मंगलवार, 12 सितंबर 2023

कविता - चन्द्रयान-3

 कविता - चंद्रयान-3 

- डॉ उमेश प्रताप वत्स 


आया तो पहले भी मामा, था मैं तेरे द्वार 

दोनों बार दिखाया तूने , गुस्सा अपरम्पार 

पर माँ बोली लगे है मामा , बुरा नहीं मानते 

लगता है वह तेरा सच्चा , प्यार नहीं जानते

रिश्तों में तो चलता ही है, रूठना और मनाना

दिल पर लगा नहीं छोड़ते , मामा के घर जाना

धरती माँ की सीख मुझे , प्रोत्साहित कर जाती

रूठे मामा की फिर से , मुझको याद सताती 

मैं माता की राखी लेकर , मामा के घर जाऊँ 

यही सोच-सोचकर दिनभर , खुशी से मैं इतराऊँ

साजो-सामान बाँध चढ़ा मैं , चंद्रयान के वक्ष पर 

चालीस दिन सफर किया, तब पहुंचा चांद के अक्ष पर 

मामा ने भी छोड़ा गुस्सा , मुझको गले लगाया

बोला विक्रम तेरा धैर्य , मुझको बड़ा ही भाया

ले ले जो लेना है तुझको , खुला है मेरा द्वार 

तेरे प्यार के आगे मेरा , तुच्छ दौलत-भंडार अब जब भी आना हो तुमको , निसंकोच चले आना 

राखी का यह अमूल्य प्रेम तुम, बहना का फिर लाना

मामा-भांजे का ऐतिहासिक मिलन , विश्व देख रहा है 

सदियों से ही मेरे भारत का, इरादा नेक रहा है 

- कवि डॉ उमेश प्रताप वत्स

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