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496 वर्षों में दो लाख से भी अधिक रामभक्तों के बलिदान के बाद श्री राम हो रहे हैं अयोध्या में विराजमान
- डॉ उमेश प्रताप वत्स
496 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद 22 जनवरी को भगवान राम की मूर्ति की अयोध्या के ऐतिहासिक भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है अर्थात् सबके अराध्य राम भक्तों की याचना स्वीकार करते हुए अपने भक्तों का मान बढ़ाने हेतु विराजमान होने जा रहे हैं । अध्यात्मिक जगत में प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ होता है कि स्वयं भगवान राम चेतनावस्था में मंदिर में उपस्थित होने जा रहे हैं । ज्ञातव्य है कि भगवान राम को चौदह वर्ष का वनवास हुआ था किन्तु अयोध्या को तो 496 वर्ष का वनवास झेलना पड़ा । अपने कण-कण में बसे भगवान राम के बिना लगभग 500 वर्षों की प्रतिक्षा के बाद राम कृपा से ही राम की अयोध्या फिर राममय होने जा रही है । अयोध्या की सड़के , फ्लाईओवर , अयोध्या के बाजार , अयोध्या के कोने-कोने को राम की अयोध्या बनाने का कार्य जोरों पर है और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि मंदिर-मस्जिद के लिए दंगा-फसाद करने वाले अयोध्या के मुस्लिम समुदाय के लोग भी स्वयं पर राम की कृपा को स्वीकार कर रहे हैं ।
यद्यपि राम को अपनी अयोध्या में लाने के लिए दो लाख से भी अधिक रामभक्तों ने जालिम मुस्लिम आक्रांताओं से संघर्ष करते हुए समय-समय पर अपना अमूल्य बलिदान दिया किंतु आज उनकी पीढ़ी उनके बलिदान का फल भव्य अयोध्या मंदिर के रूप में देखने जा रही है जो बहुत ही सुखद है ।
पद्म पुराण में भगवान शिव ने कहा कि "राम-राम का जाप करके कोई भी सुखद रूप से साकेत लोक में रहने वाले राम तक पहुंच सकता है।" और आज सोशल नेटवर्क पर यह दावा किया जा रहा है कि 'जय श्री राम' का नारा सोशल नेटवर्किंग साइटों पर प्रतिदिन 200 करोड़ से भी अधिक बार लिखा जाता है यदि यह सत्य है तो यह पंचाक्षर नारा कितना बड़ा महामंत्र बन चुका है इसका अनुमान बहुत ही आन्नद देने वाला है ।
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि भगवान राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व अयोध्या में हुआ था। परम सर्वशक्तिमान भगवान राम त्रेता युग के अजेय i पर विजय प्राप्त की। राघव ने अपनी आत्मा में धर्म रखते हुए वह उत्कृष्ट राज्य प्राप्त किया। जिसे राम राज्य कहकर आज भी याद किया जाता है ।
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में बताया है कि, भगवान श्री राम का चेहरा एकदम चंद्रमा की तरह चमकीला, सौम्य, कोमल और सुंदर था। उनकी आंखे कमल की भांति खबसूरत और बड़ी थी। उनकी नाक उनके चेहरे की तरह ही लंबी और सुडौल थी। उनके होठों का रंग सूर्य के रंग की तरह लाल था और उनके दोनों होठ समान थे। इनकी इस आकर्षक सूरत को हर रामभक्त अपने मन-मस्तिष्क में धारण किये बैठा है तो फिर प्राण रहते राम को अयोध्या से बाहर कैसे स्वीकार करता।
उल्लेखनीय है कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद से पहले पुरातन राम मंदिर था। माना जाता है कि 1528 ई. में बाबर अयोध्या आया और एक सप्ताह तक यहाँ रुका। उसने प्राचीन मंदिर को नष्ट कर दिया और उसकी जगह पर एक मस्जिद बनवाई, जिसे बाद में बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था। मस्जिद निर्माण में खंडित मंदिर की सामग्रियों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया था क्योंकि तब बाबर ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि लाखों रामभक्तों के संघर्षों के बाद मंदिर की यही सामग्री मंदिर के लिए साक्ष्य का साधन बनेगी। जब मंदिर तोड़ा जा रहा था तब जन्मभूमि मंदिर पर सिद्ध महात्मा श्यामनंदजी महाराज का अधिकार था। उस समय राजा महताब सिंह बद्रीनारायण ने मंदिर को बचाने के लिए बाबर की सेना से युद्ध लड़ा। कई दिनों तक युद्ध चला और अंत में हजारों वीर सैनिक शहीद हो गए।
ब्रिटिश इतिहासकार कनिंघम अपने 'लखनऊ गजेटियर' के 66वें अंक के पृष्ठ 3 पर लिखता है कि 1,74,000 हिन्दुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात सेनापति मीरबाकी अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान में सफल हुआ।
मंदिर पर मुगलों के आधिपत्य की जानकारी मिलते ही अयोध्या से 6 मील की दूरी पर सनेथू गांव के पं. देवीदीन पाण्डेय ने वहां के आसपास के गांवों के सूर्यवंशीय क्षत्रियों को एकत्रित किया और बाबर की सेना पर चढ़ाई कर दी। युद्ध में पं. देवीदीन पाण्डेय सहित हजारों हिन्दू शहीद हो गए और बाबर की सेना जीत गई। पाण्डेय जी की मृत्यु के 15 दिन बाद हंसवर के महाराज रणविजय सिंह ने सिर्फ हजारों सैनिकों के साथ मीरबाकी की विशाल और शस्त्रों से सुसज्जित सेना से रामलला को मुक्त कराने के लिए आक्रमण किया लेकिन महाराज सहित जन्मभूमि के रक्षार्थ सभी वीरगति को प्राप्त हो गए। तब महाराज रणविजय सिंह की पत्नी रानी जयराज कुमारी ने अपने पति की वीरगति के बाद खुद जन्मभूमि की रक्षा के कार्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और 3,000 नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि पर हमला बोल दिया और हुमायूं के समय तक उन्होंने छापामार युद्ध जारी रखा। इस पावन कार्य में स्वामी महेश्वरानंदजी ने संन्यासियों की सेना के साथ रानी जयराज कुमारी का साथ दिया । लेकिन हुमायूं की शाही सेना से इस युद्ध में स्वामी महेश्वरानंद और रानी जयराज कुमारी लड़ते हुए अपनी बची हुई सेना के साथ बलिदान हो गई और जन्मभूमि पर पुन: मुगलों का अधिकार हो गया। हुमायूं के बाद अकबर ने राज्य विस्तार के लिए चतुराई से काम लेना शुरु किया । हिंदू सैन्य शक्ति से कमजोर होने के बाद भी यह कतई स्वीकार नहीं कर पा रहे थे कि उनके अराध्य राम अयोध्या मंदिर से बाहर रहे। अतः राम जन्मभूमि के लिए हिन्दुओं का संघर्ष जारी रहा। युद्ध के दौरान मुगल शाही सेना हर दिन कमजोर हो रही थी। अत: अकबर ने बीरबल और टोडरमल के कहने पर खस की टाट से उस चबूतरे पर 3 फीट का एक छोटा-सा मंदिर बनवा दिया। अकबर की इस कूटनीति से कुछ दिनों के लिए जन्मभूमि में रक्त नहीं बहा। यही क्रम शाहजहां के समय भी चलता रहा। किंतु धर्मांध औरंगजेब ने तो भारत के हर हिन्दू मंदिर को नष्ट करने की जैसे कसम ही खा रखी थी तो अकबर का बनवाया वह छोटा सा सांकेतिक मंदिर वाला चबूतरा भी ढहा दिया गया । उसने लगभग 10 बार अयोध्या में मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलाकर यहां के सभी प्रमुख मंदिरों बौद्ध ,जैन मंदिर और उनकी मूर्तियों को तोड़ डाला। औरंगजेब के समय में समर्थ गुरु श्रीरामदासजी महाराज के शिष्य श्री वैष्णवदासजी ने जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए 30 बार आक्रमण किए किंतु औरंगजेब की सैन्य ताकत के आगे सफल नहीं हो सके। नासिरुद्दीन हैदर के समय में मकरही के राजा के नेतृत्व में जन्मभूमि को पुन: अपने रूप में लाने के लिए हिन्दुओं के तीन आक्रमण हुए जिसमें बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गए। इस हिन्दू सेना का सहयोग वीर चिमटाधारी साधुओं की संन्यासी सेना ने भी किया परिणामस्वरूप इस युद्ध में शाही सेना को हारना पड़ा और जन्मभूमि पर पुन: हिन्दुओं का कब्जा हो गया। लेकिन कुछ दिनों के बाद विशाल शाही सेना ने पुन: जन्मभूमि पर अधिकार कर हजारों रामभक्तों का कत्ल कर दिया । नवाब वाजिद अली शाह के समय में हिन्दुओं ने एकबार फिर जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए आक्रमण किया । 1853 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय पहली बार अयोध्या में साम्प्रदायिक हिंसा भड़की जिसमें सेना के साथ-साथ आम प्रजाजनों ने हिंसा में भाग लिया । हिन्दुओं का आरोप था कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ। इस मुद्दे पर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच यह पहली सीधी हिंसा हुई।
'फैजाबाद गजेटियर' में कनिंघम ने लिखा- 'इस संग्राम में बहुत ही भयंकर खून-खराबा हुआ। दो दिन दो रात चलने वाले इस भयंकर युद्ध में सैकड़ों हिन्दुओं के मारे जाने के बावजूद हिन्दुओं ने श्रीराम जन्मभूमि पर कब्जा कर अपना सपना पूरा किया और औरंगजेब द्वारा विध्वंस किए गए चबूतरे को फिर वापस बनाया। चबूतरे पर 3 फीट ऊंचे खस के टाट से एक छोटा-सा मंदिर बनवा लिया जिसमें पुन: रामलला की स्थापना की गई। लेकिन बाद के मुगल राजाओं ने इस पर पुन: अधिकार कर लिया।
इतिहास साक्षी है कि आक्रांताओं की लाखों की सेना के समक्ष भी राम जन्मभूमि को मुक्त कराने का अभियान कभी कुंद नहीं पड़ा ।
1857 के बाद राम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए एक बार फिर अभियान चलाया गया। विवाद के चलते 1859 में ब्रिटिश शासकों ने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिन्दुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी।
हिंदू संगठनों ने 1813 में पहली बार बाबरी मस्जिद पर दावा किया था। उनका दावा है कि अयोध्या में राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी। इसके 72 साल बाद यह मामला पहली बार किसी अदालत में पहुंचा।
19 जनवरी 1885 को हिन्दू महंत रघुबीर दास ने पहली बार इस मामले को फैजाबाद के न्यायाधीश पं. हरिकिशन के सामने रखा था। इस मामले में कहा गया था कि मस्जिद की जगह पर मंदिर बनवाना चाहिए, क्योंकि वह स्थान प्रभु श्रीराम का जन्म स्थान है।
वर्ष 1947 में भारत सरकार ने मुसलमानों को विवादित स्थल से दूर रहने के आदेश दिए और मस्जिद के मुख्य द्वार पर ताला डाल दिया गया जबकि हिन्दू श्रद्धालुओं को एक अलग जगह से प्रवेश दिया जाता रहा।
1949 में भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। कहते हैं कि कुछ हिन्दूओं ने ये मूर्तियां वहां रखवाई थीं। मुसलमानों ने इस पर विरोध व्यक्त किया और दोनों पक्षों ने अदालत में मुकदमा दायर कर दिया
1984 में कुछ हिन्दुओं ने विश्व हिन्दू परिषद के नेतृत्व में भगवान राम के जन्मस्थल को 'मुक्त' करने और वहां राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया। बाद में इस अभियान का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी ने संभाल लिया।
1986 में जिला मजिस्ट्रेट ने हिन्दुओं को प्रार्थना करने के लिए विवादित मस्जिद के दरवाजे पर से ताला खोलने का आदेश दिया। मुसलमानों ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया।
1989 में विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिए अभियान तेज किया और विवादित स्थल के नजदीक राम मंदिर की नींव रखी। इसी वर्ष इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने आदेश दिया कि विवादित स्थल के मुख्य द्वारों को खोल देना चाहिए और इस जगह को हमेशा के लिए हिन्दुओं को दे देना चाहिए। इस आदेश के बाद तो देशभर के रामभक्तों में जोश आ गया । देश में जय श्री राम का जय घोष शक्ति का प्रतीक बनता जा रहा था।
30 अक्टूबर 1990 को हजारों रामभक्तों ने मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव की चुनौती को स्वीकार करते हुए गिरफ्तारी से बचते हुए सैकड़ों किलोमीटर पैदल मार्ग से सरयू नदी को तैरकर पार करके अनेक बाधाओं को धता बताते हुए अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया। लेकिन 2 नवंबर 1990 को मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया जिसमें सैकड़ों रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं। सरयू तट रामभक्तों की लाशों से पट गया था। इस हत्याकांड के बाद अप्रैल 1991 को उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव को इस्तीफा देना पड़ा।
इसके बाद लाखों रामभक्त 6 दिसंबर को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचा ढहा दिया गया जिसके परिणामस्वरूप देशभर में दंगे हुए। इसी मसले पर विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल, भाजपा नेता आडवाणी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी , साध्वी ऋतम्भरा और मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती सहित 13 नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने की मांग की गई थी।
6 दिसंबर 1992 को जब विवादित ढांचा गिराया गया, उस समय राज्य में कल्याण सिंह की सरकार थी। भीड़ ने उसी जगह पूजा-अर्चना की और 'राम शिला' की स्थापना कर दी। पुलिस के आला अधिकारी मामले की गंभीरता को समझ रहे थे। गुंबद के आसपास मौजूद कारसेवकों को रोकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का साफ आदेश था कि कारसेवकों पर गोली नहीं चलेगी।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले को लेकर प्रतिदिन सुनाई होने लगी और 16 अगस्त 2019 को सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया। 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने श्रीराम जन्म भूमि के पक्ष में फैसला सुनाया और विश्वभर में रामभक्तों में खुशी की लहर दौड़ गई। 496 वर्षों के बाद यह एक लंबे संघर्ष की जीत थी , लगभग 77 युद्ध-संघर्षों के बाद यह विजयी परिणाम सुख देने वाला था। अब प्रतिक्षा थी कि शीघ्र ही भव्य मंदिर का निर्माण हो और भगवान राम की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो ।
जिस अयोध्या की स्थापना सूर्य पुत्र वैवस्वत मनु ने की थी और जिस अयोध्या के पहले शासक वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु थे। जिस अयोध्या में कभी राम राज्य था वही अयोध्या अब फिर से राममय होने जा रही है । यह स्मरण होते ही अंतःकरण में रोमांच उत्पन हो जाता है ।
5 अगस्त 2020 को भारत के प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भूमिपूजन अनुष्ठान किया गया था और मन्दिर का निर्माण आरम्भ हुआ था।
जमीन के 50 फीट गहराई में कंक्रीट की आधारशिला रखने के साथ ही चौबीस घंटे , सात दिन सोलह हजार कर्मचारियों द्वारा शिफ्टों में कार्य का परिणाम है कि 22 जनवरी 2024 को भगवान राम की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है ।
मंदिर के मुख्य वास्तुकार चंद्रकांत सोमपुरा के साथ उनके दो बेटे निखिल सोमपुरा और आशीष सोमपुरा भी हैं, जो आर्किटेक्ट भी हैं। सोमपुरा परिवार ने राम मंदिर को 'नागरा' शैली की वास्तुकला के बाद बनाया है, जो भारतीय मंदिर वास्तुकला के प्रकारों में से एक है।
विश्व हिन्दू परिषद के नेतृत्व में रामजन्मभूमि परिसर 108 एकड़ में मंदिर का कार्य पूर्णता की ओर तेजी से बढ़ रहा है । रामभक्तों ने अपने रामलला के लिए धन के भंडार खोल दिये हैं । कोई अपनी जन्मभर की पूंजी मंदिर के नाम कर रहा है कोई अपने जेवरात मंदिर में चढ़ा रहा है । कोई दस रुपये का सहयोग कर रहा है कोई दस करोड़ का। कहीं भगवान राम की एक किलो सोना व सात किलो चांदी की चरण-पादुकाएं तैयार हो रही है तो कहीं रिटायर्ड आईएएस अधिकारी एस. लक्ष्मी नारायणन जैसे रामभक्त है जिनके द्वारा अर्पित की जा रही रामचरितमानस में 10,902 पदों वाले इस महाकाव्य के सभी पन्ने तांबे से बनाए जाएंगे। पन्ने को 24 कैरेट सोने में डुबोकर स्वर्ण जड़ित अक्षर लिखकर तैयार किए जाएंगे। इस रामचरितमानस को तैयार करने में 140 किलो तांबा और लगभग सात किलो सोना लगेगा। वहीं मंदिर के सभी 36 दरवाजों पर सोने की परत लगाई जा रही है । बहुत ही सुन्दर , अद्भुत होगा हमारे अराध्य भगवान राम का मंदिर। राशि अनुमान से ज्यादा एकत्रित हो रही है । अब दान देने की बजाय अयोध्या निमंत्रण का आह्वान किया जा रहा है। घर-घर अक्षत (पीले चावल) निमंत्रण हेतु बांटे जा रहे हैं । रामभक्तों के सहयोग से हजारों करोड़ रुपये एकत्र हो गया है और पवित्र रामकार्य है तो एक-एक पैसे की महत्ता को समझते हुए और सभी रामभक्तों के सहयोग से विश्व का सबसे बड़ा , भव्य , अद्भुत सबका सपना श्री राम अयोध्या मंदिर बनने जा रहा है पूरे 496 वर्षों के बाद ।
स्तंभकार -
डॉ उमेश प्रताप वत्स
प्रसिद्ध लेखक व विचारक है
9416966424
यमुनानगर , हरियाणा