शुक्रवार, 15 दिसंबर 2023

कविता - छलांग

 कविता - छलांग

  • डॉ उमेश प्रताप वत्स 


ऊचे आकाश में उड़ना तो ठीक है 

किंतु जमीं से जुड़े रहना ही संस्कार है 

हम जो भी हो ,जहां भी हो जीवन में 

सरलता ही आदर्श चरित्र का आकार है 


बाज की गगनचुंबी उड़ान, सीख दे जाती हमें ।

बेशक हो आकाश में , निगाहें जमीं पर जमे 

तभी कोई भी शिकार, बचकर जा सकता नहीं 

लक्ष्य प्राप्ति के बाद ही, हमारे बढ़ते कदम थमे ।


छलांगे तो हमने बहुत ऊँची लगाई बार-बार 

आसमान छू जो धरा का स्पर्श कर बढ़ता है 

आत्मविश्वास और मेहनत की शक्ति लेकर 

वही मानव सदा अनुकरणीय भविष्य गढ़ता है

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