और कितना तू सहेगी अपने, सीने पर दर्दे शूल।
अब छोड़ो धैर्य और क्षमा, माँ उठालो शिव का त्रिशूल।।
कितने घाव दिये तुझको, क्या उनका हिसाब नहीं लेगी।
जिसने रोये खूं के आसूं , क्या उनको न्याय नहीं देगी।।
कितने सिन्दूर उजाड़े हैं, कितने आँचल रिक्त किए।
खिलने से पहले शैशव में ही, मैया से बच्चे जुदा किए।।
इतने अत्याचारों को,तेरे इन गद्दारों को, माँ हम कैसे जाए भूल।
अब छोडो धैर्य और क्षमा, माँ उठालो शिव का त्रिशूल।। १।।
दिल्ली दहली, जयपुर दहला, अहमदाबाद बर्बाद हुआ।
मुम्बई के सिरमौर ताज पर, आंतकियों का नाद हुआ।।
पर तेरे खादी-कुपुत्रों को, ये नाद सुनाई नहीं देता।
तुष्टीकरण की नीति मे, सत्यानाश दिखाई नहीं देता।।
अपनी कुर्सी बचाने को, जातिवाद को दे रहे तूल।
अब छोड़ो धैर्य और क्षमा, माँ उठालो शिव का त्रिशूल।।२।।
तेरा ही अन्न-जल लेकर के, तुझपे ही करते घात मॉं।
वोटो की खातिर निज बिकते, देश का सौदा करते मॉं।।
इन खादी पहने गुण्डों को, कायरता के झुण्डों को।
आंतकवादियों के रखवाले, राक्षस बने चण्ड-मुण्डों को।।
अब दिखला दे गद्दारों को, अपना प्रचण्ड विकराल रुप।
अब छोड़ो धैर्य और क्षमा, माँ उठालो शिव का त्रिशूल।। ३।।
गौरी,गजनी,बाबर,खिलजी,औरंगजेब की खूनी तलवार।
सांसे गिरवी पडी हुई थी, हुक्मरानों के खूनी दरबार।।
तब तेरी ही माटी के लालों ने, चौहान, शिवा, राणा के भालों ने।
जब हुंकार भरी मतवालों ने, गोविन्द के चारों लालों ने।।
उन वीरों के बलिदानों से, बची रही संस्कृति मूल।
अब छोडो धैर्य और क्षमा, माँ उठालो शिव का त्रिशूल।।४।।
माँ तेरी लाज बचाने को , तेरे सपूत बलिदान हुए।
ओबराय,ताज,नरीमन-हाउस पर,मार्कोस कमाण्डो कूद गए।।
ऍनऍसजी के रणबांकुरे, एटीऍस के वीर जंग लड़े।
आंतकवादियों के जबड़ो में, हाथ डाल आगे बढे।।
पर तब भी खादी फिल्मी रथ पर, थी ताज मे रही झूल।
अब छोड़ो धैर्य और क्षमा, माँ उठालो शिव का त्रिशूल।।५।।
अब मिलकर शंख बजाना होगा, राष्ट्र-भक्ति के स्वर लेकर।
भारत माता के उद्घोष से, बढ़-चले तन-मन-धन देकर।।
गाँव-गाँव और शहर-नगर में, राष्ट्रवाद की पौध लगे।
चाहे रक्त से हो सिञ्चन इसका, दोगुणी शक्ति से फूले-फले।।
होगा सहन नहीं आंतक का ताण्डव, अब न करे कोई ऐसी भूल।
अब छोडो धैर्य और क्षमा, माँ उठालो शिव का त्रिशूल।। ६।।