रविवार, 29 दिसंबर 2013

मैं भारत की बेटी हूँ

मैं भारत की बेटी हूँ

 

सदियों से मैं सुनती आई, कि नन्ही सी देवी हूँ।

चार दिन से भूखी चाहे, पर भारत की बेटी हूँ।

                                   

चाहे देश का गौरव बनकर, मैंने इतिहास रचाया है।

                                    युद्धों में तलवार चलाकर, मर्दाना वेश बनाया है।

 

खड़ी रही तूफानों में भी, इस देश की तकदीर हूँ।

चार दिन से भूखी चाहे, पर भारत की बेटी हूँ।

                       

ठिठुर-ठिठुर के फुटपाथों पर, चाहे बिन कपड़े सोती हूँ।

                                    स्वाभिमान और आदर्शों की, सीप-समुद्र-मोती हूँ।

 

ग्रास छिनकर भूखे मुख का, पेट नहीं मैं भरती हूँ।

चार दिन से भूखी चाहे, पर भारत की बेटी हूँ।

                       

विकट समस्या हो चाहे जितनी, हाथ नहीं फैलाऊँगी।

                                    दो-दो परिवारों के साथ मैं, देश का मान बढ़ाऊँगी।

 

 

बीच भंवर में नैया लेकर, मैं पतवार चलाती हूँ।

चार दिन से भूखी चाहे, पर भारत की बेटी हूँ।

 

लाचारी और बेकारी को, चेताया झोपड़-पट्टी में।

                                    मेहनत से मैंने सपने संजोए, काया जलाई भट्टी में।

 

संघर्षरत्त रहकर भी मैं, झूम-झूम इठलाती हूँ।

चार दिन से भूखी चाहे, पर भारत की बेटी हूँ।

                       

राम-कृष्ण की माता हूँ, गोविन्द-शिवा की जननी चाहे।

                                    राजकुँवर के बदले पुत्र को, बलिदान करूँ पन्ना बन चाहे।

 

फिर क्यों पैदा होने से पहले, कोख में मारी जाती हूँ।


चार दिन से भूखी चाहे, पर भारत की बेटी हूँ।

कैसे और क्यों बनाया अमेरिका ने केजरीवाल को सीआईए एजेंट , जानिए पूरी कहानी! कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली एनजीओ गिरोह ‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी)’ ने घोर ‘सांप्रदायिक और लक्ष्य केंद्रित हिंसा निवारण अधिनियम’ का ड्राफ्ट तैयार किया है। एनएसी की एक प्रमुख सदस्य अरुणा राय के साथ मिलकर अरविंद केजरीवाल ने सरकारी नौकरी में रहते हुए एनजीओ की कार्यप्रणाली समझी और फिर ‘परिवर्तन’ नामक एनजीओ से जुड़ गए। अरविंद लंबे अरसे तक राजस्व विभाग से छुटटी लेकर भी सरकारी तनख्वाह ले रहे थे और एनजीओ से भी वेतन उठा रहे थे, जो ‘श्रीमान ईमानदार’ को कानूनन भ्रष्‍टाचारी की श्रेणी में रखता है। वर्ष 2006 में ‘परिवर्तन’ में काम करने के दौरान ही उन्हें अमेरिकी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ ने ‘उभरते नेतृत्व’ के लिए ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार दिया, जबकि उस वक्त तक अरविंद ने ऐसा कोई काम नहीं किया था, जिसे उभरते हुए नेतृत्व का प्रतीक माना जा सके। इसके बाद अरविंद अपने पुराने सहयोगी मनीष सिसोदिया के एनजीओ ‘कबीर’ से जुड़ गए, जिसका गठन इन दोनों ने मिलकर वर्ष 2005 में किया था। अरविंद को समझने से पहले ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को समझ लीजिए! अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए)’ अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी ‘फोर्ड’ द्वारा संचालित ‘फोर्ड फाउंडेशन’ एवं कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती रही है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति व चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारतीय अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के जरिए फिलिपिंस की राजनीति को पूरी तरह से अपने कब्जे में करने के लिए अमेरिका ने उस जमाने में प्रचार के जरिए उनका राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ‘छवि निर्माण’ से लेकर उन्हें ‘नॉसियोनालिस्टा पार्टी’ का उम्मीदवार बनाने और चुनाव जिताने के लिए करीब 5 मिलियन डॉलर खर्च किया था। तत्कालीन सीआईए प्रमुख एलन डॉउल्स की निगरानी में इस पूरी योजना को उस समय के सीआईए अधिकारी ‘एडवर्ड लैंडस्ले’ ने अंजाम दिया था। इसकी पुष्टि 1972 में एडवर्ड लैंडस्ले द्वारा दिए गए एक साक्षात्कार में हुई। ठीक अरविंद केजरीवाल की ही तरह रेमॉन मेग्सेसाय की ईमानदार छवि को गढ़ा गया और ‘डर्टी ट्रिक्स’ के जरिए विरोधी नेता और फिलिपिंस के तत्कालीन राष्ट्रपति ‘क्वायरिनो’ की छवि धूमिल की गई। यह प्रचारित किया गया कि क्वायरिनो भाषण देने से पहले अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए ड्रग का उपयोग करते हैं। रेमॉन मेग्सेसाय की ‘गढ़ी गई ईमानदार छवि’ और क्वायरिनो की ‘कुप्रचारित पतित छवि’ ने रेमॉन मेग्सेसाय को दो तिहाई बहुमत से जीत दिला दी और अमेरिका अपने मकसद में कामयाब रहा था। भारत में इस समय अरविंद केजरीवाल बनाम अन्य राजनीतिज्ञों की बीच अंतर दर्शाने के लिए छवि गढ़ने का जो प्रचारित खेल चल रहा है वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनाए गए तरीके और प्रचार से बहुत कुछ मेल खाता है। उन्हीं ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्‍टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ मिलकर अप्रैल 1957 से ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ अवार्ड प्रदान कर रही है। ‘आम आदमी पार्टी’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनके साथी व ‘आम आदमी पार्टी’ के विधायक मनीष सिसोदिया को भी वही ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार मिला है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड से उनका एनजीओ ‘कबीर’ और ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ मूवमेंट खड़ा हुआ है। भारत में राजनैतिक अस्थिरता के लिए एनजीओ और मीडिया में विदेशी फंडिंग! ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के एक अधिकारी स्टीवन सॉलनिक के मुताबिक ‘‘कबीर को फोर्ड फाउंडेशन की ओर से वर्ष 2005 में 1 लाख 72 हजार डॉलर एवं वर्ष 2008 में 1 लाख 97 हजार अमेरिकी डॉलर का फंड दिया गया।’’ यही नहीं, ‘कबीर’ को ‘डच दूतावास’ से भी मोटी रकम फंड के रूप में मिली। अमेरिका के साथ मिलकर नीदरलैंड भी अपने दूतावासों के जरिए दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में अमेरिकी-यूरोपीय हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए वहां की गैर सरकारी संस्थाओं यानी एनजीओ को जबरदस्त फंडिंग करती है। अंग्रेजी अखबार ‘पॉयनियर’ में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक डच यानी नीदरलैंड दूतावास अपनी ही एक एनजीओ ‘हिवोस’ के जरिए नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार को अस्थिर करने में लगे विभिन्‍न भारतीय एनजीओ को अप्रैल 2008 से 2012 के बीच लगभग 13 लाख यूरो, मतलब करीब सवा नौ करोड़ रुपए की फंडिंग कर चुकी है। इसमें एक अरविंद केजरीवाल का एनजीओ भी शामिल है। ‘हिवोस’ को फोर्ड फाउंडेशन भी फंडिंग करती है। डच एनजीओ ‘हिवोस’ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में केवल उन्हीं एनजीओ को फंडिंग करती है,जो अपने देश व वहां के राज्यों में अमेरिका व यूरोप के हित में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की क्षमता को साबित करते हैं। इसके लिए मीडिया हाउस को भी जबरदस्त फंडिंग की जाती है। एशियाई देशों की मीडिया को फंडिंग करने के लिए अमेरिका व यूरोपीय देशों ने ‘पनोस’ नामक संस्था का गठन कर रखा है। दक्षिण एशिया में इस समय ‘पनोस’ के करीब आधा दर्जन कार्यालय काम कर रहे हैं। ‘पनोस’ में भी फोर्ड फाउंडेशन का पैसा आता है। माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल के मीडिया उभार के पीछे इसी ‘पनोस’ के जरिए ‘फोर्ड फाउंडेशन’ की फंडिंग काम कर रही है। ‘सीएनएन-आईबीएन’ व ‘आईबीएन-7’ चैनल के प्रधान संपादक राजदीप सरदेसाई ‘पॉपुलेशन काउंसिल’ नामक संस्था के सदस्य हैं, जिसकी फंडिंग अमेरिका की वही ‘रॉकफेलर ब्रदर्स’ करती है जो ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार के लिए ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के साथ मिलकर फंडिंग करती है। माना जा रहा है कि ‘पनोस’ और ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ की फंडिंग का ही यह कमाल है कि राजदीप सरदेसाई का अंग्रेजी चैनल ‘सीएनएन-आईबीएन’ व हिंदी चैनल ‘आईबीएन-7’ न केवल अरविंद केजरीवाल को ‘गढ़ने’ में सबसे आगे रहे हैं, बल्कि 21 दिसंबर 2013 को ‘इंडियन ऑफ द ईयर’ का पुरस्कार भी उसे प्रदान किया है। ‘इंडियन ऑफ द ईयर’ के पुरस्कार की प्रयोजक कंपनी ‘जीएमआर’ भ्रष्‍टाचार में घिरी है। ‘जीएमआर’ के स्वामित्व वाली ‘डायल’ कंपनी ने देश की राजधानी दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा विकसित करने के लिए यूपीए सरकार से महज 100 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन हासिल किया है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ‘सीएजी’ ने 17 अगस्त 2012 को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जीएमआर को सस्ते दर पर दी गई जमीन के कारण सरकारी खजाने को 1 लाख 63 हजार करोड़ रुपए का चूना लगा है। इतना ही नहीं, रिश्वत देकर अवैध तरीके से ठेका हासिल करने के कारण ही मालदीव सरकार ने अपने देश में निर्मित हो रहे माले हवाई अड्डा का ठेका जीएमआर से छीन लिया था। सिंगापुर की अदालत ने जीएमआर कंपनी को भ्रष्‍टाचार में शामिल होने का दोषी करार दिया था। तात्पर्य यह है कि अमेरिकी-यूरोपीय फंड, भारतीय मीडिया और यहां यूपीए सरकार के साथ घोटाले में साझीदार कारपोरेट कंपनियों ने मिलकर अरविंद केजरीवाल को ‘गढ़ा’ है, जिसका मकसद आगे पढ़ने पर आपको पता चलेगा। ‘जनलोकपाल आंदोलन’ से ‘आम आदमी पार्टी’ तक का शातिर सफर! आरोप है कि विदेशी पुरस्कार और फंडिंग हासिल करने के बाद अमेरिकी हित में अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया ने इस देश को अस्थिर करने के लिए ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ का नारा देते हुए वर्ष 2011 में ‘जनलोकपाल आंदोलन’ की रूप रेखा खिंची। इसके लिए सबसे पहले बाबा रामदेव का उपयोग किया गया, लेकिन रामदेव इन सभी की मंशाओं को थोड़ा-थोड़ा समझ गए थे। स्वामी रामदेव के मना करने पर उनके मंच का उपयोग करते हुए महाराष्ट्र के सीधे-साधे, लेकिन भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध कई मुहीम में सफलता हासिल करने वाले अन्ना हजारे को अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से उत्तर भारत में ‘लॉंच’ कर दिया। अन्ना हजारे को अरिवंद केजरीवाल की मंशा समझने में काफी वक्त लगा, लेकिन तब तक जनलोकपाल आंदोलन के बहाने अरविंद ‘कांग्रेस पार्टी व विदेशी फंडेड मीडिया’ के जरिए देश में प्रमुख चेहरा बन चुके थे। जनलोकपाल आंदोलन के दौरान जो मीडिया अन्ना-अन्ना की गाथा गा रही थी, ‘आम आदमी पार्टी’ के गठन के बाद वही मीडिया अन्ना को असफल साबित करने और अरविंद केजरीवाल के महिमा मंडन में जुट गई। विदेशी फंडिंग तो अंदरूनी जानकारी है, लेकिन उस दौर से लेकर आज तक अरविंद केजरीवाल को प्रमोट करने वाली हर मीडिया संस्थान और पत्रकारों के चेहरे को गौर से देखिए। इनमें से अधिकांश वो हैं, जो कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के द्वारा अंजाम दिए गए 1 लाख 76 हजार करोड़ के 2जी स्पेक्ट्रम, 1 लाख 86 हजार करोड़ के कोल ब्लॉक आवंटन, 70 हजार करोड़ के कॉमनवेल्थ गेम्स और ‘कैश फॉर वोट’ घोटाले में समान रूप से भागीदार हैं। आगे बढ़ते हैं…! अन्ना जब अरविंद और मनीष सिसोदिया के पीछे की विदेशी फंडिंग और उनकी छुपी हुई मंशा से परिचित हुए तो वह अलग हो गए, लेकिन इसी अन्ना के कंधे पर पैर रखकर अरविंद अपनी ‘आम आदमी पार्टी’ खड़ा करने में सफल रहे। जनलोकपाल आंदोलन के पीछे ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड को लेकर जब सवाल उठने लगा तो अरविंद-मनीष के आग्रह व न्यूयॉर्क स्थित अपने मुख्यालय के आदेश पर फोर्ड फाउंडेशन ने अपनी वेबसाइट से ‘कबीर’ व उसकी फंडिंग का पूरा ब्यौरा ही हटा दिया। लेकिन उससे पहले अन्ना आंदोलन के दौरान 31 अगस्त 2011 में ही फोर्ड के प्रतिनिधि स्टीवेन सॉलनिक ने ‘बिजनस स्टैंडर’ अखबार में एक साक्षात्कार दिया था, जिसमें यह कबूल किया था कि फोर्ड फाउंडेशन ने ‘कबीर’ को दो बार में 3 लाख 69 हजार डॉलर की फंडिंग की है। स्टीवेन सॉलनिक के इस साक्षात्कार के कारण यह मामला पूरी तरह से दबने से बच गया और अरविंद का चेहरा कम संख्या में ही सही, लेकिन लोगों के सामने आ गया। सूचना के मुताबिक अमेरिका की एक अन्य संस्था ‘आवाज’ की ओर से भी अरविंद केजरीवाल को जनलोकपाल आंदोलन के लिए फंड उपलब्ध कराया गया था और इसी ‘आवाज’ ने दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए भी अरविंद केजरीवाल की ‘आम आदमी पार्टी’ को फंड उपलब्ध कराया। सीरिया, इजिप्ट, लीबिया आदि देश में सरकार को अस्थिर करने के लिए अमेरिका की इसी ‘आवाज’ संस्था ने वहां के एनजीओ, ट्रस्ट व बुद्धिजीवियों को जमकर फंडिंग की थी। इससे इस विवाद को बल मिलता है कि अमेरिका के हित में हर देश की पॉलिसी को प्रभावित करने के लिए अमेरिकी संस्था जिस ‘फंडिंग का खेल’ खेल खेलती आई हैं, भारत में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और ‘आम आदमी पार्टी’ उसी की देन हैं। सुप्रीम कोर्ट के वकील एम.एल.शर्मा ने अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया के एनजीओ व उनकी ‘आम आदमी पार्टी’ में चुनावी चंदे के रूप में आए विदेशी फंडिंग की पूरी जांच के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर रखी है। अदालत ने इसकी जांच का निर्देश दे रखा है, लेकिन केंद्रीय गृहमंत्रालय इसकी जांच कराने के प्रति उदासीनता बरत रही है, जो केंद्र सरकार को संदेह के दायरे में खड़ा करता है। वकील एम.एल.शर्मा कहते हैं कि ‘फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-2010’ के मुताबिक विदेशी धन पाने के लिए भारत सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है। यही नहीं, उस राशि को खर्च करने के लिए निर्धारित मानकों का पालन करना भी जरूरी है। कोई भी विदेशी देश चुनावी चंदे या फंड के जरिए भारत की संप्रभुता व राजनैतिक गतिविधियों को प्रभावित नहीं कर सके, इसलिए यह कानूनी प्रावधान किया गया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल व उनकी टीम ने इसका पूरी तरह से उल्लंघन किया है। बाबा रामदेव के खिलाफ एक ही दिन में 80 से अधिक मुकदमे दर्ज करने वाली कांग्रेस सरकार की उदासीनता दर्शाती है कि अरविंद केजरीवाल को वह अपने राजनैतिक फायदे के लिए प्रोत्साहित कर रही है। अमेरिकी ‘कल्चरल कोल्ड वार’ के हथियार हैं अरविंद केजरीवाल! फंडिंग के जरिए पूरी दुनिया में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की अमेरिका व उसकी खुफिया एजेंसी ‘सीआईए’ की नीति को ‘कल्चरल कोल्ड वार’ का नाम दिया गया है। इसमें किसी देश की राजनीति, संस्कृति व उसके लोकतंत्र को अपने वित्त व पुरस्कार पोषित समूह, एनजीओ, ट्रस्ट, सरकार में बैठे जनप्रतिनिधि, मीडिया और वामपंथी बुद्धिजीवियों के जरिए पूरी तरह से प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है। अरविंद केजरीवाल ने ‘सेक्यूलरिज्म’ के नाम पर इसकी पहली झलक अन्ना के मंच से ‘भारत माता’ की तस्वीर को हटाकर दे दिया था। चूंकि इस देश में भारत माता के अपमान को ‘सेक्यूलरिज्म का फैशनेबल बुर्का’ समझा जाता है, इसलिए वामपंथी बुद्धिजीवी व मीडिया बिरादरी इसे अरविंद केजरीवाल की धर्मनिरपेक्षता साबित करने में सफल रही। एक बार जो धर्मनिरपेक्षता का गंदा खेल शुरू हुआ तो फिर चल निकला और ‘आम आदमी पार्टी’ के नेता प्रशांत भूषण ने तत्काल कश्मीर में जनमत संग्रह कराने का सुझाव दे दिया। प्रशांत भूषण यहीं नहीं रुके, उन्होंने संसद हमले के मुख्य दोषी अफजल गुरु की फांसी का विरोध करते हुए यह तक कह दिया कि इससे भारत का असली चेहरा उजागर हो गया है। जैसे वह खुद भारत नहीं, बल्कि किसी दूसरे देश के नागरिक हों? प्रशांत भूषण लगातार भारत विरोधी बयान देते चले गए और मीडिया व वामपंथी बुद्धिजीवी उनकी आम आदमी पार्टी को ‘क्रांतिकारी सेक्यूलर दल’ के रूप में प्रचारित करने लगी। प्रशांत भूषण को हौसला मिला और उन्होंने केंद्र सरकार से कश्मीर में लागू एएफएसपीए कानून को हटाने की मांग करते हुए कह दिया कि सेना ने कश्मीरियों को इस कानून के जरिए दबा रखा है। इसके उलट हमारी सेना यह कह चुकी है कि यदि इस कानून को हटाया जाता है तो अलगाववादी कश्मीर में हावी हो जाएंगे। अमेरिका का हित इसमें है कि कश्मीर अस्थिर रहे या पूरी तरह से पाकिस्तान के पाले में चला जाए ताकि अमेरिका यहां अपना सैन्य व निगरानी केंद्र स्थापित कर सके। यहां से दक्षिण-पश्चिम व दक्षिण-पूर्वी एशिया व चीन पर नजर रखने में उसे आसानी होगी। आम आदमी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण अपनी झूठी मानवाधिकारवादी छवि व वकालत के जरिए इसकी कोशिश पहले से ही करते रहे हैं और अब जब उनकी ‘अपनी राजनैतिक पार्टी’ हो गई है तो वह इसे राजनैतिक रूप से अंजाम देने में जुटे हैं। यह एक तरह से ‘लिटमस टेस्ट’ था, जिसके जरिए आम आदमी पार्टी ‘ईमानदारी’ और ‘छद्म धर्मनिरपेक्षता’ का ‘कॉकटेल’ तैयार कर रही थी। 8 दिसंबर 2013 को दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतने के बाद अपनी सरकार बनाने के लिए अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी द्वारा आम जनता को अधिकार देने के नाम पर जनमत संग्रह का जो नाटक खेला गया, वह काफी हद तक इस ‘कॉकटेल’ का ही परीक्षण है। सवाल उठने लगा है कि यदि देश में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाए और वह कश्मीर में जनमत संग्रह कराते हुए उसे पाकिस्तान के पक्ष में बता दे तो फिर क्या होगा? आखिर जनमत संग्रह के नाम पर उनके ‘एसएमएस कैंपेन’ की पारदर्शिता ही कितनी है? अन्ना हजारे भी एसएमएस कार्ड के नाम पर अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी द्वारा की गई धोखाधड़ी का मामला उठा चुके हैं। दिल्ली के पटियाला हाउस अदालत में अन्ना व अरविंद को पक्षकार बनाते हुए एसएमएस कार्ड के नाम पर 100 करोड़ के घोटाले का एक मुकदमा दर्ज है। इस पर अन्ना ने कहा, ‘‘मैं इससे दुखी हूं, क्योंकि मेरे नाम पर अरविंद के द्वारा किए गए इस कार्य का कुछ भी पता नहीं है और मुझे अदालत में घसीट दिया गया है, जो मेरे लिए बेहद शर्म की बात है।’’ प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और उनके ‘पंजीकृत आम आदमी’ ने जब देखा कि ‘भारत माता’ के अपमान व कश्मीर को भारत से अलग करने जैसे वक्तव्य पर ‘मीडिया-बुद्धिजीवी समर्थन का खेल’ शुरू हो चुका है तो उन्होंने अपनी ईमानदारी की चासनी में कांग्रेस के छद्म सेक्यूलरवाद को मिला लिया। उनके बयान देखिए, प्रशांत भूषण ने कहा, ‘इस देश में हिंदू आतंकवाद चरम पर है’, तो प्रशांत के सुर में सुर मिलाते हुए अरविंद ने कहा कि ‘बाटला हाउस एनकाउंटर फर्जी था और उसमें मारे गए मुस्लिम युवा निर्दोष थे।’ इससे दो कदम आगे बढ़ते हुए अरविंद केजरीवाल उत्तरप्रदेश के बरेली में दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार हो चुके तौकीर रजा और जामा मस्जिद के मौलाना इमाम बुखारी से मिलकर समर्थन देने की मांग की। याद रखिए, यही इमाम बुखरी हैं, जो खुले आम दिल्ली पुलिस को चुनौती देते हुए कह चुके हैं कि ‘हां, मैं पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का एजेंट हूं, यदि हिम्मत है तो मुझे गिरफ्तार करके दिखाओ।’ उन पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर रखा है लेकिन दिल्ली पुलिस की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह जामा मस्जिद जाकर उन्हें गिरफ्तार कर सके। वहीं तौकीर रजा का पुराना सांप्रदायिक इतिहास है। वह समय-समय पर कांग्रेस और मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के पक्ष में मुसलमानों के लिए फतवा जारी करते रहे हैं। इतना ही नहीं, वह मशहूर बंग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन की हत्या करने वालों को ईनाम देने जैसा घोर अमानवीय फतवा भी जारी कर चुके हैं। नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए फेंका गया ‘आखिरी पत्ता’ हैं अरविंद! दरअसल विदेश में अमेरिका, सउदी अरब व पाकिस्तान और भारत में कांग्रेस व क्षेत्रीय पाटियों की पूरी कोशिश नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने की है। मोदी न अमेरिका के हित में हैं, न सउदी अरब व पाकिस्तान के हित में और न ही कांग्रेस पार्टी व धर्मनिरेपक्षता का ढोंग करने वाली क्षेत्रीय पार्टियों के हित में। मोदी के आते ही अमेरिका की एशिया केंद्रित पूरी विदेश, आर्थिक व रक्षा नीति तो प्रभावित होगी ही, देश के अंदर लूट मचाने में दशकों से जुटी हुई पार्टियों व नेताओं के लिए भी जेल यात्रा का माहौल बन जाएगा। इसलिए उसी भ्रष्‍टाचार को रोकने के नाम पर जनता का भावनात्मक दोहन करते हुए ईमानदारी की स्वनिर्मित धरातल पर ‘आम आदमी पार्टी’ का निर्माण कराया गया है। दिल्ली में भ्रष्‍टाचार और कुशासन में फंसी कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की 15 वर्षीय सत्ता के विरोध में उत्पन्न लहर को भाजपा के पास सीधे जाने से रोककर और फिर उसी कांग्रेस पार्टी के सहयोग से ‘आम आदमी पार्टी’ की सरकार बनाने का ड्रामा रचकर अरविंद केजरीवाल ने भाजपा को रोकने की अपनी क्षमता को दर्शा दिया है। अरविंद केजरीवाल द्वारा सरकार बनाने की हामी भरते ही केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, ‘‘भाजपा के पास 32 सीटें थी, लेकिन वो बहुमत के लिए 4 सीटों का जुगाड़ नहीं कर पाई। हमारे पास केवल 8 सीटें थीं, लेकिन हमने 28 सीटों का जुगाड़ कर लिया और सरकार भी बना ली।’’ कपिल सिब्बल का यह बयान भाजपा को रोकने के लिए अरविंद केजरीवाल और उनकी ‘आम आदमी पार्टी’ को खड़ा करने में कांग्रेस की छुपी हुई भूमिका को उजागर कर देता है। वैसे भी अरविंद केजरीवाल और शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित एनजीओ के लिए साथ काम कर चुके हैं। तभी तो दिसंबर-2011 में अन्ना आंदोलन को समाप्त कराने की जिम्मेवारी यूपीए सरकार ने संदीप दीक्षित को सौंपी थी। ‘फोर्ड फाउंडेशन’ ने अरविंद व मनीष सिसोदिया के एनजीओ को 3 लाख 69 हजार डॉलर तो संदीप दीक्षित के एनजीओ को 6 लाख 50 हजार डॉलर का फंड उपलब्ध कराया है। शुरू-शुरू में अरविंद केजरीवाल को कुछ मीडिया हाउस ने शीला-संदीप का ‘ब्रेन चाइल्ड’ बताया भी था, लेकिन यूपीए सरकार का इशारा पाते ही इस पूरे मामले पर खामोशी अख्तियार कर ली गई। ‘आम आदमी पार्टी’ व उसके नेता अरविंद केजरीवाल की पूरी मंशा को इस पार्टी के संस्थापक सदस्य व प्रशांत भूषण के पिता शांति भूषण ने ‘मेल टुडे’ अखबार में लिखे अपने एक लेख में जाहिर भी कर दिया था, लेकिन बाद में प्रशांत-अरविंद के दबाव के कारण उन्होंने अपने ही लेख से पल्ला झाड़ लिया और ‘मेल टुडे’ अखबार के खिलाफ मुकदमा कर दिया। ‘मेल टुडे’ से जुड़े सूत्र बताते हैं कि यूपीए सरकार के एक मंत्री के फोन पर ...

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

जम्मू कश्मीर राज्य का अपना संविधान है

जम्मू कश्मीर राज्य का अपना संविधान है। यह संविधान मोटे तौर पर वैसा ही है जैसा संविधान में बी श्रेणी के राज्यों का था । अन्तर केवल इतना ही है कि राज्यों के पुनर्गठन के बाद वे मुख्य दस्तावेज में ही समाहित कर दिये गये लेकिन अनुच्छेद ३७० का दुरुपयोग करते हुये ,जम्मू कश्मीर के मामले में वे एक अलग दस्तावेज के रूप में पारित और प्रकाशित किए गये हैं । अनुच्छेद ३७० का कारण उस समय की परिस्थितियां ही मानी जा सकती है। दरसल भारत डोमिनियन की घोषणा के समय भारतीय रियासतों की संाविधानिक प्रशासकीय व्यवस्था को संघीय संाविधानिक व्यवस्था में समाहित करने के लिए भारत सरकार के रियासती मंत्रालय ने एक मानक अधिमिलन पत्र तैयार किया था , जिस पर हस्ताक्षर करके विभिन्न रियासतों के शासकों ने प्रशासन के तीन विषयों , विदेशी संबंध्, सुरक्षा और संचार को संघीय संविधान की व्यवस्था में समीहित कर दिया था । उन दिनों संघीय संविधान भी अभी बन ही रहा था । इसीलिए विभिन्न रियासतों ने अपने-अपने प्रतिनिधि संघीय संविधान सभा में भेजे । जम्मू कश्मीर रियासत ने भी ऐसा ही किया। उस समय यह निर्णय किया गया कि अन्य विषयों पर प्रवाधान बनाने के लिये विभिन्न रियासतें अपने-अपने यहां संविधान सभाओं का गठन करेंगी और अपने-अपने राज्य के लिए लोकतांत्रिक संविधान पारित करेंगी। बहुत सी रियासतों में यह प्रक्रिया प्रारम्भ भी हो गई। लेकिन बाद में एकरूपता की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सभी रियासतों ने निर्णय किया कि रियासतों के संविधानों को संघीय संविधान में ही समाहित कर दिया जाए और ऐसा हुआ भी। परन्तु जम्मू कश्मीर रियासत में यह प्रक्रिया ही नहीं अपनाई जा सकी। क्योंकि इस रियासत पर कबायलियों को आगे करके पाकिस्तान ने आक्रमण किया हुआ और वहां युद्ध की स्थिति बनी हुई थी। इस हालत में न तो वहां संविधान सभा का गठन हो सका और न ही तद्नुसार निर्णय लिए जा सके । उधर 26 जनवरी 1950 को भारत एक डोमिनियन ना रहकर एक गणतंत्र में परिवर्तित हो गया और इसी दिन नया संघीय संविधान देश में लागू हो गया। विभिन्न रियासतों/राज्यांे के राज प्रमुखों ने एक अधिसूचना द्वारा इस संघीय संविधान को अपने-अपने राज्यों में लागू किया। जम्मू कश्मीर में भी इसी प्रकार की अधिसूचना द्वारा इसे लागू किया गया। लेकिन क्योंकि राज्य में अभी तक संविधान सभा का गठन नहीं हो सका था, इसलिये राज्य के शासक द्वारा अधिमिलन पत्र जारी कर दिये जाने के कारण संघीय संविधान का अनुच्छेद १ तो तुरन्त लागू हो गया लेकिन शेष संविधान को लागू करने के लिये संघीय संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़ा गया। जिसके अनुसार राज्य में संविधान सभा के गठित हो जाने और राज्य के लिए संविधान का निर्माण हो जाने के उपरान्त संघ के राष्ट्रपति एक अधिसूचना द्वारा संघीय संविधान के विभिन्न प्रावधानों को जम्मू कश्मीर राज्य में लागू करने के लिए प्राधिकृत किए गए। इसके लिए राज्य सरकार की सलाह/सहमति की व्यवस्था भी की गई। राज्य की संविधान सभा ने राज्य के लिए जिस संविधान की रचना की, वह राज्य में 26 जनवरी, 1957 में लागू हुआ। उससे पूर्व राज्य का प्रशासन , उन प्रावधानों को छोड़कर जिसकी व्यवस्था संघीय संविधान में कर दी गई थी, बाकी मामलों में जम्मू कश्मीर संविधान अधिनियम 1939 के अनुसार चलता रहा ।
राज्य के नए संविधान के तीसरे भाग में राज्य के स्थाई निवासी संबंधी प्रावधानों का समावेश किया गया और इसके लिए महाराजा हरीसिंह के शासन द्वारा स्टेट सब्जेक्ट को लेकर 1927 और 1932 में जारी की गई सूचनाओं के कुछ प्रावधानों को आधार बनाया गया। लेकिन दुर्भाग्य से जम्मू कश्मीर में नेशनल कान्फ्रेंस ने संघीय संविधान के अनुच्छेद 370 को लेकर इस प्रकार का शोर मचाना शुरु कर दिया कि मानों इस अनुच्छेद के माध्यम से राज्य को कोई विशेष दर्जा दे दिया गया हो। मामला यहां तक बढ़ा कि नेशनल कान्प्रफेंस ने इस अनुच्छेद की ढाल में एक प्रकार से तानाशाही स्थापित करने का प्रयास किया और इसकी सबसे पहली शिकार राज्य की महिलाएं हुई। राज्य के स्थाई निवासियों में केवल महिला के आधर पर भेदभाव करने वाली कोई व्यवस्था न तो राज्य के संविधान में है और न ही भारत के संविधान में और न ही महाराजा हरिसिंह के शासन काल में स्टेट सबजेक्ट को लेकर जारी किए गए प्रावधानों में। लेकिन दुर्भाग्य से नेशनल कान्प्रफेंस की सोच महिलाआंे को लेकर उसी मध्यकालीन अंधकार युग में घूम रही थी , जिसमें महिलाओं को पैर की जूती समझा जाता था और उनका अस्तित्व पति के अस्तित्व में समाहित किया जाता था। महिला का अपना स्वतंत्रा व्यकित्व भी है, ऐसी सोच शायद नेशनल कान्फ्रेंस विकसित ही नहीं कर सकती थी। बहुत बाद में लिखी गई अपनी आत्मकथा आतिश-ए-चिनार में नैशनल काॅन्फ्रेंस के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला बार-बार इस बात का जिक्र करते रहते हैं कि भारत में जम्मू कश्मीर ही एकमात्र ऐसा राज्य है जिसमें मुसलमानों का बहुमत है और इसी कारण केन्द्र सरकार इसके साथ भेद-भाव करती है। शेख अब्दुल्ला लोगों को यह समझाने की भी बार-बार कोशिश करते हैं कि संघीय संविधान में अनुच्छेद 370 की जो व्यवस्था की गई थी वह इसीलिए की गई थी कि यह राज्य देश का एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य है जिसके कारण इसको विशेष दर्जा देने की जरूरत है। जबकि शेख अब्दुल्ला खुद बहुत अच्छी तरह जानते थे कि अनुच्छेद 370 का समावेश मात्र इसीलिए किया गया था क्योंकि रियासत में युद्ध चल रहा था, उसके कुछ हिस्से पर पाकिस्तान ने कब्जा किया हुआ था। इसीलिए समय रहते प्रदेश में संविधान सभा का गठन नहीं हो सका था, इसीलिए अनुच्छेद 370 की अंतरिम व्यवस्था की गई थी । इसका संबंध न राज्य के मुस्लिम बहुल होने से था और न ही उसे कोई विशेष दर्जा दिए जाने से । परन्तु शेख अब्दुल्ला अपने झूठ को प्रचारित ही नहीं कर रहे थे बल्कि यह भी चाह रहे थे कि लोग उनकी बात पर विश्वास कर लें। शेख शायद राज्य के मुस्लिम बहुल होने का लाभ उठाकर ही यहाँ की औरतों को मध्ययुगीन अंधकार में धकेल देना चाहते थे ।
नेशनल कान्प्रफेंस ने अनुच्छेद 370 का प्रयोग गले में डाले गए उस ताबीज की तरह करना शुरु कर दिया कि जिसके चलते वे राज्य में किसी भी प्रकार की तानाशाही हरकते कर सकते थे । लेकिन इसके बावजूद नेशनल कान्फ्रेंस अच्छी तरह जानती थी कि किसी भी कानून की ज़द में प्रदेश की महिलाआंे की घेराबंदी नहीं की जा सकती। प्रश्न था अब क्या किया जाये ? इस समय सहायता के लिए शेख के घनिष्ठ मित्र मोहम्मद अफजल बेग आगे आए। वैसे भी शेख अब्दुल्ला अपनी आत्मकथा में अफजल बेग की कानूनी तालीम की तारीफ करते नहीं थकते। यही अफजल बेग राज्य के राजस्व मंत्री थे । उन्होंने एक कार्यपालिका आदेश जारी कर दिया,जिसके अनुसार राज्य की कोई भी महिला यदि राज्य के किसी बाहर के लड़के के साथ शादी कर लेती है तो उसका स्थाई निवासी प्रमाण पत्र रद्द कर दिया जाएगा और वह राज्य में स्थाई निवासियों को मिलने वाले सभी अधिकारों और सहूलतों से वंचित हो जाएगी। तब वह न तो राज्य में सम्पत्ति खरीद सकेगी और न ही पैतृक सम्पत्ति में अपनी हिस्सेदारी ले सकेगी। न वह राज्य में सरकारी नौकरी कर पाएगी और न ही राज्य के किसी सरकारी व्यवसायिक शिक्षा के महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में तालीम हासिल कर सकेगी। उस अभागी लड़की की बात तो छोड़िए , उसके बच्चे भी इन सभी सहुलियतों से महरूम कर दिए जाएँगे । मान लो किसी बाप की एक ही बेटी हो और उसने राज्य के बाहर के किसी लड़के से शादी कर ली हो तो बाप के मरने पर उसकी जायदाद लड़की नहीं ले सकेगी। आखिर राज्य की लड़कियों के साथ यह सौतेला व्यवहार, जिसकी इजाजत कोई कानून भी नहीं देता करने का कारण क्या है? नेशनल काॅन्फ्रेंस के पास इसका उत्तर है । इन की इस हरकत से राज्य का तथाकथित विशेष दर्जा घायल होता है । इससे राज्य की जनसांख्यिकी परिवर्तित हो जायेगी । इन लड़कियों ने राज्य के बाहर के लड़कों के साथ शादी करने का कुफ़्र किया है। सरकार उनके इस गुनाह को किसी भी ढंग से मुआफ नहीं कर सकती। ऐसी बेहूदा कल्पनाएं तो वही कर सकता है जो या तो अभी भी अठाहरवीं शताब्दी में रह रहा हो या फिर खतरनाक किस्म का धूर्त हो । यदि किसी ने प्रदेश की लड़कियों के साथ हो रहे इस अमानवीय व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाई तो नेशनल काॅन्फ्रेंस ने उनके आगे अनुच्छेद 370 की ढ़ाल कर दी। नेशनल काॅन्फ्रेंस को इस बात की चिंता नहीं है कि अनुच्छेद 370 में क्या लिखा है या फिर राज्य के संविधान का तीसरा भाग क्या कहता है। उसके लिए तो अनुच्छेद 370 उसके सभी गुनाहों और राज्य में की जा रही लूट खसोट पर परदा डालने का माध्यम बन गया है।
कुछ लोगों को लगता होगा कि यदि प्रदेश की उन लड़कियों के साथ जो प्रदेश के बाहर के लड़कों से शादी कर लेती है , ऐसा अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है तो यकीनन उन लड़कों के साथ भी , जो प्रदेश से बाहर की लड़कियों से शादी करते हैं तो ऐसा ही व्यवहार किया जाता होगा। लेकिन स्थिति उसके उलट है । जो लड़के प्रदेश से बाहर की लड़की के साथ शादी करते हैं तो उन लड़कियों को तुरन्त राज्य के स्थाई निवासी होने का प्रमाण पत्र जारी कर दिया जाता है। उनको वे सभी सहुलियतें तुरन्त दे दी जाती है जो प्रदेश की दूसरी बेटियों से छीन ली गई है।
सरकार की इस नीति ने जम्मू कश्मीर की लड़कियों पर कहर ढ़ा दिया। शादी करने पर एम.बी.बी.एस. कर रही लड़की को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, सरकारी नौकरी कर रही लड़की की तनख्वााह रोक ली गई। उसे नौकरी से फारिग कर दिया गया। सरकारी नौकरी के लिए लड़की का आवेदन पत्र तो ले लिया गया लेकिन इन्टरव्यू के वक्त उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया। मैरिट और परीक्षा के आधर पर विश्वविद्यालय में प्रवेश पा गई लड़की को क्लास में से उठा दिया गया। इन सब लड़कियों का केवल एक ही अपराध था कि उन्होंने प्रदेश के बाहर के किसी लड़के से शादी के सात फेरे ले लिए थे या फिर निकाह करवाने आए मौलवी के पूछने पर कह दिया था कि निकाह कबूल। उनका निकाह कबूल कहना ही उनकी जिन्दगी पर भारी पड़ गया था। लेह आकाशवाणी केन्द्र की निदेशक छैरिंग अंगमो अपने तीन बच्चों समेत दिल्ली से लेकर श्रीनगर तक हर दरवाजा खटखटा आई, लेकिन सरकार ने उसे अब प्रदेश की स्थायी निवासी मानने से इन्कार कर दिया। क्योंकि उसने उ.प्र. के एक युवक से शादी करने का कुफ़्र किया था।
राज्य के न्यायालयों में इन दुखी महिलाओं के आवेदनों का अम्बार लग गया। ये लड़कियां जानती थी कि न्याय प्रक्रिया जिस प्रकार हनुमान की पूंछ की तरह लम्बी खिंचती जाती है, उसके चलते न्यायालय में गुहार लगाने वाली लड़की एम.बी.बी.एस. तो नहीं कर पाएगी, क्योंकि जब तक न्याय मिलेगा, तब तक उसके बच्चे एम.बी.बी.एस. करने की उम्र तक पहुंच जाएंगे। लेकिन ये बहादुर लड़कियां इसलिए लड़ रही थीं ताकि राज्य में औरत की आने वाली नस्लों को नेशनल काॅन्फ्रेंस और उस जैसी मध्ययुगीन मानसिकता रखने वाली शक्तियों की दहशत का शिकार न होना पड़े। राज्य की इन बहादुर लड़कियों की मेहनत आखिरकार रंग लाई। जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के पास सभी लम्बित मामले निर्णय के लिए पहुंचे। लम्बे अर्से तक कानून की धराओं में माथा पच्ची करने और अनुच्छेद 370 को आगे-पीछे से अच्छी तरह जांचने, राज्य के संविधान और महाराजा हरिसिंह द्वारा निश्चित किए गए स्थाई निवासी के प्रावधानों की चीर-पफाड़ करने के उपरान्त उच्च न्यायालय ने बहुमत से अक्टूबर 2002 में ऐतिहासिक निर्णय दिया। इस निर्णय के अनुसार जम्मू कश्मीर की लड़कियों द्वारा राज्य से बाहर के किसी युवक के साथ निकाह कर लेने के बाद भी उनका स्थायी निवासी होने का प्रमाण पत्र रद्द नहीं किया जा सकेगा । न्यायिक इतिहास में यह फैसला सुशीला साहनी केस के नाम से प्रसिद्ध हुआ । सारे राज्य की महिलाओं में खुशी की लहर दौड़ गई। दुखतरान-ए-जम्मू कश्मीर अंत में अपनी लड़ाई में कामयाब हो गई थी और उन्होंने अनुच्छेद 370 की आड़ में बैठे नारी
विरोधी लोगों को नंगा कर दिया था।
परन्तु इस निर्णय से उग्रवादियों से लेकर शांतवादी तक सभी उग्र हो गए। कश्मीर बार एसोसिएशन में तो बकायदा रूदाली का दृश्य उपस्थित हो गया। जिस वक्त जम्मू कश्मीर के इतिहास में यह जलजला आया उस वक्त राज्य में नैशनल कान्फ्रेंस की सरकार थी । अत: निर्णय किया गया कि इस बीमारी का इलाज यदि अभी न किया गया तो यह एक दिन लाइलाज हो जायेगी । बीमारी का इलाज करने में नैशनल कान्फ्रेंस भी उग्र हो गई । पुराना शेख अब्दुल्ला के वक़्त का हिकमत का थैली उठा लाई । उच्च न्यायालय के इस फ़ैसले के निरस्त करने के लिये तुरन्त एक अपील उच्चतम न्यायालय में की गई । जम्मू कश्मीर की बेटियों को उनकी हिम्मत पर सजा सुनाने के लिये सी पी एम से लेकर पी डी पी तक अपने तमाम भेदभाव भुला कर इक्कठे हो गये । प्रदेश के सब राजनैतिक दल एक बड़ी खाप पंचायत में तब्दील हो गये । बेटियों का आनर किलिंग शुरु हुआ ।
लेकिन मामला अभी उच्चतम न्यायालय में ही लम्बित था कि नैशनल कान्फ्रेंस की सरकार १८ अक्तूबर २००२ को गिर गई । कुछ दिन बाद ही सोनिया कांग्रेस और पीपल्स डैमोक्रेटिक पार्टी ने मिल कर साँझा सरकार बनाई । यह नई सरकार नैशनल कान्फ्रेंस की भी बाप सिद्ध हुई । इस ने सोचा उच्चतम न्यायालय का क्या भरोसा राज्य की लड़कियों के बारे में क्या फ़ैसला सुना दे । प्रदेश उच्च न्यायालय में इसका सबूत मिल ही चुका था । इसलिये लड़कियों को सबक़ सिखाने का यह आप्रेशन सरकार को स्वयं ही अत्यन्त सावधानी से करना चाहिये । इसलिये सरकार ने उच्चतम न्यायालय से अपनी अपील वापिस ले ली और विधान सभा में उच्च न्यायालय के निर्णय के प्रभाव को निरस्त करने वाला बिल विधान सभा में पेश किया और यह बिल बिना किसी विरोध और बहस के छह मिनट में पारित कर दिया गया । विधि मंत्री मुज्जफर बेग ने कहा, औरत की पति के अलावा क्या औकात है ? विधान सभा में एक नया इतिहास रचा गया ।
उच्च न्यायालय में दो दशक से भी ज़्यादा समय में लड कर प्राप्त किये गये जम्मू कश्मीर की बेटियों के अधिकार केवल छह मिनट में पुनः छीन लिये गये । उसके बाद बिल विधान परिषद में पेश किया गया । लेकिन अब तक देश भर में हंगामा बरपां हो गया था । सोनिया कांग्रेस के लिये कहीं भी मुँह दिखाना मुश्किल हो गया । विधान परिषद में इतना हंगामा हुआ कि कुछ भी सुनाई देना मुश्किल हो गया । नैशनल कान्फ्रेंस और पी डी पी चाहे बाहर एक दूसरे के विरोधी थे लेकिन अब विधान परिषद के अन्दर नारी अधिकारों को छीनने के लिये एकजुट हो गये थे । सभापति के लिये सदन चलाना मुश्किल हो गया । उसने सत्र का अवसान कर दिया । इस प्रकार यह बिल अपनी मौत को प्राप्त हो गया । लेकिन नैशनल कान्फ्रेंस का गुस्सा सातवें आसमान पर था । खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे । राज्य की पहचान को खतरा घोषित कर दिया गया । उधर प्रदेश में ही श्रीनगर , जम्मू और लेह तक में महिला संगठनों ने प्रदेश के राजनैतिक दलों की मध्ययुगीन अरबी कबीलों जैसी जहनियत पर थूका । कश्मीर विश्वविद्यालय में छात्राओं में आक्रोश स्पष्ट देखा जा सकता था । यह प्रश्न हिन्दु सिक्ख या मुसलमान होने का नहीं था । यह राज्य में नारी अस्मिता का प्रश्न था । लेकिन इससे नैशनल कान्फ्रेंस , पी डी पी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा । यहाँ तक कि सी पी एम भी औरतों को इस हिमाक़त के लिये सबक़ सिखाने के लिये इन दोनों दलों के साथ मिल गई । लेकिन इस बार इन तीनों दलों के साँझा मोर्चा के बाबजूद बिल पास नहीं हो पाया । प्रदेश की औरतों ने राहत की साँस ली । औरतों को उनके क़ानूनी और प्राकृतिक अधिकारों से महरूम करने की कोशिश कितनी शिद्दत से की जा रही थी इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि नैशनल कान्फ्रेंस को बीच मैदान में शक हो गया कि उनके सदस्य और विधान परिषद के सभापति अब्दुल रशीद धर इस मुहाज में नारी अधिकारों के पक्ष में हो रहे हैं । पार्टी ने तुरन्त उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया ।
इतना कुछ हो जाने के बाबजूद राजस्व विभाग के अधिकारियों ने लड़कियों को स्थाई निवासी का प्रमाणपत्र जारी करते समय उस यह लिखना जारी रखा कि यह केवल उसकी शादी हो जाने से पूर्व तक मान्य होगा । इस के खिलाफ सितम्बर २००४ में भारतीय जनता पार्टी के प्रो० हरि ओम ने जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर दी । उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्रमाण पत्र पर ये शब्द न लिखे जायें । सरकार ने ये शब्द हटा नये शब्द तैयार कर लिये । ” स्थाई प्रमाणपत्र लड़की की शादी हो जाने के बाद पुनः जारी किया जायेगा , जिस पर यह सूचित किया जायेगा कि लड़की ने शादी प्रदेश के स्थाई निवासी से की है या किसी ग़ैर से ।” प्रो० हरि ओम इसे न्यायालय की अवमानना बताते हुये फिर न्यायालय की शरण में गये । सरकार ने अपना यह बीमार मानसिकता वाला आदेश २ अगस्त २००५ को वापिस लिया तब जाकर मामला निपटा ।
सुशीला साहनी केस में उच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद इतना भर हुआ कि सरकार ने स्वीकार कर लिया कि जो लड़की प्रदेश से बाहर के किसी लडके से शादी करती है , वह भी पैतृक सम्पत्ति की उत्तराधिकारी हो सकती है । लेकिन वह इस सम्पत्ति का हस्तान्तरण केवल प्रदेश के स्थायी निवासी के पास ही कर सकती है । यह हस्तान्तरण वह अपनी सन्तान में भी नहीं कर सकती । अब उस सम्पत्ति का क्या लाभ जिसका उपभोग उसका धारक अपनी इच्छानुसार नहीं कर सकता ? इस हाथ से दिया और उस हाथ से वापिस लिया । इधर प्रदेश का नारी समाज इस अन्तर्विरोध को हटाने के लिये आगामी लड़ाई की योजना बना रहा था , उधर प्रदेश की अन्धकारयुगीन ताक़तें इन्हें सबक़ सिखाने की अपनी तिकड़मों में लगीं थीं । साम्प्रदायिक महिला विरोधी और उग्रवादी सब मिल कर मोर्चा तैयार कर रहे थे । इन साज़िशों की पोल तब खुली जब अचानक २०१० में एक दिन पी डी पी के प्रदेश विधान परिषद में नेता मुर्तज़ा खान ने प्रदेश की विधान परिषद में “स्थाई निवासी डिस्कुआलीफिकेशन बिल” प्रस्तुत किया । बिल में प्रदेश की उन्हीं लड़कियों के अधिकार छीन लेने की बात नहीं कही गई थी जो किसी अन्य राज्य के लडके से शादी कर लेतीं हैं बल्कि दूसरे राज्य की उन लड़कियों के अधिकारों पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया गया था जो प्रदेश के किसी स्थाई निवासी से शादी करती हैं । ताज्जुब तो तब हुआ जब विधान परिषद के सभापति ने इस बिल को विचार हेतु स्वीकार कर लिया ,जबकि उन्हें इसे स्वीकार करने का अधिकार ही नहीं था , क्योंकि ऐसे बिल पहले विधान सभा के पास ही जाते हैं । इससे ज़्यादा ताज्जुब यह कि सोनिया कांग्रेस ने भी इसका विरोध नहीं किया । बिल के समर्थक चिल्ला रहे हैं कि औरत की हैसियत उसके पति के साथ ही होती है । पति से अलग उसकी कोई हैसियत नहीं । यदि औरत की स्वतंत्र हैसियत मान ली गई तो अनुच्छेद ३७० ख़तरे में पड़ जायेगा । कश्मीर की पहचान ख़तरे में पड़ जायेगी । इन पोंगापंथियों के लिहाज़ से आज जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद ३७० के लिये सबसे बडा ख़तरा वहाँ की महिला शक्ति ही है । यह अलग बात है कि मुर्तज़ा खान का यह बिल विधान परिषद में अपनी मौत आप मर गया क्योंकि ठीक वक़्त पर विरोध के स्वरों को सुन कर अचानक विधान परिषद के उप सभापति को यह एहलाम हो गया कि संविधान से ताल्लुक रखने वाले ऐसे बिल विधान सभा में रखे जाते हैं , परिषद की बारी बाद में आती है । चोर दरवाज़े से यह सेंध , प्रदेश की जागृत नारी शक्ति के कारण असफल हो गई ।
परन्तु एक बात साफ़ हो गई कि राज्य में नैशनल कान्फ्रेंस और पी डी पी दोनों ही अनुच्छेद ३७० को अरबी भाषा में लिखा ऐसा ताबीज़ समझते हैं जिसको केवल वही पढ़ सकते हैं , वही समझ सकते हैं और उन्हें ही इसकी व्याख्या का अधिकार है । ये मानवता विरोधी शक्तियाँ अनुच्छेद ३७० से उसी प्रकार प्रदेश के लोगों को आतंकित कर रही हैं जिस प्रकार कोई नजूमी अपने विरोधियों को जिन्ना़त से डराने की कोशिश करता है । अनुच्छेद ३७० का हौवा दिखा कर प्रतिक्रियावादी और साम्प्रदायिक ताक़तें प्रदेश में नारी समाज को बंधक बनाने का प्रयास कर रही हैं । नरेन्द्र मोदी ने जम्मू में ठीक ही प्रश्न किया था कि जो अधिकार उमर अब्दुल्ला को हैं वही अधिकार उसकी बहन सारा अब्दुल्ला को क्यों नहीं ? इसमें अनुच्छेद ३७० कहाँ आता है ? जब जम्मू कश्मीर में महिलाएँ अपने अधिकारो के लिये लड रही हैं तो फ़ारूख अब्दुल्ला कहते हैं , या खुदा , अब तो किसी लड़की से बात करते हुये भी डर लगता है ।
लड़की से डरने की ज़रुरत नहीं । अपने मन के अन्दर झांको तो सब डर खत्म हो जायेगा और तब राज्य की लड़कियों को अधिकार विहीन करने की ज़रुरत नहीं रहेगी । अजीब तिलस्म है । पी डी पी को डर है कि लड़कियों से अनुच्छेद ३७० ख़तरे में है । उग्रवादियों का कहना है कि राज्य की लडकियों द्वारा बाहर के लडकों शादी करने से कश्मीर की पहचान नष्ट हो रही है । और अब फ़ारूक़ बता रहे हैं कि उन्हें तो इस उम्र में भी लड़की से बात करते डर लगने लगा है । यह उस कश्मीर में हो रहा है जिसमें लल्लेश्वरी ने जन्म लिया था , जिसमें हब्बा खातून पैदा हुई थी । नरेन्द्र मोदी अनुच्छेद ३७० पर चर्चा की ही बात करते हैं तो उमर इंटरनेट पर चीं चीं करने लगते हैं और उधर इस अनुच्छेद की आड़ में राज्य की बेटियों को ही बलि का बकरा बनाया जा रहा है । उमर के दादा शेख अब्दुल्ला को अपनी आत्मकथा में जगह जगह दूसरों के शेअर टाँगने का शौक़ था । इस हालत पर यह उनके ख़ानदान की नज़र-
हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम , वे क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता ।

रविवार, 15 दिसंबर 2013

दिल्ली का श्वेत-रक्त


दिल्ली का श्वेत-रक्त

रक्त-श्वेत हुआ दिल्ली का,
नहीं जानती पीरपराई।
शहरी कदम अनदेखा करते,
निर्धन करता कैसे कमाई।
वो क्या जाने कैसे होगी,
उदराग्नि की लपटें शाँत।
निर्धन निर्धनता को बढ़ रहा,
गाँव-गाँव और प्राँत-प्राँत।
आँकड़ों में चिल्लाती दिल्ली,
जे॰ डी॰ पी॰ की दर चमक लाई।
अरे! ग्रामीण महिला को देखो,
तन पर फटी धोती आई।
एक धोती के दो हिस्से कर,
माँ-बेटी ने ढका है तन।
दिल्ली तुझको लाज न आती,
कब पिघलेगा तेरा मन।
जनता से तो तू नहीं डरती,
जनता की आह से डर।
या तो उनकी सुध ले ले,
अन्यथा नष्ट हो जाएगा तेरा घर।
अनिच्छा से ही शहरी सीमा,
लांघ के कभी तो गाँव में आ।
भूखे-बिलखते बूढ़े-बच्चे,
दिल्ली दो रोटी तो ला।

तेरे सिंहासन की चारों टाँगे,
इनके ही कन्धों पर है।
फिर भी आँकड़ों की क्रीड़ा में,
निर्धनता हाशिये पर है।

नर-नारायण होते ईश्वर,
स्वच्छ हृदय में वास करें।
सुन ले सदा को इनकी दिल्ली,
तुझसे कुछ ये आस करें।

सदियों से ये लड़ते आए,
निर्धनता से दीर्घ लड़ाई।
समान विकास हो देश का दिल्ली,

अब तो पाट दो ये खाई।

मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

वोट की चोट


कोई कहता वोट दो,
कोई बोले नोट दो।
नोट-वोट का झगड़ा छोड़ो,
मुझको तो बस रोट दो।

मेरा पेट कमर के अन्दर,
रोटी की तस्वीर बनाए।
जी-तोड़ परिश्रम पर भी,
भूखे पेट निद्रा न आए।

अपनी हड्डियों को सम्भाले,
खाने को दाने के लाले।
जीवन को कैसे सरकाऊँ,
अब तो गला घोट दो।

नोट-वोट का झगड़ा छोड़ो,
मुझको तो बस रोट दो।


पत्नी बीमार पड़ी है घर में,
बच्चा भूखा बिलख र
दो वक्त की रोटी हेतु,
नहीं जतन कोई दीख रहा।

स्वाभिमान को गिरवी रखकर,
बन भिखारी भटक रहा हूँ।
छोड़ो सारी दलीले-भाषण,
और अधिक न चोट दो।

नोट-वोट का झगड़ा छोड़ो,

मुझको तो बस रोट दो।