लघुकथा - एसी टिकट
डॉ उमेश प्रताप वत्स
फटीचर वेश में एक व्यक्ति तीन थैले लेकर ट्रेन में चढ़ने के लिए बड़ा आतुर दिखाई दे रहा था। वह एसी टू टायर के एरिया में खड़ा था। जैसे ही ट्रेन आई तो भीड़ देखकर मैंने कहाँ चाचा सामान्य डिब्बे तो आगे आयेंगे। बाद में आपको जगह नहीं मिलेगी , आप पहले से ही आगे चले जाओ। तो उन महाशय ने लोकल भाषा में बड़ी विनम्रता से कहा कि मेरा एसी टू के तीसरे डिब्बे में सीट नम्बर सत्ताइस है। मैं हैरानी से उसे देखने लगा तभी मेरे कुछ पूछने से पहले ही बोला कि बेटे की नई-नई नौकरी लगी है उसी ने टिकट बुक कराया है और ट्रेन आने पर वह खुशी-खुशी डिब्बे में चढ़ गया और मैं मन ही मन उसके बेटे को धन्य-धन्य कहता रहा।
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