मंगलवार, 12 सितंबर 2023

आलेख - बृहस्पतिवार को देश के बाहर भी मनाया जा रहा है रक्षाबंधन

 आलेख - बृहस्पतिवार को देश के बाहर भी मनाया जा रहा है रक्षाबंधन 

-डॉ उमेश प्रताप वत्स 


श्रावण मास की पूर्णिमा को देशभर में रक्षासूत्र बाँधकर रक्षाबंधन मनाया जा रहा है । वस्तुतः नवीन भारत में इसे भाई-बहन का ही त्यौहार माना जाता है। न केवल भारत में अपितु भारत के बाहर बसे हिंदूस्थानी भाई-बंधु भी इस पावन पर्व की प्रतिक्षा में रहते हैं। यद्यपि यह त्यौहार रक्षा के लिए संकल्प लेने का त्यौहार है। उदाहरण के लिए सतयुग में जब यज्ञ होते थे तो उपस्थित सभी समाज बंधुओं को सूत्र बाँधा जाता था , जिसका तात्पर्य था कि यदि यज्ञ में कोई भी अधार्मिक व्यक्ति विघ्न उत्पन्न करता है तो उसका प्रतिकार करके यज्ञ की रक्षा करनी है और बिना अवरोध के यज्ञ विधिवत रूप से पूर्ण हो , इसका संकल्प लेना है तभी इस बाँधे गए सूत्र को संकल्प-सूत्र कहा गया है । संकल्प-सूत्र बाँधने की यह परम्परा आज भी है किंतु उद्देश्य का ज्ञान नहीं। गाँव में ब्राह्मण परिवार से ब्राह्मणी घर-घर जाकर सभी वर्गों के परिवार मुखिया को संकल्प-सूत्र बाँधती थी जो कि समरसता का सबसे सुंदर प्रेरणादायी उदाहरण है । ब्राह्मणी का यही उद्देश्य होता था कि सभी गाँव के लोग एक साथ मिलकर महामारी से , आतताइयों से , प्राकृतिक आपदाओं से तथा अन्य किसी भी समस्या से गाँव की रक्षा करने का संकल्प लेंगे । हमारे गाँवों को जाति-पाति के लिए बहुत बदनाम किया गया जबकि यह परम्परा जाति-पाति से उठकर स्थापित की गई ।

ग्रामीण धार्मिक संस्कृति में आज भी पीपल को वृक्षराज , ब्रह्मस्वरूप देवता माना जाता है और गाँव की महिलाएं किसी भी धार्मिक अनुष्ठान पर पीपल को जल देकर सूत लपेटती है , जिसका उद्देश्य भी यही है कि हर पल ऑक्सीजन देने वाला एक मात्र वृक्ष पीपल की रक्षा की जाए कोई व्यक्ति इसे इंधन के लिए काटने का प्रयास न करें । परिणाम स्वरूप पीपल काटना एकदम बंद हो गया अपितु पीपल को काटा जाना पाप समझा जाने लगा। कितना श्रेष्ठ परिणाम होता है स्वस्थ परंपराओं का , यह हम पीपल को बाँधे जाने वाले संकल्प-सूत्र से समझ सकते हैं ।

हमे बचपन से ही पढ़ाया गया कि रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजी थी। इसके बाद से इस त्योहार को मनाने की परंपरा शुरू हुई। चित्तौड़गढ़ की विधवा महारानी कर्णावती ने हुमायूं से रक्षा के लिए दूत के द्वारा रक्षासूत्र भिजवाया था, जिसे देखते ही हुमायूं भावविभोर हो गया और महारानी की रक्षा का निर्णय लिया। यह बिलकुल कपोलकल्पित झूठ है। मुगलों को महान बताने के षडयंत्र के अन्तर्गत ही इतिहास को विकृत करते हुए लिखा गया कि युद्ध की विपत्ति के दौरान मेवाड़ की रानी कर्णावती ने मुगल शासक हुमायूँ को पत्र और राखी भेजी थी, जिसके बाद वो तुरंत उनकी मदद के लिए निकल पड़ा था। यद्यपि इस कहानी पर इसलिए भी विश्वास नहीं होता क्योंकि उस समय के इतिहास में ऐसी किसी घटना का वर्णन नहीं मिलता। राजस्थान के कुछ इतिहासकारों के अनुसार बाबर के साथ वीरतापूर्वक युद्ध लड़ते हुए मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह बुरी तरह घायल हो गए , वे विपुल वीर साहसी होते हुए भी युद्ध में बरछे ,तीर-मकानों से बाबर की तोपों तथा बारूद का सामना नहीं कर पाये। वे अस्सी घाव होते हुए भी मूर्च्छावस्था में भी लड़ते रहे, अंततः उनकी हार हुई। इधर मुगल शासक बाबर की मृत्यु के बाद चित्तौड़ पर जब रानी कर्णावती का शासन था तो 1535 में गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। कहा जाता है कि अपनी हार देखते हुए रानी ने हुमायूं को पत्र लिखकर सहायता माँगी। वस्तुतः 19वीं शताब्दी में मेवाड़ की अदालत में कर्नल जेम्स टॉड नाम का एक अंग्रेज था, जिसने 

‘ अनेलस् एंड एंटीक्यूटीज ऑफ राजस्थान ’  नाम की एक पुस्तक में इस कहानी का जिक्र था। ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के जेम्स टॉड ने ही सन् 1535 की इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा था कि रानी ने मुगल शासक हुमायूं से मदद माँगी थी किंतु बाद में पत्र के साथ राखी का भेजना लिखकर इसे रक्षाबंधन से जोड़ दिया गया जबकि सच्चाई यह है कि मदद मांगने के बाद भी हुमायूं मदद के लिए नहीं पंहुचा। रानी अपने सैनिकों के साथ अंतिम क्षण तक लड़ती रही। कर्णावती ने शत्रु की अधीनता स्वीकार नहीं की और 13 हजार रानियों के साथ जौहर किया। चित्तौडगढ़ का यही दूसरा जौहर सन 1535 में हुआ था।

इतिहासकार सतीश चंद्रा अपनी पुस्तक ‘ हिस्ट्री ऑफ मैडिवल इंडिया ‘ में लिखते हैं कि किसी भी तत्कालीन लेखक ने कर्णावती द्वारा हुमायूँ को राखी भेजने की घटना का जिक्र नहीं किया है और ये झूठ हो सकती है। तो फिर सच्चाई क्या थी? असल में हुआ क्या था, जो हमसे छिपाया गया?

पुस्तक ‘द हिस्ट्री ऑफ इंडिया फॉर चिल्ड्रेन ’ में अर्चना गरोदिया गुप्ता और श्रुति गरोदिया लिखती हैं कि हुमायूँ तो चित्तौड़ पर सुल्तान बहादुर शाह के कब्जे के कुछ महीनों बाद चित्तौड़ पहुँचा था। वो तो इंतजार कर रहा था कि कब मेवाड़ का साम्राज्य ध्वस्त हो। इस दौरान बहादुर शाह भी खुलेआम चित्तौड़ में मारकाट और लूटपाट मचाता रहा।

कर्णावती के राखी भेजने पर हुमायूँ द्वारा मदद करने की खबर उतनी ही फर्जी है, जितनी जोधा-अकबर की। आज तक कई फिल्में और सीरियल बन चुके, लेकिन किसी ने भी जोधा-अकबर की प्रमाणिकता के विश्व में रिसर्च करने की कोशिश नहीं की। जेम्स टॉड ने ही जोधा के नाम का भी जिक्र किया था। उससे पहले कहीं नहीं लिखा है कि अकबर की किसी पत्नी का नाम जोधा था। ये भी एक बनावटी कहानी भर है।

रक्षाबंधन का त्यौहार इस युग से नहीं अपितु सतयुग से मनाया जा रहा है। भागवत पुराण और विष्णु पुराण में विष्णु से राजा बलि द्वारा तीनों लोकों को जीतने के बाद राजा बलि विष्णु से अपने महल में रहने के लिए कहते हैं। विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी इस व्यवस्था से खुश नहीं हैं। ऐसे में नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताया। तब लक्ष्मीजी ने राजा बली को राखी बांध अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आईं। पत्नी के मान सम्मान की रक्षा की जिम्मेदारी पति पर होती है, इसलिए पत्नी पति को राखी बांध सकती हैं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में हैं।

एक बार इंद्र की पत्नी शची ने असुर राजा महाबली के खिलाफ युद्ध शुरू करने से पहले अपने पति को राखी बांधी थी। जब कंस और उसके सहयोगियों द्वारा भगवान कृष्ण पर बार-बार हमला किया गया, तो यशोदा ने सुरक्षा के रूप में उन पर एक पवित्र धागा बांध दिया।

महाभारत में भगवान कृष्ण के सुदर्शन चक्र से गलती से उनकी उंगली कट गई थी। यह देखकर राजकुमारी द्रौपदी ने खून रोकने के लिए अपनी साड़ी से कपड़े का एक टुकड़ा फाड़कर उसके घाव पर बांध दिया। इस घटना के बाद, कपड़े का टुकड़ा एक पवित्र धागा बन जाता है और रक्षा बंधन के वास्तविक महत्व का प्रतीक है। 

एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध के दौरान जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को किस प्रकार पार कर सकता हूंँ। श्रीकृष्‍ण ने युधिष्ठिर से कहा कि वह अपने सभी सैनिकों को रक्षा सूत्र बांधे। युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और अपनी पूरी सेना में सभी को रक्षासूत्र बांधा। युद्ध में युधिष्ठिर की सेना विजयी हुई। इसके बाद से इस दिन को रक्षाबंधन के तौर पर मनाया जाने लगा।

वास्तव में रक्षाबंधन का त्यौहार केवल भाई-बहन का न होकर सभी संबंधों के लिए है। समाज में एक दूसरे को राखी बांधने के अतिरिक्त आप अपनी बहन, चाचा, चाची या अपने माता-पिता, मित्र , पति-पत्नी , सैनिक , सुरक्षाकर्मी अथवा सहकर्मी को भी राखी बांध सकते हैं। चाचा-चाची और चचेरे भाई-बहनों के साथ एक पारिवारिक संबंध ने इस त्योहार को बहुत विशेष बना दिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में स्वयंसेवक भगवा ध्वज को रक्षासूत्र बाँधकर रक्षा का संकल्प लेते हैं । वंचित , दलित परिवारों में जाकर रक्षासूत्र बंधवाकर समरसता का भाव भरते हैं।

आजकल बहनें भाइयों के साथ-साथ अपनी भाभियों को भी राखी बाँधने लगी है जो कि एक स्वस्थ परंपरा है। इसका उद्देश्य पूरे परिवार को एक साथ लाना था और यही कारण है कि बहनों ने अपनी ननद को राखी बांधना शुरू कर दिया जो उनकी हमेशा की दोस्त है। इस खास दोस्ती को सुपरस्टार बनाने के लिए, बहनें अपनी भाभी को लुभाती रहती हैं। यह परंपरा धीरे-धीरे देश के विभिन्न प्रदेशों में लोकप्रिय हो गई।  

पौराणिक मान्यता के अनुसार, राखी बांधने के लिए दोपहर का समय शुभ होता है। लेकिन यदि दोपहर के समय भद्रा काल हो तो फिर प्रदोष काल में राखी बांधना शुभ होता है। दरअसल भद्रा को सूर्य की पुत्री और शनि देव की बहन माना जाता है। भद्रा जन्म से ही मंगल कार्यों में विघ्न डालती थी, इसलिए भद्रा काल में कार्यों की मनाही होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शूर्पणखा ने अपने भाई रावण को भद्रा काल में ही राखी बांधी थी। जिसकी वजह से रावण समेत उसके पूरे कुल का नाश हो गया था। इसलिए कहा जाता है कि भद्रा में भाई को राखी नहीं बांधनी चाहिए।

रक्षाबंधन के दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उसकी लंबी उम्र की कामना करते हुए भाई से अपने सम्मान और रक्षा करने का वचन मांगती है। इस दिन भाई भी अपनी बहन की सुरक्षा का वादा उससे करता है। अतः त्यौहार की पवित्रता को देखते हुए शुभ शकुन की प्रतीक्षा भी अच्छी मानी जाती है। रक्षाबंधन अनुष्ठान भद्रा काल समाप्त होने के बाद शुरू होना चाहिए, इसलिए राखी बांधने और अपने भाई-बहनों के साथ रक्षा बंधन समारोह करने का शुभ मुहूर्त रात 9:01 बजे के बाद होगा। इसके अतिरिक्त, पूर्णिमा तिथि या पूर्णिमा 30 अगस्त को सुबह 10:58 बजे शुरू होती है और 31 अगस्त को सुबह 7:05 बजे समाप्त होती है। किंतु सूर्योदय पश्चात् लक्षण अधिक शुभ माने जाते हैं तो हम 31 अगस्त को सुबह सात बजे से पहले ही इस त्यौहार को मनाये न केवल भाई को अपितु भाभी , माता-पिता ,भतीजे सभी को रक्षासूत्र बाँधे। सबके लिए लंबी , स्वस्थ आयु की कामना करें तथा घर की बनी हुई मिठाइयों का तथा चीनी रक्षासूत्र के बजाय स्वदेशी राखियों प्रयोग करें। कैडबरी चॉकलेट की अपेक्षा अपने हाथ से कोई मिठाई बनाकर भाई व अन्यों का मुँह मीठा करें तो रक्षाबंधन के इस पावन पर्व का महत्व और अधिक बढ़ जायेगा।


- स्तंभकार

डॉ उमेश प्रताप वत्स

 लेखक : प्रसिद्ध कथाकार, कवि एवं स्तंभकार है ।

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