मेरे ब्लॉग उमेश का अखाड़ा में आप योग, साहित्य, मोटिवेशनल स्पीच, एनसीसी (आर्मी विंग), महापुरुषों के जीवन एवं देश व दुनिया के बारे में विस्तार से जानने के लिए आमंत्रित है।
गुरुवार, 28 नवंबर 2013
शुक्रवार, 15 नवंबर 2013
मराठी में गांधी को लेकर प्रमुखता से तीन नाटक लिखे गए... पहला था "गांधी विरुद्ध गांधी", दूसरा था "गांधी और आंबेडकर" और तीसरा था "मी नथुराम बोलतोय". पहले नाटक में गांधी पिता-पुत्र का वैचारिक संघर्ष दिखाया गया था, जिसमें पुत्र गांधी अपने महात्मा(?) पिता को जमकर खरी-खोटी सुनाते हैं... इस नाटक का कहीं कोई विरोध नहीं हुआ... (कौन करता?)
दूसरे नाटक में आंबेडकर और गांधी के बीच मतभेदों को उजागर किया गया था, एक स्थान पर आंबेडकर कहते हैं "बंद करो ये तुम्हारे नौटंकी भरे अनशन-वनशन, इससे आजादी मिलने वाली नहीं है"... (ज़ाहिर है कि आंबेडकर का नाम जुड़ा होने से किसकी हिम्मत होती, नाटक का विरोध करने की.. यह भी आराम से मंचित हुआ)...
कांग्रेसियों को, सेकुलरों को, गांधीवादियों को, ब्राह्मण-विरोधियों को सारी तकलीफ तीसरे नाटक "मी नथुराम बोलतोय" से हुई, जबकि पूरे नाटक में गांधी के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं कहा गया था... लेकिन "विचारधारा" से घबराने वालों ने इस नाटक को बैन किया. दूसरों को "फासिस्ट" कहने वालों ने इस नाटक को मंचित नहीं होने दिया था. अपने आकाओं के इशारे पर सेंसर बोर्ड में बैठे "वैचारिक पंगुओं" ने नाटक को सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया. लेकिन अंततः जीत सत्य की ही हुई, सुप्रीम कोर्ट तक चली लड़ाई के बाद इस नाटक को हरी झंडी दी गई, और इस नाटक ने महाराष्ट्र में सुपरहिट होने का इतिहास रचा...
==================
गांधी-गांधी जपने वाले कांग्रेसियों ने "नथुराम" नाटक को बैन किया, ब्राह्मणों को मारा, फिर सिखों को मारा, उसके बाद तस्लीमा नसरीन और सलमान रश्दी को भी बैन किया, इनके शासनकाल में पचास साल में ८००० दंगे हुए जिसमें सैकड़ों हिन्दू-मुसलमान मारे गए...
दूसरे नाटक में आंबेडकर और गांधी के बीच मतभेदों को उजागर किया गया था, एक स्थान पर आंबेडकर कहते हैं "बंद करो ये तुम्हारे नौटंकी भरे अनशन-वनशन, इससे आजादी मिलने वाली नहीं है"... (ज़ाहिर है कि आंबेडकर का नाम जुड़ा होने से किसकी हिम्मत होती, नाटक का विरोध करने की.. यह भी आराम से मंचित हुआ)...
कांग्रेसियों को, सेकुलरों को, गांधीवादियों को, ब्राह्मण-विरोधियों को सारी तकलीफ तीसरे नाटक "मी नथुराम बोलतोय" से हुई, जबकि पूरे नाटक में गांधी के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं कहा गया था... लेकिन "विचारधारा" से घबराने वालों ने इस नाटक को बैन किया. दूसरों को "फासिस्ट" कहने वालों ने इस नाटक को मंचित नहीं होने दिया था. अपने आकाओं के इशारे पर सेंसर बोर्ड में बैठे "वैचारिक पंगुओं" ने नाटक को सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया. लेकिन अंततः जीत सत्य की ही हुई, सुप्रीम कोर्ट तक चली लड़ाई के बाद इस नाटक को हरी झंडी दी गई, और इस नाटक ने महाराष्ट्र में सुपरहिट होने का इतिहास रचा...
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गांधी-गांधी जपने वाले कांग्रेसियों ने "नथुराम" नाटक को बैन किया, ब्राह्मणों को मारा, फिर सिखों को मारा, उसके बाद तस्लीमा नसरीन और सलमान रश्दी को भी बैन किया, इनके शासनकाल में पचास साल में ८००० दंगे हुए जिसमें सैकड़ों हिन्दू-मुसलमान मारे गए...
जन्म लेने के बाद तीन पुत्र अधिक समय जीवित नहीं रहे,
इसलिए गोडसे परिवार ने डर के मारे चौथे पुत्र का नाम
"रामचंद्र" रखा, परन्तु कुशंका की वजह से उसका लालन-
पालन शुरू में एक लड़की की तरह किया गया, नाक
भी छिदवाई गई, नथ भी पहनाई गई. जब परिवार में
पांचवां पुत्र पैदा हुआ और जीवित रहा तब कहीं जाकर यह
अंधविश्वास टूटा और रामचंद्र को पुनः "लड़के" की तरह
पालन किया जाने लगा...
परन्तु तब तक प्यार से उस बच्चे का नाम "नथुराम" (नथ
पहने हुए राम) प्रचलित हो चुका था. उसी नथुराम गोडसे
का आज "हुतात्मा दिवस" है. १५ नवंबर १९४९ को उसे
फाँसी दी गई... गाँधी "वध" हेतु चले पूरे मुक़दमे के दौरान
नथुराम एक शब्द भी नहीं बोले, सिर्फ अंतिम सात
दिनों में अपना बयान दिया... जिसे सुनकर जज
भी रो दिए.
नथुराम को कभी भी गाँधी वध का पश्चाताप नहीं रहा,
गाँधी के वध के बाद नथुराम वहाँ से भागे नहीं, शांत खड़े
रहे... ना ही उन्होंने कभी अपने लिए माफी की माँग की...
नारायण आप्टे के साथ गोडसे को अम्बाला जेल में १५
नवंबर को फाँसी दी गई. उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनके
अस्थि कलश का विसर्जन तभी किया जाए, जब सिंधु
नदी अखंड भारत में प्रवाहित होने लगे... आज
भी उनका अस्थि कलश पुणे में उनके निवास पर रखा हुआ है...
विनम्र श्रद्धांजलि...
इसलिए गोडसे परिवार ने डर के मारे चौथे पुत्र का नाम
"रामचंद्र" रखा, परन्तु कुशंका की वजह से उसका लालन-
पालन शुरू में एक लड़की की तरह किया गया, नाक
भी छिदवाई गई, नथ भी पहनाई गई. जब परिवार में
पांचवां पुत्र पैदा हुआ और जीवित रहा तब कहीं जाकर यह
अंधविश्वास टूटा और रामचंद्र को पुनः "लड़के" की तरह
पालन किया जाने लगा...
परन्तु तब तक प्यार से उस बच्चे का नाम "नथुराम" (नथ
पहने हुए राम) प्रचलित हो चुका था. उसी नथुराम गोडसे
का आज "हुतात्मा दिवस" है. १५ नवंबर १९४९ को उसे
फाँसी दी गई... गाँधी "वध" हेतु चले पूरे मुक़दमे के दौरान
नथुराम एक शब्द भी नहीं बोले, सिर्फ अंतिम सात
दिनों में अपना बयान दिया... जिसे सुनकर जज
भी रो दिए.
नथुराम को कभी भी गाँधी वध का पश्चाताप नहीं रहा,
गाँधी के वध के बाद नथुराम वहाँ से भागे नहीं, शांत खड़े
रहे... ना ही उन्होंने कभी अपने लिए माफी की माँग की...
नारायण आप्टे के साथ गोडसे को अम्बाला जेल में १५
नवंबर को फाँसी दी गई. उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनके
अस्थि कलश का विसर्जन तभी किया जाए, जब सिंधु
नदी अखंड भारत में प्रवाहित होने लगे... आज
भी उनका अस्थि कलश पुणे में उनके निवास पर रखा हुआ है...
विनम्र श्रद्धांजलि...
सेवा देश दी जिंदडीए बड़ी औखी, गल्लां करनियाँ बहुत सुखल्लियाँ ने,
जिन्ना देश सेवा विच पैर पाया, उन्ना लाख मुसीबतां झल्लियाँ ने.
करतार सिंह सराभा भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त करने के लिये अमेरिका में बनी गदर पार्टी के अध्यक्ष थे। भारत में एक बड़ी क्रान्ति की योजना के सिलसिले में उन्हें अंग्रेजी सरकार ने कई अन्य लोगों के साथ फांसी दे दी। १६ नवंबर १९१५ को कर्तार को जब फांसी पर चढ़ाया गया, तब वे मात्र साढ़े उन्नीस वर्ष के थे। प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगत सिंह उन्हें अपना आदर्श मानते थे।
पंजाब में गदर पार्टी का मुख्य कार्य छावनीयों में फौजियों को बगावत के लिए तैयार करना, और क्रांतिकारियों के साथ मेल-जोल बढाना था, करतार सिंह ने यहाँ पर गदर पार्टी का प्रचार किया, ऊपर लिखी हुई दो लाइन उनकी कविता से हैं, जो वो अक्सर ही गुनगुनाया करते थे.
16 नवम्बर, 1915 को साढे़ उन्नीस साल के युवक कर्तार सिंह सराभा को उनके छह अन्य साथियों - बख्शीश सिंह, (ज़िला अमृतसर); हरनाम सिंह, (ज़िला स्यालकोट); जगत सिंह, (ज़िला लाहौर); सुरैण सिंह व सुरैण, दोनों (ज़िला अमृतसर) व विष्णु गणेश पिंगले, (ज़िला पूना महाराष्ट्र)- के साथ लाहौर जेल में फांसी पर चढ़ा कर शहीद कर दिया गया।
करतार सिंह सराभा को दें श्रद्धाजलि
करतार सिंह सराभा को मिले शहीद का दर्जा
भारत के इतिहास में इस शूरवीर का नाम सदा ही सुनहरी अक्षरों में लिखा रहेगा.
जिन्ना देश सेवा विच पैर पाया, उन्ना लाख मुसीबतां झल्लियाँ ने.
करतार सिंह सराभा भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त करने के लिये अमेरिका में बनी गदर पार्टी के अध्यक्ष थे। भारत में एक बड़ी क्रान्ति की योजना के सिलसिले में उन्हें अंग्रेजी सरकार ने कई अन्य लोगों के साथ फांसी दे दी। १६ नवंबर १९१५ को कर्तार को जब फांसी पर चढ़ाया गया, तब वे मात्र साढ़े उन्नीस वर्ष के थे। प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगत सिंह उन्हें अपना आदर्श मानते थे।
पंजाब में गदर पार्टी का मुख्य कार्य छावनीयों में फौजियों को बगावत के लिए तैयार करना, और क्रांतिकारियों के साथ मेल-जोल बढाना था, करतार सिंह ने यहाँ पर गदर पार्टी का प्रचार किया, ऊपर लिखी हुई दो लाइन उनकी कविता से हैं, जो वो अक्सर ही गुनगुनाया करते थे.
16 नवम्बर, 1915 को साढे़ उन्नीस साल के युवक कर्तार सिंह सराभा को उनके छह अन्य साथियों - बख्शीश सिंह, (ज़िला अमृतसर); हरनाम सिंह, (ज़िला स्यालकोट); जगत सिंह, (ज़िला लाहौर); सुरैण सिंह व सुरैण, दोनों (ज़िला अमृतसर) व विष्णु गणेश पिंगले, (ज़िला पूना महाराष्ट्र)- के साथ लाहौर जेल में फांसी पर चढ़ा कर शहीद कर दिया गया।
करतार सिंह सराभा को दें श्रद्धाजलि
करतार सिंह सराभा को मिले शहीद का दर्जा
भारत के इतिहास में इस शूरवीर का नाम सदा ही सुनहरी अक्षरों में लिखा रहेगा.
एक बार एक किसान परमात्मा से
बड़ा नाराज हो गया ! कभी बाढ़ आ जाये,
कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज
हो जाए तो कभी ओले पड़ जाये! हर बार
कुछ ना कुछ कारण से उसकी फसल
थोड़ी ख़राब हो जाये! एक दिन बड़ा तंग आ
कर उसने परमात्मा से कहा ,देखिये
प्रभु,आप परमात्मा हैं , लेकिन लगता है
आपको खेती बाड़ी की ज्यादा जानकारी नह
ीं है ,एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे
मौका दीजिये , जैसा मै चाहू वैसा मौसम
हो,फिर आप देखना मै कैसे अन्न के
भण्डार भर दूंगा! परमात्मा मुस्कुराये और
कहा ठीक है, जैसा तुम कहोगे
वैसा ही मौसम दूंगा, मै दखल नहीं करूँगा!
किसान ने गेहूं की फ़सल बोई ,जब धूप
चाही ,तब धूप मिली, जब पानी तब पानी !
तेज धूप, ओले,बाढ़ ,आंधी तो उसने आने
ही नहीं दी, समय के साथ फसल बढ़ी और
किसान की ख़ुशी भी,क्योंकि ऐसी फसल
तो आज तक नहीं हुई थी ! किसान ने मन
ही मन सोचा अब
पता चलेगा परमात्मा को, की फ़सल कैसे
करते हैं ,बेकार ही इतने बरस हम
किसानो को परेशान करते रहे.
फ़सल काटने का समय भी आया ,किसान
बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन जैसे
ही फसल काटने लगा ,एकदम से छाती पर
हाथ रख कर बैठ गया! गेहूं की एक
भी बाली के अन्दर गेहूं
नहीं था ,सारी बालियाँ अन्दर से खाली थी,
बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से
कहा ,प्रभु ये क्या हुआ ?
तब परमात्मा बोले,” ये
तो होना ही था ,तुमने पौधों को संघर्ष
का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया . ना तेज
धूप में उनको तपने दिया ,
ना आंधी ओलों से जूझने दिया ,उनको
किसी प्रकार की चुनौती का अहसास
जरा भी नहीं होने दिया , इसीलिए सब पौधे
खोखले रह गए, जब आंधी आती है, तेज
बारिश होती है ओले गिरते हैं तब
पोधा अपने बल से ही खड़ा रहता है,
वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष
करता है और इस संघर्ष से जो बल
पैदा होता है वोही उसे
शक्ति देता है ,उर्जा देता है,
उसकी जीवटता को उभारता है.सोने
को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने ,
हथौड़ी से पिटने,गलने जैसी चुनोतियो से
गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम
आभा उभरती है,उसे अनमोल बनाती है !”
उसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष
ना हो ,चुनौती ना हो तो आदमी खोखला
ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण
नहीं आ पाता ! ये चुनोतियाँ ही हैं
जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं ,उसे
सशक्त और प्रखर बनाती हैं, अगर
प्रतिभाशाली बनना है तो चुनोतियाँ
तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी, अन्यथा हम
खोखले ही रह जायेंगे. अगर जिंदगी में
प्रखर
बननाहै,प्रतिभाशाली बनना है ,तो संघर्ष
और
चुनोतियो का सामना तो करना ही पड़ेगा !
बड़ा नाराज हो गया ! कभी बाढ़ आ जाये,
कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज
हो जाए तो कभी ओले पड़ जाये! हर बार
कुछ ना कुछ कारण से उसकी फसल
थोड़ी ख़राब हो जाये! एक दिन बड़ा तंग आ
कर उसने परमात्मा से कहा ,देखिये
प्रभु,आप परमात्मा हैं , लेकिन लगता है
आपको खेती बाड़ी की ज्यादा जानकारी नह
ीं है ,एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे
मौका दीजिये , जैसा मै चाहू वैसा मौसम
हो,फिर आप देखना मै कैसे अन्न के
भण्डार भर दूंगा! परमात्मा मुस्कुराये और
कहा ठीक है, जैसा तुम कहोगे
वैसा ही मौसम दूंगा, मै दखल नहीं करूँगा!
किसान ने गेहूं की फ़सल बोई ,जब धूप
चाही ,तब धूप मिली, जब पानी तब पानी !
तेज धूप, ओले,बाढ़ ,आंधी तो उसने आने
ही नहीं दी, समय के साथ फसल बढ़ी और
किसान की ख़ुशी भी,क्योंकि ऐसी फसल
तो आज तक नहीं हुई थी ! किसान ने मन
ही मन सोचा अब
पता चलेगा परमात्मा को, की फ़सल कैसे
करते हैं ,बेकार ही इतने बरस हम
किसानो को परेशान करते रहे.
फ़सल काटने का समय भी आया ,किसान
बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन जैसे
ही फसल काटने लगा ,एकदम से छाती पर
हाथ रख कर बैठ गया! गेहूं की एक
भी बाली के अन्दर गेहूं
नहीं था ,सारी बालियाँ अन्दर से खाली थी,
बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से
कहा ,प्रभु ये क्या हुआ ?
तब परमात्मा बोले,” ये
तो होना ही था ,तुमने पौधों को संघर्ष
का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया . ना तेज
धूप में उनको तपने दिया ,
ना आंधी ओलों से जूझने दिया ,उनको
किसी प्रकार की चुनौती का अहसास
जरा भी नहीं होने दिया , इसीलिए सब पौधे
खोखले रह गए, जब आंधी आती है, तेज
बारिश होती है ओले गिरते हैं तब
पोधा अपने बल से ही खड़ा रहता है,
वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष
करता है और इस संघर्ष से जो बल
पैदा होता है वोही उसे
शक्ति देता है ,उर्जा देता है,
उसकी जीवटता को उभारता है.सोने
को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने ,
हथौड़ी से पिटने,गलने जैसी चुनोतियो से
गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम
आभा उभरती है,उसे अनमोल बनाती है !”
उसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष
ना हो ,चुनौती ना हो तो आदमी खोखला
ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण
नहीं आ पाता ! ये चुनोतियाँ ही हैं
जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं ,उसे
सशक्त और प्रखर बनाती हैं, अगर
प्रतिभाशाली बनना है तो चुनोतियाँ
तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी, अन्यथा हम
खोखले ही रह जायेंगे. अगर जिंदगी में
प्रखर
बननाहै,प्रतिभाशाली बनना है ,तो संघर्ष
और
चुनोतियो का सामना तो करना ही पड़ेगा !
देश भक्त गोडसे
पाकिस्तान के असली जनक गाँधी को
मार कर गोडसे जी ने भारत का
पूर्ण इस्लामीकरण होने से रोक दिया था,
आज यदि हम भारत में हिन्दू के रूप में सांस ले रहे है
तो केवल गोडसे जी के प्रताप का फल है,
यदि वे न होते तो गाँधी की 3 फरवरी की
प्रस्तावित यात्रा में ही भारत पूर्ण रूप से
मुग्लिस्तान बन जाता,
गोडसे जी हमारे दिलो में सदैव जीवित रहेंगे
जिन्होंने गाँधी का वध करके
गाँधी के द्वारा पाकिस्तान देने के बाद
शेष बचे हुए भारत को पाकिस्तान के साथ मिलकर
मुग्लिस्तान बनाने के षड्यंत्र को रोक लिया था,
3 फरवरी 1948 की घोषित पाकिस्तान यात्रा में
मियां मोहनदस गाँधी पाकिस्तान को
कश्मीर हैदराबाद और जूनागढ़ वापिस देने वाले थे,
.............................. .............................. ..........
साथ ही पाकिस्तान को 55 करोड़ के अलावा
अरबो की अन्य संपत्ति,
सेना, वायुसेना और जलसेना का बंटवारा,
पाकिस्तान को जनसख्या के हिसाब से
सहायता राशि, देश के उद्योगों का बंटवारा और
सबसे बड़ी शर्त पूर्वी पाकिस्तान
(आज का बांग्लादेश) के ढाका से पश्चिमी पाकिस्तान के
लाहौर तक एक 5 किलोमीटर चौड़ा कोरिडोर बना कर
ग्रेटर पाकिस्तान बनाने का षड्यंत्र रचने की चाल थी,
इसलिए 20 जनवरी को गाँधी की हत्या का असफल पर्यास
करने के बाद भी
केवल 10 दिनों के भीतर दूसरा सफल प्रयास करना
किसी भी बड़े से बड़े संगठन के बस की भी बात नहीं है,
.............................. .............................. ................
चूँकि इसमें भारत के तब के कुछ मंत्रियो
जैसे की पटेल जी, अम्बेडकर जी और तब के रक्षा सचिव व् रक्षा प्रमुख ने भी
गाँधी वध की सम्भावना देखते हुए
उनकी सुरक्षा में ढील देकर गाँधी के वध का मार्ग प्रशस्त किया था,
और गोडसे जी को बचाने की भी पूरी कोशिश थी,
पर नेहरु के दबाव के चलते ऐसा नहीं हो सका,
और गोडसे जी को 1949 में फांसी दे दी गयी,
देश के लिए वे बलिदान हो गये
और राष्ट्र को पूर्ण रूप से
इस्लामिक होने से बचा लिया,
ऐसे महात्मा शूरवीर गोडसे जी को नमन
मार कर गोडसे जी ने भारत का
पूर्ण इस्लामीकरण होने से रोक दिया था,
आज यदि हम भारत में हिन्दू के रूप में सांस ले रहे है
तो केवल गोडसे जी के प्रताप का फल है,
यदि वे न होते तो गाँधी की 3 फरवरी की
प्रस्तावित यात्रा में ही भारत पूर्ण रूप से
मुग्लिस्तान बन जाता,
गोडसे जी हमारे दिलो में सदैव जीवित रहेंगे
जिन्होंने गाँधी का वध करके
गाँधी के द्वारा पाकिस्तान देने के बाद
शेष बचे हुए भारत को पाकिस्तान के साथ मिलकर
मुग्लिस्तान बनाने के षड्यंत्र को रोक लिया था,
3 फरवरी 1948 की घोषित पाकिस्तान यात्रा में
मियां मोहनदस गाँधी पाकिस्तान को
कश्मीर हैदराबाद और जूनागढ़ वापिस देने वाले थे,
..............................
साथ ही पाकिस्तान को 55 करोड़ के अलावा
अरबो की अन्य संपत्ति,
सेना, वायुसेना और जलसेना का बंटवारा,
पाकिस्तान को जनसख्या के हिसाब से
सहायता राशि, देश के उद्योगों का बंटवारा और
सबसे बड़ी शर्त पूर्वी पाकिस्तान
(आज का बांग्लादेश) के ढाका से पश्चिमी पाकिस्तान के
लाहौर तक एक 5 किलोमीटर चौड़ा कोरिडोर बना कर
ग्रेटर पाकिस्तान बनाने का षड्यंत्र रचने की चाल थी,
इसलिए 20 जनवरी को गाँधी की हत्या का असफल पर्यास
करने के बाद भी
केवल 10 दिनों के भीतर दूसरा सफल प्रयास करना
किसी भी बड़े से बड़े संगठन के बस की भी बात नहीं है,
..............................
चूँकि इसमें भारत के तब के कुछ मंत्रियो
जैसे की पटेल जी, अम्बेडकर जी और तब के रक्षा सचिव व् रक्षा प्रमुख ने भी
गाँधी वध की सम्भावना देखते हुए
उनकी सुरक्षा में ढील देकर गाँधी के वध का मार्ग प्रशस्त किया था,
और गोडसे जी को बचाने की भी पूरी कोशिश थी,
पर नेहरु के दबाव के चलते ऐसा नहीं हो सका,
और गोडसे जी को 1949 में फांसी दे दी गयी,
देश के लिए वे बलिदान हो गये
और राष्ट्र को पूर्ण रूप से
इस्लामिक होने से बचा लिया,
ऐसे महात्मा शूरवीर गोडसे जी को नमन
"नाथूराम गोडसेजी " को आज 15
नवम्बर के दिन फांसी दी गयी थी !
==========================
हुतात्मा नाथूराम गोडसे को आज ही के
दिन फांसी दी गई थी...
गांधी वध कोई आपसी रंजिश या निजी दुश्मनी के
चलते नहीं बल्कि देश हित में किया हुआ एक एक
ऐसा महान कार्य था जो भारत के लिए " नीव
का पत्थर " साबित हुआ
==============================
Why Godse Killed Gandhi : http://bit.ly/sXgZHQ
==============================
यहाँ नीव का पत्थर इसलिए कहा गया है
क्यों कि सर्वकालिक बलिदान किसी ईमारत में होता है
तो वो उसकी आधार शीला में या नीव में ही होता है !
.
जो मुर्ख लोग इस हुतात्मा के विरोधी है , यदि वे एक
बार भी गोडसे को नजदीक से जान लेंगे
तो मेरा दावा है उनको " गांधी वध " के मायने समझ
आजायेंगे !
जन्म लेने के बाद तीन पुत्र अधिक समय जीवित नहीं रहे, इसलिए गोडसे परिवार ने डर के मारे चौथे पुत्र का नाम "रामचंद्र" रखा, परन्तु कुशंका की वजह से उसका लालन-पालन शुरू में एक लड़की की तरह किया गया, नाक भी छिदवाई गई, नथ भी पहनाई गई. जब परिवार में पांचवां पुत्र पैदा हुआ और जीवित रहा तब कहीं जाकर यह अंधविश्वास टूटा और रामचंद्र को पुनः "लड़के" की तरह पालन किया जाने लगा...
परन्तु तब तक प्यार से उस बच्चे का नाम "नथुराम" (नथ पहने हुए राम) प्रचलित हो चुका था. उसी नथुराम गोडसे का आज "हुतात्मा दिवस" है. १५ नवंबर १९४९ को उसे फाँसी दी गई... गाँधी "वध" हेतु चले पूरे मुक़दमे के दौरान नथुराम एक शब्द भी नहीं बोले, सिर्फ अंतिम सात दिनों में अपना बयान दिया... जिसे सुनकर जज भी रो दिए.
नथुराम को कभी भी गाँधी वध का पश्चाताप नहीं रहा, गाँधी के वध के बाद नथुराम वहाँ से भागे नहीं, शांत खड़े रहे... ना ही उन्होंने कभी अपने लिए माफी की माँग की... नारायण आप्टे के साथ गोडसे को अम्बाला जेल में १५ नवंबर को फाँसी दी गई. उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनके अस्थि कलश का विसर्जन तभी किया जाए, जब सिंधु नदी अखंड भारत में प्रवाहित होने लगे... आज भी उनका अस्थि कलश पुणे में उनके निवास पर रखा हुआ है...
विनम्र श्रद्धांजलि...
बुधवार, 13 नवंबर 2013
हमारा भारत...............
1378 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक
राष्ट्र बना - नाम है इरान!
1761 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक
राष्ट्र बना - नाम है अफगानिस्तान!
1947 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक
राष्ट्र बना - नाम है पाकिस्तान!
1971 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक
राष्ट्र बना - नाम हैँ बांग्लादेश!
1952 से 1990 के बीच भारत का एक राज्य
इस्लामिक हो गया - नाम है कशमीर!...
...
और अब उत्तरप्रदेश, आसाम और केरला इस्लामिक
राज्य बनने की कगार पर है!
और हम जब भी हिँदुओँ को जगाने की बात करते हैँ,
सच्चाई बताते हैँ तो कुछ लोग हमेँ RSS, VHP और
SHIV-SENA, BJP वाला कहकर पल्ला झाङ लेते
हैँ!
वन्दे मातरम
हाल की दो महत्वपूर्ण घटनाओ को देश ने
जरूर देखा होगा ------ ( 1 )
उपराष्ट्रपति हमीद अंसारी ने अपने धर्म
के महत्व को समझते हुए दशहरा उत्सव के
दौरान आरती उतारने से मना कर
दिया क्योकि इस्लाम मे ये करना " मना "
है । ( 2 ) टी॰वी॰ सीरियल बिग बॉस
की एक प्रतियोगी गौहर खान ने
दुर्गा पुजा करने से मना कर दिया और
वो दूर खड़ी रहकर देखती रही , जबकि ये
एक कार्य था जिसे
करना सभी प्रतियोगी के लिए
जरूरी था लेकिन गौहर खान ने इस कार्य
को करने से साफ मना कर
दिया क्योकि इस्लाम मे ये करना " मना "
है । मित्रो इन दोनों ( हमीद अंसारी व
गौहर खान ) को मेरा साधुवाद
क्योकि दोनों ने किसी कीमत पर भी अपने
धर्म से समझौता नहीं किया , चाहे इसके
लिए कितनी बड़ी कीमत भी क्यो न
चुकनी पड़े । ये घटना उन तथाकथित "
सेकुलर " हिन्दुओ के मुह पर जोरदार
तमाचा है जो कहते फिरते है की कभी "
टोपी " भी पहननी पड़ती है तो कभी "
तिलक " भी लगाना पड़ता है , इस घटना मे
मीडिया का मौन रहना सबसे
ज्यादा अचरज का विषय है क्योकि सबसे
ज्यादा हाय तौबा यही मीडिया वाले
मचाते रहे है जब नरेंद्र मोदी जी ने
मुल्ला टोपी पहनने से इनकार कर
दिया था । उदाहरण लेना है तो मुस्लिम
समुदाय के लोगो से सीखो जो अपने धर्म के
लिए बड़ी से बड़ी कीमत चुकाने को तैयार
रहते है , पर अपने सिद्धांतों से
कभी समझौता नहीं कर सकते । वही हमारे
हिन्दू लोग " कायरता " का दूसरा रूप "
सेकुलर " होने का झूठा दिखावा करने से
बाज नहीं आते ।
इस sms को गौर से एक बार पढ़ लो ,
अमल करो मत करो आप लोगो की मर्जी,,,,
मैंने 10 लोगो को जो की हिन्दू है उनसे पुछा.......
किस जाती के हो.....??
सभी ने अलग अलग जवाब दिया....
किसी ने कहा राजपूत
किसी ने कहा बामण
किसी ने कहा जाट
सब अलग अलग
किसी ने जैन
तो किसी ने अग्रवाल....
लेकीन मैने 10 मुसलमानो को पूछा की कौन सी जाती के हो ?
सभी का एक जवाब आया
"मुसलमान"
मूझे अजीब लगा
मैने फिर से पूछा
फिर वही जवाब आया
"मुसलमान"
तब मुझे बड़ा अफसोस हुआ
और लगा हम कीतने अलग
और वो कितने एक ... ...
कुछ समझ मै आया हो तो
आगे से कोई पूछे तो एक ही
जवाब आना चाहीये
🚩॥ हिन्दू ॥🚩
और गर्व करते हो
" हिन्दू " होने का तो इस मैसेज को इतना फैला दो यह मैसेज मूझे वापस किसी हिन्दू से ही मिले ....!
राष्ट्र बना - नाम है इरान!
1761 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक
राष्ट्र बना - नाम है अफगानिस्तान!
1947 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक
राष्ट्र बना - नाम है पाकिस्तान!
1971 मेँ भारत से एक हिस्सा अलग हुआ, इस्लामिक
राष्ट्र बना - नाम हैँ बांग्लादेश!
1952 से 1990 के बीच भारत का एक राज्य
इस्लामिक हो गया - नाम है कशमीर!...
...
और अब उत्तरप्रदेश, आसाम और केरला इस्लामिक
राज्य बनने की कगार पर है!
और हम जब भी हिँदुओँ को जगाने की बात करते हैँ,
सच्चाई बताते हैँ तो कुछ लोग हमेँ RSS, VHP और
SHIV-SENA, BJP वाला कहकर पल्ला झाङ लेते
हैँ!
वन्दे मातरम
हाल की दो महत्वपूर्ण घटनाओ को देश ने
जरूर देखा होगा ------ ( 1 )
उपराष्ट्रपति हमीद अंसारी ने अपने धर्म
के महत्व को समझते हुए दशहरा उत्सव के
दौरान आरती उतारने से मना कर
दिया क्योकि इस्लाम मे ये करना " मना "
है । ( 2 ) टी॰वी॰ सीरियल बिग बॉस
की एक प्रतियोगी गौहर खान ने
दुर्गा पुजा करने से मना कर दिया और
वो दूर खड़ी रहकर देखती रही , जबकि ये
एक कार्य था जिसे
करना सभी प्रतियोगी के लिए
जरूरी था लेकिन गौहर खान ने इस कार्य
को करने से साफ मना कर
दिया क्योकि इस्लाम मे ये करना " मना "
है । मित्रो इन दोनों ( हमीद अंसारी व
गौहर खान ) को मेरा साधुवाद
क्योकि दोनों ने किसी कीमत पर भी अपने
धर्म से समझौता नहीं किया , चाहे इसके
लिए कितनी बड़ी कीमत भी क्यो न
चुकनी पड़े । ये घटना उन तथाकथित "
सेकुलर " हिन्दुओ के मुह पर जोरदार
तमाचा है जो कहते फिरते है की कभी "
टोपी " भी पहननी पड़ती है तो कभी "
तिलक " भी लगाना पड़ता है , इस घटना मे
मीडिया का मौन रहना सबसे
ज्यादा अचरज का विषय है क्योकि सबसे
ज्यादा हाय तौबा यही मीडिया वाले
मचाते रहे है जब नरेंद्र मोदी जी ने
मुल्ला टोपी पहनने से इनकार कर
दिया था । उदाहरण लेना है तो मुस्लिम
समुदाय के लोगो से सीखो जो अपने धर्म के
लिए बड़ी से बड़ी कीमत चुकाने को तैयार
रहते है , पर अपने सिद्धांतों से
कभी समझौता नहीं कर सकते । वही हमारे
हिन्दू लोग " कायरता " का दूसरा रूप "
सेकुलर " होने का झूठा दिखावा करने से
बाज नहीं आते ।
इस sms को गौर से एक बार पढ़ लो ,
अमल करो मत करो आप लोगो की मर्जी,,,,
मैंने 10 लोगो को जो की हिन्दू है उनसे पुछा.......
किस जाती के हो.....??
सभी ने अलग अलग जवाब दिया....
किसी ने कहा राजपूत
किसी ने कहा बामण
किसी ने कहा जाट
सब अलग अलग
किसी ने जैन
तो किसी ने अग्रवाल....
लेकीन मैने 10 मुसलमानो को पूछा की कौन सी जाती के हो ?
सभी का एक जवाब आया
"मुसलमान"
मूझे अजीब लगा
मैने फिर से पूछा
फिर वही जवाब आया
"मुसलमान"
तब मुझे बड़ा अफसोस हुआ
और लगा हम कीतने अलग
और वो कितने एक ... ...
कुछ समझ मै आया हो तो
आगे से कोई पूछे तो एक ही
जवाब आना चाहीये
🚩॥ हिन्दू ॥🚩
और गर्व करते हो
" हिन्दू " होने का तो इस मैसेज को इतना फैला दो यह मैसेज मूझे वापस किसी हिन्दू से ही मिले ....!
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