३० अप्रैल २०११ को दिल्ली के हिन्दी भवन में आयोजित परिकल्पना सम्मान समारोह में हमें भी शामिल होने का अवसर मिला। मेरे साथ यमुनानगर के चिट्ठाकार साथी ई-पण्डित श्रीश बेंजवाल तथा रविन्द्र पुँज जी थे। समारोह में मुख्य अतिथि उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्री श्री रमेश पोखरियाल जी निशंक थे। उनकी प्रतीक्षा के दौरान खाली समय में मैंने लगे हाथ यह कविता लिख डाली। अविनाश जी की सलाह पर मैंने इसे मंच पर भी सुनाया। समारोह में कई विशिष्ट अतिथियों तथा चिट्ठाकारों से मिलना हुआ। यह कविता इस सुखद मिलन की याद के रुप में यह कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ।
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बहुप्रतिक्षित सम्मान दिवस, हिंदी भवन में आ गया।
चहुँ दिशा से ब्लॉगर आए, भवन में आनन्द छा गया।
ब्लॉगर करे सम्मान हिन्दी का, हिन्दी बैठाए पलकों पर।
आज मिलन होगा धरा का, भास्कर से रश्मि-रथ पर।
वाचस्पति ने ध्वज लहराया, नुक्कड़ की प्रतिष्ठा से।
अनुभवी ब्लॉगर आगे आए, हो सफल आयोजन निष्ठा से।
गिरिराज ने देखो कैसे, समेटा समुद्री लहरों को।
संध्याकाल में हुआ सवेरा, धन्य प्रभात की मेहनत को।
निशंक जी की छत्र छाया में, चुन-चुन मोती एकत्रित हुए।
ब्लॉगर के सम्मान से देखों, फूल से चेहरे प्रसन्नचित्त हुए।
इंटरनैट की इस दुनिया में, ब्लॉगर ने दस्तक दे डाली।
दुनिया देखेगी हम मिलकर, फूल खिलाएँ बनकर माली।
पहली बार मिले ब्लॉगर, लगता पुराना साथ है।
ऐसे घनिष्ठता बढ़ रही, जैसे कभी की बात है।
बार-बार ये दिन आए, कि ब्लॉगर सब इक्ठ्ठे हो।
अगली बार मिले जब भी, सब पहले से हट्टे-कट्टे हों।
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श्रीश जी एवं रविन्द्र जी के अनुभव यहाँ पढ़ें।
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