5 मई को समाज के कुछ ब्राहम्ण समाज के लोगों ने भगवान परशुराम जयंति अपने-अपने स्तर पर मनाई। भगवान परशुराम जी की कुछ ने शास्त्रों के अनुसार तथा कुछ ने अपने अनुसार व्यक्तित्व का वर्णन कर छवि पेश की। कुछ समाज के जागरूक लोग दिल से तथा कुछ राजनैतिक स्वार्थ अथवा अन्य स्वार्थ के कारण जंयति मना रहे थे । मैं अपने पत्रकार बन्धु के पास बैठा था तो एक महाशय का फोन आया कि भाई साहब मंत्री जी के गले में हार डालते हुए मेरी वाली फोटो जरूर आनी चाहिए। पत्रकार बन्धु ने कहा कि भैया स्पेस कम है एक ही फोटो आ सकती है तो हमने भगवान परशुराम जी की फोटो की वंदना करते हुए कुछ लोगों वाली फोटो डाल दी है। तो साहब का उत्तर था कि परशुराम जी क्या करेंगे अखबार में फोटो देखकर आप मेरी व मंत्री वाली ही फोटो डाल देना । पत्रकार के नानुकुर करने पर बहस हुई तो साहब ने कहा कि हाँ एक आपका उपहार भी कार्यक्रम में तय किया था वो मैं अपने आदमी के हाथ भेज रहा हूँ, तत्काल मित्र पत्रकार का जवाब था कि हाँ ठीक है जी आप भिजवा दीजिए और फोटो की चिन्ता न करे वो मैं बदलकर आप की लगा दूंगा। मैं मित्र के हाव-भाव देखता रह गया। कोई परशुराम जी को शुरवीर बताकर क्षत्रियों का दुश्मन बता रहा था, कोई ब्राहम्णों का तारनहार तो कोई राम से भी वीर बता रहा था कोई लक्ष्मण से बहस करने वाला ज्ञाता बता रहा था। कोई भगवान परशुराम जी से शुरू होकर मंत्री जी की प्रशंसा के ही गीत गाता जा रहा था तो कोई अपनी पार्टी के दायरे से बाहर ही नही निकल पा रहा था। किसी को सामने बैठी जनता वोट के रूप में दिखाई दे रही थी तो कोई विश्व पर फिर ब्राहम्णों के वर्चस्व की बात कह हवा में उड़ा जा रहा था।
एक भी व्यक्ति ने यह नही कहा कि भगवान परशुराम क्षत्रियों के दुश्मन नही अपितु निकृष्ट राजाओं के लिए कहर थे। तथा उन्ही का ही नाश करने के लिए उन्होंने परशु का प्रयोग किया। मानवता के लिए वे महान आदर्श थे। तथा ब्राहम्ण समाज ने सात्विक जीवन जीकर समाज को आज तक सही दिशा दी है तो आज भी मांस-मदिरा छोड़कर पूर्व की भाँति समाज में व्यक्ति निर्माण की आवश्यकता है।
भगवान परशुराम जी की जयंति को सही रूप में समाज को सही दिशा देने के लिए माध्यम बनाने का उददेश्य होना चाहिए । भ्रष्टाचार मुक्त समाज का निर्माण पर चर्चा होनी चाहिए तभी उस परम योगी महान शस्त्र-शास्त्र ज्ञाता का सही सम्मान हो सकेगा।
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