कविता :- परेड़ ग्राऊंड़ से प्रेम पत्र
परेड़ ग्राऊंड़ से प्रिये को प्रेम पत्र
सुबह उठते ही प्रिये मुझे, जब याद तुम्हारी आती है,
हाय ! तभी वैरी व्हिसल, तुरंत फॉलोअन में बुलाती है।
आइने में देखूं मैं जब-तब, तस्वीर तुम्हारी लगती है,
फर्क इतना तुम साड़ी में, मेरे बदन पे खाकी सजती है।
खुली लाइन में दूर-दूर, दो दिल मुद्दत से बिछुड़ रहे,
निकट लाइन के मधुर मिलन में, फिर मिलने को तड़फ रहे।
आ न जाऊं कहीं पास तुम्हारे, ये वन-टू-टैन दौड़ाते है,
पैदल भी न पहूँच संकू, तभी चौदह कदम चलाते हैं।
ये क्या जाने प्यार हमारा, रोज डांट पिलाते हैं
पतझड़ से गहरा रिश्ता है, फॉलोऑन में बहुत सताते हैं
वर्ड कमांड में सज-सज कहकर, दाहिने से रोज सजाते हैं,
प्यार के दुशमन बेंत हाथ में, ढ़म-ढ़म ढ़ोल बजाते हैं।
ढ़ोल की तरंगे भी लगती, अपनी शादी की शहनाई,
सुहागरात की मधुर स्मृति, मेरे हृदय में समाई।
सपनों में भंवरा बन उड़के, निकट तुम्हारे आता हूँ,
“ परेड़ थम ” की तल्ख आवाज से, खड़ा यहीं रह जाता हूँ।
मधुर पलों की झंकारों में, जब झंकरित हो जाता हूँ,
कल्पनाओं के पंख लगाकर, तुमसे मिलने आता हूँ।
तभी बेसुरी कर्कस आवाज से, मैं हतप्रभ रह जाता हूँ,
काफूर हुई यादें और स्वयं को काले मैदान में पाता हूँ।
प्रिये SSS इस विराहग्नि को, अभी नहीं बुझने देना,
हर क्षण और हर सांस में, प्रेम-ज्योति जलने देना।
एक-दो-एक कहते-कहते मैं, पास तुम्हारे आऊँगा,
कोई रोक सके तो रोक दिखाएं, 8 अक्तुबर को जाऊँगा।
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