वोट की चोट
कोई कहता वोट दो,
कोई बोले नोट दो।
नोट-वोट का झगड़ा छोड़ो,
मुझको तो बस रोट दो।
मेरा
पेट कमर के अन्दर,
रोटी
की तस्वीर बनाए।
जी-तोड़
परिश्रम पर भी,
भूखे
पेट निद्रा न आए।
अपनी हड्डियों को सम्भाले,
खाने को दाने के लाले।
जीवन को कैसे सरकाऊँ,
अब तो गला घोट दो।
नोट-वोट
का झगड़ा छोड़ो,
मुझको
तो बस रोट दो।
पत्नी बीमार पड़ी है घर में,
बच्चा भूखा बिलख र
दो वक्त की रोटी हेतु,
नहीं जतन कोई दीख रहा।
स्वाभिमान
को गिरवी रखकर,
बन
भिखारी भटक रहा हूँ।
छोड़ो
सारी दलीले-भाषण,
और
अधिक न चोट दो।
नोट-वोट का झगड़ा छोड़ो,
मुझको तो बस रोट दो।
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