साहित्य समाज का दर्पण होता है। यह कथन निसंदेह सत्य है जिसकी प्रमाणिकता के लिए आप किसी भी काल खंड का अध्ययन करके देख लीजिए। मुंशी प्रेमचंद, भारती, निराला, पंत, दिनकर आदि रचनाकारों ने तात्कालिक परिस्थितियों का चरित्रचित्रण अपनी कृतियों में किया है। रचनाकार के कृतित्व से ही व्यक्तित्व झलकता है। लेखक अपने समस्त जीवन की अंतर्व्यथाओं और संघर्षों का अनुभव एक दर्पण की भांति समाज के समक्ष प्रस्तुत करता है जो मार्गदर्शन का अद्भुत व अनुपम उदाहरण होता है जिस पर चलकर हम अपना जीवन सुगम बना सकते हैं और बनाते भी है। साहित्य ने ही सर्वथा समाज की दिशा तय की है। इसी कड़ी में डॉ उमेश प्रताप वत्स जी का प्रस्तुत कहानी-संग्रह "उम्र की साँझ पर " एक प्रबल उदाहरण है। मुझे यह स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है कि प्रस्तुत कहानी-संग्रह को यदि संस्मरणात्मक कथा-संग्रह कहा जाए।
इस संग्रह की कहानियाँ 'आखिर वह कौन था' 'चरखों की पंचायत', 'बहू का धर्म', 'एडवेंचर कैंप', 'उम्र की साँझ पर', 'सज्जन पुरुष', 'दया' और 'स्कूल की फीस' की लेखक ने काल्पनिक रचना नहीं की है अपितु इनमें मुख्य पात्र या सहायक पात्र के अपने बाल्यकाल, किशोर एवं यौवन काल का जीवंत अभिनय किया है और आज अर्थात् वर्तमान काल में पूर्ण ईमानदारी के साथ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर दी है। साहित्यकार अपनी कृतियों के माध्यम से समाज के समक्ष जीवन के सैद्धांतिक पक्ष के साथ-साथ प्रयोगात्मक पक्ष भी रखते हैं। डॉ उमेश प्रताप वत्स जी ने जीवन के प्रयोगात्मक पक्ष में अपने अब तक के समस्त जीवन की तपस्या को अति सुंदर ढ़ंग से प्रस्तुत किया है जिसमें संस्कारों के उच्चतम आयामों को छूने के साथ मानवीय, पारिवारिक, सामाजिक मूल्यों का प्रदर्शन बखूबी किया है।
'आखिर वह कौन था' कहानी में डॉ वत्स ने छात्रावास में रहने वाले किशोरावस्था छात्रों की
जिज्ञासाओं, मन में उपजी आशंकाओं को भय व साहस के मिश्रित भावों के साथ सफलतापूर्वक उकेरा है। 'स्कूल की फीस' भी उसी कालखंड का दर्शन करवाने के साथ-साथ छात्रों की मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना के साथ-साथ विपरीत आर्थिक परिस्थितियों में भी माता-पिता के मानसिक व शारीरिक संघर्ष को उकेरती है जो सैंकड़ों कष्टों को सहते हुए भी अपने बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए कटिबद्ध है। 'चरखों की पंचायत' कहानी ने दादी-नानी की स्मृति को पुनः जीवित कर दिया जो मेरे अनुसार प्रत्येक बच्चें के जीवन में स्वर्णकाल की भांति है। आज की भौतिक जिंदगी में शायद ही उस सुखद दृश्य की कल्पना कर सके जो लेखक ने इस कहानी में प्रस्तुत किया है। उस समय कैसे दादी, ताई, चाची व आस-पड़ोस की महिलाएं सामूहिक रूप से चरखा कातती हुई परम्परागत लोकगीतों की बारिश करती थी। चरखा कातना व्यवसाय के साथ-साथ महिलाओं की समस्याओं को उठाने का केंद्र भी होता था। लेखक ने इस कहानी में बालिका शिक्षा पर भी जोर दिया है। 'बहू का धर्म' कहानी में संस्कारी बहू अपने मान-सम्मान की चिंता न कर अपने ससुर की मर्यादा बनाए रखने के लिए अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करती है। निज हित को त्याग ससुराल हित के लिए झंझावातों में उलझकर भी अपना पथ नहीं त्यागती।
'एडवेंचर कैंप' कहानी में प्रेम में उपेक्षित युवा अपने क्षोभ को शांत करने के लिए हिंसा पर उतर आता है।
'सज्जन पुरुष' कहानी के माध्यम से लेखक ने समाज के ऐसे लोगों पर कटाक्ष किया है जो अपनी सुविधानुसार मुखौटे बदलता रहता है। उसे सामाजिक पीड़ाओं से कोई सरोकार नहीं है। वह केवल और केवल निज हित का ही चिंतन करता है। सज्जन पुरुष तो अन्य व्यक्तियों को भी यही सुझाव देते हैं कि दूसरों के जीवन में उपजी कठिनाइयों में हस्तक्षेप करना असमाजिक व अमर्यादित कार्य है।
'दया' कहानी के माध्यम से लेखक ने दर्शाया है कि किस प्रकार लोग स्वार्थ-सिद्धि के लिए संवेदनशील व सहायक प्रवृत्ति वाले इंसानों की भावनाओं से खेलकर ठगने का कार्य करते हैं। इनके इन अनुचित कृत्यों से कई बार जरूरतमंद व्यक्ति सहायता पाने से वंचित रह जाते हैं।
कहानी संग्रह की शीर्षक कहानी "उम्र की साँझ पर" में मुख्य पात्र कुश्ती का सुप्रसिद्ध खिलाड़ी है जो आस-पास के क्षेत्र की शान है। समाज में उसके व्यक्तित्व का प्रभुत्व व लोगों के दिल में अगाध श्रद्धा के उपरांत उम्र की ढलान पर संतान द्वारा उपेक्षित किये जाने पर वह यमराज की कृपा की अपेक्षा करता है। मानवीय व पारिवारिक मूल्यों के ह्रास पर डॉ. वत्स ने सफलतापूर्वक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
"कुली नं. 122" बॉलीवुड की चकाचौंध से प्रेरित युवाओं को घर से भागने की स्थिति को इंगित करती है। लंबे संघर्ष व टूटते मनोबल के कारण उन्हें अन्य कार्य करने को विवश होना पड़ता है। कहानी "आइ. पी. एस. नेता" में संस्कारी युवा अंतिम क्षणों में अपना धैर्य नहीं टूटने देता और जनता के समर्थन से संघर्ष करता हुआ भ्रष्ट तंत्र के विरुद्ध खड़ा रहता है और लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यथासंभव प्रयास करता है और तमाम अवरोधों के बावजूद कर्त्तव्य पथ पर निरंतर बढ़ता रहता है।
डॉ वत्स ने अपनी इस कृति के माध्यम से युवाओं को झकझोरते हुए निस्वार्थ कर्म करने और प्रेरणा देने का कार्य सफलतापूर्वक किया है। लेखक ने युवाओं की भावना का सही व सटीक विश्लेषण कर उनके उत्तम मार्गदर्शन का सफल प्रयास किया है। लेखक के सार्थक प्रयास ने उनके उद्देश्य की सफल प्राप्ति कर ली है, यह कहने में मुझे कोई संदेह नहीं है।
छात्रावास, जीवन के संघर्ष, विविध आयामों एवं साहसिक घटनाओं का प्रतिफल है कहानी-संग्रह। भाषा की दृष्टि से भी यह उत्तम कृति है। जिसमें लेखक ने आम बोलचाल की भाषा के स्तर को स्थानीय शब्दों का प्रयोग करते हुए उच्चतम श्रेणी तक उठा दिया है। ग्रामीण कहावतों व लोकगीतों की पंक्तियो को उत्तम ढ़ग से समायोजित कर इन्होंने पुस्तक को उच्च स्तरीय बना दिया है। भाषा शैली का प्रभाव पाठकवृंद को पुस्तक से जोड़ने में सहायक सिद्ध हुआ है। उत्तम साहित्य प्रेमियों को यह कहानी-संग्रह अवश्य पढ़ना चाहिए क्योंकि यह पुस्तक आन्नद के साथ-साथ साहित्यिक संतुष्टि भी प्रदान करती है।
समीक्षक
नरेश चौधरी
मांधना, पंचकूला
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