‘‘ सुलगता कश्मीर ’’
है विडम्बना ये भारत की,
देखो कश्मीर सुलग रहा है।
ठोस नीति के अभाव मे,
भारत मे ही अलग रहा है ।।
कितने महापुरूषो ने स्वयं को,
बलिवेदी पर चढा दिया।
कश्मीरी संस्कृति बची रहे,
इस हेतु जन-जन खडा किया।।
द्यूत-क्रीडा के दंगल मे ,
फिर से शकुनि विजयी हुआ है।
ठोस नीति के अभाव मे,
भारत मे ही अलग रहा है ।।1।।
हरिसिंह संग कबीला युद्ध मे,
हैलीपैड बना डाले।
उत्साहवर्धन से सेना बोली,
ये तो है कोई संघ वाले।।
सारे प्रयत्न ध्वस्त हुए,
जब सरदार पटेल को रोक दिया।
अन्तर्राष्ट्रीय झगडा है ये,
अमरीका को बोल दिया।।
कैसे माने चाचा उनको,
शत्रुओं सा व्यवहार किया है।
ठोस नीति के अभाव मे,
भारत मे ही अलग रहा है ।।2।।
बीती यादे छा जाती ,
कश्मीर वादियों की मन मे।
शांत हिमालय की चोटी,
खडे देवदार वन-वन मे।।
रामबन और बनिहाल,
मंदिरो की यादे कण-कण मे।
वो कश्मीरी अल्हडपन यौवन,
सिरहन सी उठ जाती तन मे।।
शंकराचार्य का शिवालय,
डलझील-केशर बर्बाद हुआ है।
ठोस नीति के अभाव मे,
भारत मे ही अलग रहा है ।।3।।
कर डाली जो भूले उनमे,
अब तो कुछ सुधार करो।
भारत माता के गुनाहगारो का,
कोई तो उपचार करो।।
संसद मे बैठे भेडियो का,
मिलकर साक्षात्कार करो।
अरूंधती, जिलानी, मुफ्ती के,
पक्षकारो का बहिष्कार करो।।
प्रचण्ड विरोध हो देशद्रोहियो का,
व्यक्ति-व्यक्ति खडा हुआ है।
ठोस नीति के अभाव मे,
भारत मे ही अलग रहा है ।।4।।