आलेख :
संसदीय और विधानसभा चुनाव देशभर में एक ही साथ होने चाहिए
-डॉ उमेश प्रताप वत्स
हिन्दुस्थान एक ऐसा देश है जहाँ हर वर्ष कहीं न कहीं चुनाव होते ही रहते हैं। हमने विद्यार्थी जीवन में पढ़ा है कि हिन्दुस्थान उत्सव, त्यौहारों का देश है। यदि कहा जाये कि त्यौहारों के साथ-साथ यह चुनावी उत्सवों का भी देश है तो गलत नहीं होगा। जनसंख्या के आधार पर विश्व का दूसरा सबसे बड़ा 28 राज्यों वाला देश हर वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनावों की तैयारी में व्यस्त रहता है। जिस कारण देश का बहुत सा धन, समय, ऊर्जा चुनाव संपन्न कराने में व्यतीत हो जाता है। प्रतिवर्ष जो कर्मचारी चुनाव संपन्न कराने की व्यवस्था में ड्यूटी करते हैं उनके मूल विभाग के कार्य पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। देश की सज्जन व दुर्जन शक्तियां प्रतिवर्ष एड़ी-चोटी का जोर लगाकर मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं फलस्वरूप दुर्जन शक्तियों की सक्रियता के कारण समाज में भय का वातावरण दिखाई देता है। प्रतिवर्ष चुनाव होने के कारण भ्रष्टाचार भी चरम सीमा पर पहुंच जाता है। अभी हाल ही में उत्तर-प्रदेश में कहीं दीवारों के अंदर से अरबों रुपयों की बरसात हो रही है और कहीं फर्श तोड़कर तहखानों से करोड़ों रुपये निकाले जा रहे हैं। चुनावों में धनबल प्रयोग होने के कारण भ्रष्टाचार का यह सारा धन अगल-अलग हथकंडों से एकत्र किया जाता है। गुंडातत्व का महत्व बढ़ जाता है जिस कारण फसलों की पैदावार की तरह प्रतिवर्ष नये-नये गुंडे पैदा किये जाते हैं। नेताओं की भी जो ताकत जनहित के लिए योजनाओं के क्रियान्वयन में लगनी चाहिए वह भी चुनावों की तैयारी में तथा चुनाव जीतने की कौशिश में लग जाती है। नेता लोग स्वयं को नये रूप में तराशने लगते हैं। वे मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए जबरदस्त होमवर्क करते हैं, इसके लिए जाति-धर्म के नाम पर वैमनस्य फैलाने की तथा भय का वातावरण तैयार करने की योजनाएं बनाई जाती हैं, किस स्थान पर किन लोगों के बीच कौन-सा ब्यान देना है, इसका निरंतर अभ्यास किया जाता है। वे जानते हैं कि यह सब गलत है किंतु एक वकील की भांति विजय ही इनका सबसे बड़ा धर्म है बेशक इसके लिए किसी भी हद तक जाना पड़े और किसी भी स्तर तक गिरना पड़े। औरंगजेब की तरह सत्ता प्राप्त करने के लिए चाहे पिता को जेल में डालना पड़े अथवा भाईयों का वध करना पड़े, इनकी नजर में सब जायज है। यह कुत्सित मानसिकता हर चुनाव में शक्तिशाली होकर अपने काम पर लग जाती है। यदि जनता सरकारी नीति, कार्य, योजनाओं से संतुष्ट हैं तो ये कुत्सित राजनीति के खिलाड़ी रातों-रात जाति या धर्म के नाम पर दंगे करवाकर सुबह तक सारा परिदृश्य बदलने में माहिर होते हैं।
इन सभी समस्याओं का एक ही समाधान है कि देश की संसद का तथा सभी राज्यों में विधानसभा का चुनाव एक साथ कराया जाये। इसके लिए देश में कई बार बहस छिड़ी भी है। सबने अपने-अपने मत प्रकट किये हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने भी एक साथ चुनाव कराने की इच्छा जताई थी। वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी ने भी अगल-अलग मंचों से एक साथ चुनाव कराने की पैरवी की है किंतु एक व्यापक स्तर पर प्रयास नहीं हो पा रहा है। देश की अधिकतर राजनैतिक पार्टियां इस मामले पर उदासीन है। कहीं न कहीं एक साथ चुनाव कराने में यह समस्या भी है कि किसी राज्य में सरकार को एक वर्ष हुआ है तो किसी में ढाई या चार वर्ष हुये हैं तो पाँच वर्ष के लिए चुनी हुई सरकार को समय से पहले भंग कैसे करें अथवा जब तक सभी पार्टियों के पाँच वर्ष पूरे हो तब तक बाकि राज्यों में जहां सरकार का कार्यकाल पूरा हो चुका है वहां कैसे सरकार चलाएं। फिर जैसे-कैसे एक साथ चुनाव करवा भी दिये जायें तो किसी भी सरकार के गठबंधन के कारण या फिर सासंद, विधायक की मृत्यु के कारण सत्ताधारी पार्टी अल्पमत में आ जाये तो क्या करें, यदि रिक्त सीट पर पुनः चुनाव करवाये जाये तो फिर एक साथ चुनाव कराने के प्रयासों को झटका लग सकता है। अतः इन सभी संदेहास्पद स्थिति के कारण कोई भी देशभर में एक साथ चुनाव कराने को लेकर स्पष्ट नहीं है।
इसका एकमात्र समाधान यही है कि देश का सर्वोच्च न्यायालय स्वयं संज्ञान लेकर इस मामले में हस्तक्षेप करें, जब 2024 में देशभर में संसदीय चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ हो तब सभी राज्यों में एक साथ चुनाव करायें जाये बल्कि पंच, पार्षद से लेकर संसद तक सभी चुनाव एक साथ हो। जिन राज्यों में सरकार को 50 प्रतिशत अर्थात् ढाई वर्ष से कम समय हुआ हो उसे बिना चुनाव के 2024 के बाद भी पाँच वर्ष तक अर्थात् 2029 तक सरकार चलाने की मान्यता मिले से और जिस राज्य में ढाई वर्ष से अधिक समय हो गया है उसे 2024 में संसदीय चुनावों के साथ ही फिर से चुनाव जीतने के लिए जनता के दरबार में भेजा जाये। एक साथ चुनाव संपन्न होने के बाद यदि किसी सांसद या विधायक की मृत्यु से या फिर किसी गठबंधन के टूटने से सरकार अल्पमत में आ जाये तो आगामी पांच वर्ष पूरे करने के लिए या तो बहुमत प्राप्त पार्टी शेष काल पूरा करे अन्यथा बचा हुआ समय पूरा करने के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जाये किंतु मध्यावधि चुनाव न हो। इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद ठोस नीति बनाने पर ही इस समस्या से निजात पाई जा सकती है। यदि ऐसा हो जाता है तो इसके बहुत ही सुखद परिणाम आयेंगे। देश का धन और समय बचेगा। कर्मचारियों को बार-बार चुनाव ड्यूटी से निजात मिलेगी। केन्द्र व राज्य सरकारों को पाँच वर्षों तक निर्बाध कार्य करने का सुअवसर मिलेगा। भ्रष्टाचार में कमी आयेगी। चुनावी राजनैतिक दुकानें बंद होंगी। चुनाव के दौरान विदेशी षडयंत्रों में कमी आयेगी। चुनाव आयोग व अन्य विभागों पर चुनाव कराने का दबाव कम होगा। सरकारी जाँच एजेंसियों को चुनाव के दबाव बिना कार्य करने स्पष्ट मार्ग मिलेगा अन्यथा वर्तमान में किसी भी राज्य में कहीं भी किसी पर जाँच एजेंसियाँ जब कारवाई करती है तो उसे चुनाव से जोड़ कर देखा जाता है। सबसे बड़ी बात कि पाँच वर्ष में एक बार चुनाव संपन्न कराने से देश की बहुत अधिक ऊर्जा व्यर्थ खर्च होने से बचेगी जो देश की प्रगति में लगने पर भारत को उन्नति के उच्च शिखर तक ले जाने में सक्षम होगी।
- डॉ उमेश प्रताप वत्स
Umeshpvats@gmail.com
यमुनानगर, हरियाणा
9416966424
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