर्धन होते हुए भी भगवान कृष्ण के परम मित्र कहलाये। यहां हमारे समाज में ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं था, सब मुगलों की सत्ता के बाद प्रारंभ हुआ। किंतु ये मार्क्सवादी कभी बाबा अंबेडकर के नाम पर समाज को भड़काने का काम करते हैं , कभी समाज में गलत परम्पराओं का प्रचार करने के लिए विवादित पुस्तकें लाई जाती है । स्वयं को प्रगतिशील बताने वाले प्रगति के नाम पर युवा- युवतियों को रिलेशन में रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं जिसका बहुत ही भयंकर परिणाम हमारे सामने है , पवित्र रिश्तों के बंधन से मुक्त रिलेशनशिप में रहने वालों के मनमुटाव के बाद कभी सूटकेस में डैड बॉडी मिलती है तो कभी गले काटने के मामले सामने आते हैं। आजकल समलैंगिकता पर भी विमर्श गढ़ा जा रहा है । इस तरह के अप्राकृतिक मिलन का विरोध करने वालों को ये मार्क्सवादी लोग दकियानूसी , दक्षिणपंथी व पुराने ख्यालों के लोग बताकर विमर्श गढ़ते है । महिलाओं को फैशन के लिए प्रोत्साहित कर , बराबरी के नाम पर गुमराह कर घरों में झगड़ों का बढ़ावा देने का काम भी करते हैं ।महिला-नारी की पूजा होती थी । हमारे इतिहास में सदा से ही पहले नारी का नाम आता रहा है जैसे - सीताराम , राधाकृष्ण। आज भी विवाह निमंत्रण पत्र पर पहले लड़की का नाम फिर लड़के का लिखवाते हैं । ये तथाकथित प्रगतिशील कम्यूनिस्ट महिलाओं को स्वतंत्रता के नाम पर भड़काने का काम करते हैं। यदि कोई महिलाओं को पूजनीय , घर की लक्ष्मी कहकर समझाने का प्रयास करता है तो ऐसी टिप्पणी करने वाले का ये लोग सामूहिक अपमान करते हैं ,  यहां यह विमर्श तय किया जाता है कि यदि इनका सामूहिक अपमान होगा तो समाज से कोई अन्य विरोध करने अथवा समझाने की हिम्मत नहीं कर पायेगा। युवाओं को विचार शून्य बनाकर डिजिटल मशीन बनाने पर जोर दिया जा रहा है।

फिर कुछ नैरेटिव अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देश को आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए सैट किये जाते हैं।मल्टी नेशन कंपनिया पैसों के बल पर मीडिया को प्रभावित करती है । भारत के व्यापार को खत्म करना, इनका प्रमुख उद्देश्य है। देश के बड़े व्यापारी अडानी , अंबानी को बदनाम कराना, अर्थव्यवस्थाओं को तोड़ना , स्वदेशी कंपनियों को दबाना , औद्योगिक नीतियों को प्रभावित करना , राजनैतिक दलों का समर्थन लेना आदि इनके नैरेटिव के प्रमुख विषय है।

आज आवश्यकता है विमर्श के इस खेल को पहचानने की । यह विमर्श पूर्वनिर्धारित विषय को लेकर गढ़ा जाता है जो अधिकतर देश विरोधी गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है। युवा पीढ़ी को आगे आकर इसे पहचानना होगा तथा समाज को सही जानकारी देने का दायित्व निभाना होगा तभी भारत वसुधैव कुटुम्बकम के भाव को साकार कर पायेगा।

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