शिक्षा किसी भी राष्ट्र का दर्पण होती है। शिक्षा के कारण ही राष्ट्र उन्नति करते है, सभ्यता की गिनती में आते है तथा अपना श्रेष्ठ निर्माण कर पाते है। आज देश में शिक्षा पर बहुत अधिक प्रयोग किये जा रहे है, कोई भी शिक्षा के मूलभूत अधिकार से वंचित न रह जाये, इस बारे बड़े स्तर पर पहली बार बहुत अधिक सार्थक प्रयास किये जा रहे है। जिसमें हम सबका हरियाणा प्रदेश सबसे आगे बढकर इस पवित्र कार्य को करने के लिए संकल्पबद्ध है। आज एक ओर सरकारी विद्यालयों में कम्यूटर के साथ-साथ प्रोजैक्ट की सुविधा तक दी जा रही है, खेलों का भरपूर सामान दिया जा रहा है, निःशुल्क पुस्तकें दी जा रही है तथा विद्यार्थियों के लिए योगासन, स्वयं सुरक्षा प्रशिक्षण एवं विभिन्न प्रकार के ‘कर के सीखना’ विधि को अपनाते हुए नए अध्यापकों को इस कार्य के लिए नियुक्त कर ध्यान दिया जा रहा है, यह हरियाणा सरकार का शिक्षा की ज्योत घर-घर जलाकर प्रकाश करने की ओर बढ़ता कदम है। शिक्षा विभाग की और से पिछले वर्ष से ही प्रत्येक जिलें में पुस्तक मेला का आयोजन किया जा रहा है। विद्वानों की कहावत है कि पुस्तक मनुष्य की सबसे श्रेष्ठ मित्र है। किन्तु वर्तमान परिदृश्य में देखा जाये तो पुस्तक पढ़ने की रुचि ही समाप्त होती जा रही है। आज बच्चें से लेकर बूढ़े व्यक्ति तक सभी टी॰वी॰ के आगे बैठकर चैनल बदल-बदलकर ही अपना समय व्यतीत कर लेते है। पुस्तक पढ़ने की वृत्ति का तो मानो लोप ही हो गया हो। पहले धार्मिक पुस्तकों के पढ़ने का चलन था। फिर चिकित्सा सम्बन्धी और कहानियों की पुस्तकों का शौंक बढ़ा, इसके बाद उपन्यास का चलन ऐसा आया कि 300-400 पेज का उपन्यास 2-3 घंटों में पढ़कर रख देते थे और जब तक उपन्यास पूरा न पढ़ा जाये तब तक ना खाने की और ना सोने की होश रहती थी। किन्तु टीवी चैनलस् ने तो जैसे पुस्तक मार्कीट से समाप्त ही कर दी है। जिसे देखों केबलस् या डिश् का कनैक्शन लेकर ज्यों ही खाली समय मिलता है, पूरा-पूरा दिन व्यर्थ गवां देते है रिमोट से चैनलस् बदलते हुये। पुस्तक पढ़ने का चलन जब दम तोड़ने के कगार पर खड़ा है, ऐसे समय में शिक्षा विभाग ने पुस्तक मेले का आयोजन कर फिर से इस श्रेष्ठ वृत्ति को जागृत करने का कार्य किया है। जो पुस्तक आज मार्किट से लुप्त हो गई है, ढूँढ़े से भी नहीं मिलती। वह पुस्तक बड़ी आसानी से पुस्तक मेले में उपलब्ध हो जाती है। भारत राष्ट्र की संस्कृति कुछ हद तक इस पठन-पाठन के कारण ही असंख्य वर्षों से सत्य-धर्म की ज्योत जलाने का आज भी बहुत ही सम्मान के साथ श्रेयस्कर कार्य कर रही है। कई बार एक पुस्तक ही व्यक्ति के जीवन की धारा को बदल देती है। पुस्तक में उन रचनाकारों की रचनाओं को संकलित किया जाता है जो अपनी कलम की शक्ति से समय की धारा को मोड़ने का साहस रखता हो, या फिर सत्य लिखने की हिम्मत कर सकता हो अथवा जिन्होंने अपनी लेखनी से ज्ञान की वर्षा की हो और जो तनाव भरे जीवन में आंतरिक प्रसन्नता उत्पन्न करने की विधा जानता हो। व्यक्ति के विचार ही उसे महान या निकृष्ट बनाते है और साहित्य पढ़ने से ही विचार प्रभावित होते हैं। पुस्तकों के माध्यम से हम उन व्यक्तियों के जीवन से परीचित होते है जिन्होंने इस विश्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो और उनका जीवन परिचय हम सबको उत्साहित करने का कार्य सफलतापूर्वक कर पाता है। कितने ही ज्ञान के भंडार पुस्तकों के इन पृष्ठों में छुपे पड़े हैं। विश्व के कितने ही रहस्य को उद्घाटित करने की क्षमता रखती है ये पुस्तक, हम इसका अनुमान भी नहीं लगा सकते। साहित्यकार सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने उपन्यास एवं कहानियों के माध्यम से ही तत्कालीन सामाजिक बुराइयों तथा समस्याओं को इतना मुखर किया कि इन बुराइयों को समाप्त करने के लिए एक वर्ग ही खड़ा हो गया। जो कार्य तलवार नहीं कर सकती वो लेखनी कर जाती है। अतः पुस्तकों का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्व है, और जब यह रुचि समाप्त होने पर है, तब शिक्षा विभाग ने आगे आकर बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया है जो विभाग का कर्त्तव्य भी है। शिक्षा विभाग ने न केवल विद्यार्थियों को ही अच्छी पुस्तक उपलब्ध कराने का कार्य किया है अपितु उन लेखकों एवं प्रकाशकों को भी एक मंच प्रदान किया है जो समाज के द्वारा धीरे-धीरे उपेक्षित हो रहे थे। आज लिखने वाले और पढ़ने वाले बहुत ही कम लोग रह गये हैं। दिल्ली जैसे महानगर में ये पुस्तक मेले बेशक व्यवसाय का खेल बन कर रह जाये किन्तु शिक्षा विभाग के प्रयासों से हमारे अधिकारीगण हरियाणा के हर जिले में लगने वाले निश्चित ही अमूल्य पुस्तक उन विद्यार्थियों के पास पहूँचाने का कार्य कर रहे है जो सचमुच ही भारत के भावी कर्णधार हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद!